शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

विनम्र अपील धार्मिक उत्सव आयोजन कर्ताओं के नाम !

देश मैं ईद और नवरात्र के पर्व के अवसरों पर भक्तिमय उल्लाश और खुशियों का सुखद वातावरण बना हुआ है । जगह जगह गाँव और शहर मैं पंडाल , स्वागत द्वार अवं तोरण द्वार सजे हुए हैं । कंही ईद के दावतों का आयोजन हो रहा है तो कंही मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की गई है । इन उल्लासपूर्ण और खुशनुमा माहोल मैं छोटी छोटी बातों को ध्यान रखा जावे , जिससे लोगों को एवं समाज को कोई असुबिधा न हो , पर्यावरण को नुकसान न हो , उर्जा का सरक्षण हो एवं देश मैं सुखमय , सुखमय एवं शांतिपूर्ण वातावरण बना रहे । अतः आयोजनकर्ताओं से विनम्र अपील है की
१। भीड़ भाड़ वाले एवं व्यस्तम चोराहे वाले स्थान मैं सार्वजानिक आयोजन से बचे , हो सके तो खुले एवं मैदानी स्थानों का चयन किया जाए , आना जाने का मार्ग अवरुद्ध न हो । सकरे एवं तंग गलियों वाले स्थानों मैं एक से अधिक वैकल्पिक रस्ते बनाए जाएँ ।
२। आयोजन हेतु एकत्रित की जाने वाली सहयोग राशिः / चंदे की राशिः हेतु लोगों को मजबूर न करे । एकत्रित धनराशी का किफायती एवं समाज की भलाई मैं उपयोग कर उसके आय एवं व्यय का ब्यौरा पूर्ण पारदर्शिता के साथ लोगों के सामने रखें ।
३। लोउड स्पीकर के स्थान पर बॉक्स का प्रयोग करें । आवाज की तीव्रता एवं समय का ध्यान रखे की बच्चों , बुजुर्ग और बीमारों को अ सुबिधा न हो ।
४। बिजली की कमी को देखते हुए विद्युत उर्जा आधारित साज सज्जा मैं किफायत के साथ कम बिजली खपत वाले उपकरण एवं लाइटिंग का प्रयोग करें । दिन मैं बिजली का प्रयोग न के बराबर करें , नियमानुसार अस्थायी बिजली कनेक्शन अवश्य लें ।
५। पर्यावरण को नुक्सान न पहुचाने वाली इको फ्रेंडली साज सज्जा एवं मूर्तियों को चुने । मूर्तियों का विसर्जन इस प्रकार करें की पेयजल श्रोतों और जल श्रोतों का जल प्रदूषित न हो ।
६। झांकियां की अवधारणा ऐसी हो की जिससे धार्मिक भावना एवं आस्था को ठेश न पहुचे एवं देवी देवताओं का सम्मान बना रहे ।
७। धार्मिक आयोजन स्थलों पर धार्मिक एवं सादगी पूर्ण गाने बजाये जाएँ । आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम फूहड़ एवं अमर्यादित न हो ।
८। प्रसाद वितरण , भोज एवं दावतों के आयोजन मैं खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता एवं साफ़ सफाई का पर्याप्त ध्यान रखा जावे । वितरण के पर्याप्त इंतज़ाम किए जावें जिससे भीड़ भाड़ , अव्यवस्था और भगदड़ जैसी अप्रिय स्थिति न बने ।
९। कोई अप्रिय स्थिति होने पर तुंरत पुलिस एवं प्रशासन को सूचित करें । आवश्यक तात्कालिक व्यवस्था बनाने का पूरा प्रयास एवं सहयोग करें ।

बुधवार, 23 सितंबर 2009

स्वास्थय सेवाओ मैं सुधार हेतु सुझाव !

