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शुक्रवार, 4 जुलाई 2008

मातापिता के ख्वाब और बढती प्रतिस्पर्धा का शिकार होते बच्चे !

कहते है की जो ख्वाइश माता पिता अपने जीवन मैं पूरी नही कर पाते हैं , उस अधूरी ख्वाइश को वे अपने बच्चों के माध्यम से पूरा होते हुए देखना चाहते हैं । हर इंसान के मन मैं बचपन से एक सपना पलता है , हर इंसान अपनी रूचि के अनुसार क्षेत्र मैं एक मकाम हासिल करना चाहता है । कोई सफल गायक तो कोई डांसर , कोई डॉक्टर तो कोई इंजिनियर , कोई क्रिकेटर तो कोई फूटबाल का सफल खिलाडी , तो कोई अच्छी नौकरी पाना चाहता है । किंतु यह सम्भव नही की हर इंसान का हर ख्वाब पूरा हो , कुछ आर्थिक तो कुछ सामाजिक तो कुछ पारिवारिक और कुछ आशा के विपरीत अचानक आने वाली परिस्थितियां मन मैं पलने वाले ख्वाब को पूरा होने मैं बाधक बनती है । ऐसे मैं इंसान अपने अधूरे ख्वाब को दिल के किसी के कौने मैं छुपाये रखता है । किंतु माता पिता बनने के बाद अपने अधूरे ख्वाब को पूरा करने हेतु अपने बच्चे को माध्यम बनाते हैं । ऐसी स्थिती मैं वे यह सोचना भूल जाते हैं की हम जिस ख्वाब को पूरा करने हेतु अपने बच्चे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं क्या उनका बच्चा उसमे रूचि रखता है ? क्या वह उनके अधूरे ख्वाब को पूरा करने मैं सक्षम हैं ? बच्चे के भी अपने स्वयं के द्वारा गढे गए सपने होते हैं ऐसे स्थिती मैं माता पिता के ख्वाब और स्वयं के ख्वाब के बीच पेंडुलम बनकर रह जाता है

कुछ मामलो मैं तो माता पिता द्वारा अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को बरक़रार रखने और झूठी शान दिखाने के चक्कर मैं बच्चे से उनकी योग्यता , क्षमता और रूचि के विपरीत कार्य और परिणाम प्राप्त करने हेतु दबाब बनाया जाता हैं ।

आज की बढती प्रतिस्पर्धा भी इन बातों के लिए जिम्मेदार हैं जो माता पिता और बच्चों की अपनी क्षमता से बढ़कर कार्य करने और रूचि के विपरीत क्षेत्र को चुनने हेतु बाध्य करता हैं ।

नतीजा यह होता है वाँछित परिणाम न दे सकने की स्थिती मैं कमजोर दिल और दिमाग वाले बच्चे दबाब बस टूट जाते हैं । अतः एक बंगाली टीवी नृत्य प्रतियोगिता की प्रतिभागी शिंजिनी सेन गुप्ता जैसे बच्चे , वांछित परिणाम न प्राप्त करने और अपने प्रदर्शन पर निर्णायक मंडल द्वारा की गई टिप्पणी से आहत होकर जीवन का संतुलन बरक़रार नही रख पाते हैं और टूट कर बेबस हो जाते हैं ।

अतः आवश्यक है की बच्चे की रूचि , योग्यता और क्षमता के अनुरूप ही उनसे परिणाम प्राप्त करने के आशा की जाए । उन पर उनकी क्षमता से अधिक प्राप्त करने हेतु अनावश्यक दबाब न बनाया जाए । बच्चे के असफल होने अथवा वांछित परिणाम प्राप्त करने की स्थिती मैं उन्हें प्रताडित और आलोचना करने की बजाय आगे और अच्छे प्रयास करने हेतु समझाइश और सलाह दी जाए।



1 टिप्पणी:

  1. आप उचित कह रहे है .एक मुद्दा और उठाया है आपने नृत्य संगीत के कार्यक्रमों में जज द्वारा की गई टिपण्णी का तरीका .जो अन्दर तक बेध जाय. वह भी कहीं से उचित नही है .अयोग्य जज योग्यता का फैसला करता हैं .

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