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गुरुवार, 24 जुलाई 2008

मजबूर ये हालत - हर कही है !

देश मैं २२ तारीख को विश्वाश मत प्राप्त करने हेतु जनता चुने हुए नुमाइंदे की खरीद फरोख्त के काले कारनामे चल रहे थे । कोई पैसों मैं बिकने को तैयार था तो कोई पद के लालच मैं बिकने को तैयार था । लालच के इस खेल मैं कोई निजी हितार्थ मूल पार्टी छोड़कर जाने को तैयार था , तो कोई अपनी पार्टी और सरकार बनाने हेतु अपनी दावेदारी पक्की करने की जुगत मैं खरीद फरोख्त मैं लगा हुआ था । सत्ता पक्ष भी अपनी सरकार बचाने के चक्कर मैं जेल मैं बंद पड़े दागी सांसद को भी गले लगाने से भी परहेज नही कर रहा था , तो अपने पर भारी पड़ते विरोधियों को कमजोर करने हेतु देश की महत्वपूर्ण शासकीय संस्था का दुरूपयोग करने से नही हिचक रहे थे । संसद मैं एक दूसरों पर कीचड़ उछालने और एक दूसरे को भुला भरा कहने मैं मर्यादा की सारी हदें ताक मैं रख दी गई थी । संसद मैं रुपयों की गद्दी को लहराकर साता पक्ष द्वारा अपने को खरीदे जाने की बात भी बेशर्मी से स्वीकारी जा रही थी । इस प्रकार देश के लोकतंत्र का काला इतिहास लिखा जा रहा था ।
किंतु बेचारी जनता यह सब मूक बन और किम कर्तव्य बिमूढ़ हो देखने हेतु मजबूर थी । आख़िर उसके पास इसके सिवाय कोई चारा भी नही था । अपने द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के काले और अमर्यादित आचरण को देखकर अपने को ठगा हुआ महसूस कर रही थी । क्योंकि देश का कानून बनाने वाले इन्ही लोगों ने ऐसा क़ानून बनाया है की अपने को सर्व शक्तिमान और जनता को मातृ वोट का अधिकार पकड़ाकर कमजोर और असहाय बना डाला है । वे जो करे वह सब सही और जायज , उन पर कोई ऊँगली उठाना वाला नही और रोकने वाला नही । जनता को जनार्दन कहकर और उसके सामने ही सब कुछ काला और बस काला किया जा रहा है और चुनाव की दुहाई देकर चुनाव आने तक जो मनमर्जी आए किया जा रहा है । बस एक बार जनता से लायसेंस प्राप्त कर आने वाले ५ सालों तक मनमर्जी की मालिक हो गए । फिर वह जनता जिसने उसे चुना है वह मरे या सड़े पलटकर चुनाव तक देखने की जरूरत ही नही । ज्यादा होगा तो आने वाले चुनाव मैं जनता को प्रलोभन देकर और साम , दाम दंड भेद किसी भी प्रकार के नीति अपनाकर चुनाव को अपने पक्ष मैं कर लेंगे ।
जनता भी हालात से मजबूर है । वह भी कुछ कर नही सकती है । वह भी पार्टी द्वारा थोपे गए प्रतिनिधियों को चुनकर उन्हें आने वाले ५ वर्षों तक झेलने हेतु मजबूर हैं । मजबूर ये हालात हर कही है , अब जनता किससे कहे ? क्योंकि वोट रुपी अधिकार के अलावा उसके हाथ मैं कुछ भी नही है , जिसका प्रयोग कर वह नेताओं को चुन तो सकती है किंतु हटा नही सकती है ।

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