देश मैं स्वास्थय सुबिधायें दिन प्रतिदिन महँगी और आम लोगों की पहुच से दूर होते जा रही है । न तो योग्य और प्रक्षिशित चिकित्षों की पर्याप्त उपलब्धता है , और न ही पर्याप्त मात्रा मैं दवाएं की उपलब्धता है । चिकित्षकों की कमी और उनका ग्रामीण क्षेत्रों मैं सेवाओ देने मैं आना कानी करना । महँगी और आम लोगों की पहुच से दूर होती चिकित्षा शिक्षा के परिणाम स्वरुप स्वस्थ्य सेवाओ मैं सेवा भावः का लोप होकर व्यवसायीकरण की और उन्मुख होना , चिकित्षा शिक्षा संस्थाओं का सीमित और बड़े शहरों तक सीमित होने से छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं की पहुच से दूर होना , बाजारवाद के प्रभाव के चलते अन्य चिकित्षा पद्धति की उपेक्षा कर एक ही चिकित्षा पद्धति एलोपेथी को बढ़ावा दिया जाना इत्यादि इत्यादि कारण ने देश की स्वास्थय सेवाओ का स्वास्थय बिगाड़ रखा है । अतः देश की स्वास्थय सुबिधाओं का स्वास्थय सुधारने और आम लोगो तक इसकी आसान और सुलभ पहुच बनाने हेतु देश की स्वास्थ्य नीति मैं परिवर्तन आवश्यक है इस हेतु कुछ सुझाव निम्नानुसार है :

