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शनिवार, 17 फ़रवरी 2018

यह #जरुरत का #तकाजा है या #जीवन की #मज़बूरी !


चल पड़ता हूँ सफ़र पर एक अजनबी के साथ ,
अपनी मंजिल पर पहुचने के लिए ।
ठहर जाता हूँ एक रात अनजान सराय पर ,
दिन भर की थकान मिटाने के लिए ।
खरीद लाता हूँ सामान नुक्कड़ की दुकान से ,
तुरंत की भूख और प्यास मिटाने के लिए।
पहुच जाता हूँ एक अनजान वैध के पास ,
बीमार और बिगड़ी सेहत सुधरवाने के लिए ।
सौप देता हूँ बच्चों को कुछ अनजान हाथों में ,
पढ़ा लिखाकर भविष्य सवारने के लिए ।
यह जरुरत का तकाजा है या जीवन की मज़बूरी,
अनजान शख्स पर विश्वास करना हो गया जरुरी ।
जो भी हो 'दीप' जीवन के लिए सबका साथ जरुरी ।
इन सबके बिना यह खूबसूरत जिंदगी है अधूरी।

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