१.पर्याप्त मात्रा मैं चिकित्सकों की उपलब्धता : - सुनिश्चित करने हेतु सबसे पहले तो चिकित्षा शिक्षा के केन्द्र प्रत्येक जिला स्तर पर खोले जावें , कम आय वाले युवाओं को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जावे , चिकित्षा शिक्षा के पाठ्यक्रमो मैं बदलाव कर सस्ते और शोर्ट टर्म कोर्स शुरू किए जावे , दो वर्षीय डिग्री कोर्स एवं एक वर्षीया डिप्लोमा कोर्स शुरू किया जावे जिससे ग्रामीण और छोटे शहरों के कम आय वाले भी शिक्षा ग्रहण कर स्वास्थय सेवाओ के क्षेत्र मैं पदार्पण कर सके ।
२.समानान्तर रूप से सभी चिकित्षा पद्धति को बढ़ावा : - एलोपेथी के साथ आयुर्वेदी ,होमो पेथी एवं अन्य चिकित्षा पद्धति को समान रूप से बढ़ावा जावे जिससे परंपरागत और सस्ती चिकित्षा को बढावा मिलेगा और महँगी एलोपेथी दवायों पर निर्भरता कम होगी ।
३.आई ऐ एस , आई पी एस जैसी समकक्ष चिकित्षा सेवा संस्था आई एम् एस ( इंडियन मेडिकल सर्विसेस ) और एस एम् एस ( स्टेट मेडिकल सर्विसेस ) की अवधारणा को अपनाना और उसके माध्यम से चिकित्षा क्षेत्र की प्रसाशनिक व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त करना । इससे चिकित्षा विशेषज्ञों की अधिकतम उर्जा और ज्ञान का उपयोग प्रसाशनिक व्यवस्था मैं सर खपाने की जगह अधिकतम समय इलाज़ और उपचार मैं कर सकेंगे ।
४. स्वास्थय सेवाओ मैं स्थानीय लोगों स्थान देना : - प्रायः यह देखने मैं आता है की चिकित्षक पहुच विहीन ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों मैं स्वास्थय सेवाओ देने मैं कतराते हैं । स्वास्थय कर्मी भी परिवार से दूर रहकर एवं नए क्षेत्रों मैं पूरी तन्मयता से सेवायें देने मैं कठिनाई महसूस करता है और अपने सेवा क्षेत्र मैं सतत रूप से सेवा देने मैं असमर्थ रहता है । अतः स्वास्थय सेवाओ मैं स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए । जन्हा तक हो सके स्वास्थय कर्मी का सेवा क्षेत्र उसके गृह ग्राम अथवा गृह जिले के पास ही होना चाहिए ।
५. स्कूली पाठ्यक्रमों मैं योग और चिकित्षा पाठ्यक्रम : - स्कूली पाठ्यक्रमो मैं योग विषय अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए , चिकित्षा शिक्षा को भी प्रत्येक स्तर की शिक्षा मैं शामिल किया जावे , संतुलित भोजन और प्रत्येक मौसम के हिसाब से खान पान मैं बदलाव के साथ किस समय और कौन सा खाद्य किस खाद्य पदार्थ के साथ खाना और न खाना इत्यादि की शिक्षा , सर्दी खांसी और बुखार जैसी छोटी बीमारयों के घरेलु और प्राथमिक उपचार की शिक्षा भी दी जावे । इससे बच्चों मैं स्वास्थय जीवन जीने के प्रति सोच और समझ विकसित होगी साथ ही स्वास्थय सेवा के क्षेत्र मैं सेवा देने हेतु भी प्रेरित होंगे ।
६. दवाओं के मूल्य मैं नियंत्रण और उपलब्धता :- यह सुनने मैं आता है की दवा निर्माता कंपनी १०० से १००० प्रतिशत तक मुनाफा कमाती है निर्माता कंपनी के ऊपर कोई मूल्य नियंत्रण का दवाव नही होता फलस्वरूप जनता को दवाएं कई गुना महँगी मिलती है । अतः निर्धारित मापदंडो के तहत दवाओं के मूल्य मैं नियंत्रण आवश्यक है । साथ ही जीवन रक्षक दवाओं की पर्याप्त उपलब्धता भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए । जिस प्रकार से आज बड़ी बड़ी ब्रांडेड कंपनी अपने उत्पादों को छोटे से छोटे आम उपभोक्ताओं की क्रय क्षमता मैं आ जाने वाले पैक मैं प्रस्तुत कर रही है ठीक उसी तरह से आवश्यक दवाओं की भी छोटे साइज़ मैं पैकिंग उपलब्ध कराई जानी चाहिए , जिससे क्रय क्षमता मैं होने से दवाओं को खरीदा जा सकेगा साथ ही बड़ा पैक पूर्णतः उपयोग न होने की सूरत मैं बेकार भी नही जाएगा । आवश्यकता अनुसार ही पैसे आम जनता के खर्चा होंगे ।
7 भौतिक अधो सरच्नाओं और उन्नत भौतिक उपकरण के साथ प्रशिक्षित कर्मियों की उपलब्धता : - स्वास्थय सेवाओ को पूर्ण दक्षता के साथ उपलब्ध कराया जा सके इसके लिए जरूरी है की आवश्यक भौतिक सरच्नाओ जैसे भवन , फर्नीचर एवं उन्नत उपकरणों के साथ साथ प्रसिक्षित स्वास्थय कर्मियों की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए ।
८. निगरानी / समीक्षा समित्ति - प्रत्येक स्वास्थय संस्थाओं के स्तर पर निगरानी / समीक्षा समित्ति बनायी जानी चाहिए . जो प्रत्येक माह स्वास्थय संस्थाओं / कर्मचारियों द्वारा किये जाने कार्यों की निगरानी / समीक्षा करेगी . समिति मैं निर्वाचित जनप्रतिनिधि , समाजसेवी के साथ अनु जाती , अनु जनजाति एवं बी पि एल परिवार के ऐसे सदस्यों को अनिवार्य रूप से शामिल किया जावे , जो इन संस्थाओं से चिकित्शिया लाभ ले रहा है या लिया हो . समित्ति के एक तिहाई सदस्यों को प्रति तीन माह मैं बदला जाना चाहिए .
९.कर्मचारी क्लब अवं सहकारी समिति का गठन - प्रत्येक ग्राम पंचायत स्तर पर एक कर्मचारी क्लब का गठन किया जाना चाहिए । जन्हा सुखद परिवेश एवं अपने जैसे पढ़े लिखे लोगों का सानिध्य मिल सके , जन्हा सभी कर्मचारी मिलकर सांस्कृतिक अवं सामाजिक उत्सव की गतिविधियों मैं शामिल हो सके और मनोरंजन के साथ अपने विचारों और सुख दुःख को बाँट सके । साथ ही एक सहकारी समिति का भी गठन किया जाना चाहिए जिसके अर्न्तगत दैनिक उपयोग की आने वाली सभी जरूरी साजो सामान की उपलब्धता से पारी पूर्ण दुकाने हो। जिससे कर्मचारियों को जरूरत के सामान हेतु बार बार शहर की और ना भागना पड़े । इसी प्रकार अच्छे स्कूल , अस्पताल और शासकीय सुबिधाओं की भी उपलब्धता सुनिश्चित होनी चाहिए . आवागमन हेतु पक्की सड़क , स्वच्छ पानी की उपलब्धता और पर्याप्त बिजली की उलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए . इस प्रकार यदि सभी आवश्यक मूलभूत सुबिधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जायेगी तो कोई भी शासकीय कर्मचारी गाँव मैं सेवा देने से नहीं कतरायेगा और देश की कोने कोने तक सरकार की जनकल्याण कारी योजनाओं का लाभ पहुच पायेगा .

१०. सरकारी नुमाइंदे / निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को शासकीय स्वास्थय संस्थाओं से चिकित्शिया सेवा लेना अनिवार्य किया जाना चाहिए । निजी एवं गैर सरकारी संस्थाओं से सेवा लेना पूर्णतः प्रतिबंधित हो . कुछ विशेष परिस्थितियों मैं ही इसकी अनुमति हो . इससे वरिष्ठ शासकीय नुमाइंदे और जनप्रतिनिधियों का आना जाना बना रहेगा , जिससे इन संस्थाओं की स्वमेव निगरानी बनी रहेगी और चिकित्शिया सेवा और संस्थाओं की गुणवत्ता बनी रहेगी .

११. निजी एवं गैर सरकारी संस्थाओं से , मोजूद शासकीय स्वास्थय संस्थाओं के माध्यम से ही चिकित्शिया सेवा प्रदाय किये जाने हेतु सहयोग लिया जाना चाहिए । इनसे कुछ शर्तों और नियमो के तहत ही यह सहयोग लिया जाना चाहिए .

१२.स्वास्थय कर्मचारियों / अधिकारियों का प्रशिक्षण क्षेत्र विशेष मैं - प्रायः यह देखने मैं आता है की प्रशिक्षण कार्यक्रम बंद कमरे मैं आयोजित किए जाते हैं जन्हा सिर्फ़ थेओरी ज्ञान दिया जाता है । इसके बजाय प्रशिक्षण कार्यक्रम किसी बिमारी से प्रभावित क्षेत्र अथवा पहुच / सुबिधा विहीन क्षेत्र मैं अस्थायी शिविर लगाकर आयोजित किए जाना चाहिए । इस तरह मैदानी प्रशिक्षण कार्यक्रम से प्रशिक्षु को पीडितों से सीधे संपर्क कर प्रायोगिक रूप मैं सीखने वन्ही प्रभावित क्षेत्र के लोगों को चिकित्षा सुबिधा का लाभ भी मिल पायेगा ।

गुरुवार, 17 सितंबर 2009

जनता - जानवर या जनार्दन ?

जनता - जानवर या जनार्दन ?
जनता जानवर है या जनार्दन या भगवान । यह तो हमारे देश के नेता तय करते हैं । वक़्त वक़्त के हिसाब से नजरिया बदलता है । चुनाव के समय जब वोट की आवश्यकता होती है तब तो जनता जनार्दन अथवा भगवान् होती है बाकी समय तो जानवर होती है और यही सोच को हमारे विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर ने जग जाहिर कर ही दी है की देश की इकोनोमी क्लास जिसमे जनता सफर करती है को केटल क्लास ( अर्थात जानवर के स्तर की श्रेणी ) कहकर । और यह सही भी तो है जो दिल मैं जनता के प्रति भाव है वह तो वाही तो मंत्री जी के श्रीमुख से बाहर निकला है की जनता जानवर के समान है । जिस पर क़र्ज़ का जितना बोझ डालों और ख़ुद उस क़र्ज़ के पैसे से खर्चीली जीवन शैली अपनाओं , अपने मन मुताबिक कानून को अपनी मुट्ठी मैं रख जनता को जैसा चाहे हांको , अव्यवस्था , मंहगाई और असुरक्षा के ख़राब माहोल मैं जनता को जानवर जिंदगी जीने हेतु छोड़ दो और ख़ुद पाँच सितारा और आराम जिन्दगी जियो । बस दो वक़्त की रोजी रोटी जुटाने हेतु उसकी जिन्दगी को खपा दो ताकि उसके पास न तो उनकी करतूत देखना का वक़्त हो और न ही देश के बारे मैं कुछ सोचने और पूछने का समय मिले ।
तो जनता के प्रति इस तरह की सोच रखने वाले नेताओं और जनप्रतिनिधियों और मंत्रियों से जन हित और जन कल्याण की अपेक्षा की जा सकती है । क्या इस तरह से पाँच सितारा होटलों मैं रहने वाले और वातानुकूलित खर्चीली यात्रा करने वाले , ऐशो आराम वाली जिन्दगी जीने वाले मंत्रियों से आम जनता के हितों के अनुरूप नीतियों के निर्धारण और क्रियान्वयन की उम्मीद की जा सकती है । जो आम लोगों के बीच न रहकर और जाकर उनके जीवन और जीवन शैली मैं झाँकने का प्रयास न करे और उन्हें और उनकी जिन्दगी की तुलना जानवर से करके देखे , क्या ऐसा व्यक्ति आम लोगों की समस्या और आवश्यकता से अच्छी तरह से रूबरू और वाकिफ हो सकता है । क्या ऐसे नेता आम जनता के सच्चे प्रतिनिधि हो सकते हैं ।
जरूरत है ऐसे जनप्रतिनिधि को पहचानकर इन्हे संसद , विधानसभा अथवा सरकार मैं जाने से रोका जाए और ऐसे जनप्रतिनिधि को चुना जाए जो जनता को जानवर नही अपितु जनार्दन समझे , जो जनता के हमदर्द हो और जनता के दुःख दर्द और मुसीबत मैं काम आए , लोगों की भावना और आवश्यकता के अनुरूप काम करें ।

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

भ्रष्ट्राचार को देश की कार्यसंस्कृति का हिस्सा बनने से रोकना होगा !

क्या भ्रष्टाचार देश के लोगों की कार्यसंस्कृति बन गया है और कंही न कंही भ्रष्टाचार को शिष्टाचार के रूप मैं स्वीकार करने की मौन स्वीकृति दी जा चुकी है । क्योंकि अवसरवादिता के इस युग मैं जरूरत पड़ने पर अधिकाँश लोग अपना काम निकलवाने हेतु किसी न किसी रूप मैं चाहे उपहार के रूप मैं हो अथवा नकद राशिः के रूप मैं , घूंस देने मैं परहेज नहीं करता है । नतीजतन देश के हर बड़े और छोटे कार्य बिना किसी लेनदेन के नहीं हो रहे हैं । भ्रष्टाचार की यह नदी चाहे ऊपर से नीचे की बात करें या फिर नीचे से ऊपर की बात करें , दोनों दिशाओं मैं बह रही है । या यह कहें की यह दो दिषीय और दो धारिया होकर विकराल और बड़ा रूप धारण कर चुकी है । और इससे अब न्यापालिका संस्था भी अछूती नहीं रह गयी है जिसे की माननीय मुख्या न्यायधीश भी स्वीकारने मैं गुरेज़ नहीं कर रहे हैं । हमारे प्रधानमन्त्री भी इस पर अपनी चिंता जता चुके हैं ।
कंही न कंही हमारे समाज और पूर्वज ने भी इस भ्रष्टाचार के पौधे को सीचने का काम किया है । जन्हा हम घर के बच्चों को अपने अनुरूप कार्य करवाने हेतु उसके मनपसंद चीज़ का प्रलोभन देते हैं वन्ही अपने पक्ष मैं कार्य करवाने हेतु बड़े लोगों द्वारा भी उपहार का आदान प्रदान भी किया जाता है । यंहा तक की भगवान् को मनाने हेतु एवं कार्य सफल हो जाने पर बड़ी से बड़ी एवं कीमती चीजों का चढाव देने से भी नहीं चूकते हैं । संभवतः यही आदान प्रदान का रूप आज विकृत एवं विकराल भ्रष्टाचार का रूप ले चूका है जो इस समाज और देश को खोखला कर रहा है ।
तो क्या भ्रष्टाचार एक कभी न सुलझने वाली एवं चिरस्थायी समस्या बन चुकी है । क्या इस पर अंकुश लगाना और इसे जड़ से खत्म करना नामुमकिन हो गया है । मुझे लगता है बिलकुल नहीं । जरूरत है तो राजनीतिक एवं प्राशासनिक स्तर पर दृढ इक्च्छा शक्ति से इस पर अंकुश लगाने एवं ठोस कदम उठाने की । लोगों को अपने अधिकार के प्रति जागरूक होने और जागरूक करने की । शिक्षा के व्यापक प्रसार प्रचार करने की । प्रशासनिक कार्यप्रणाली को पूर्णतः चुस्त दुरुस्त , जवावदेह एवं पारदर्शी बनाते हुए कुछ इस तरह के सकत कदम उठाने की ।
१। देश के लोगों का पैसा विदेशी बैंकों मैं जमा करने पर रोक लगाना ।
२। १०० से बड़े नोटों का चलन बंद करना ( स्वामी राम देव बाबा के अनुसार ) ।
३। लघु अवधि मैं त्वरित एवं निष्पक्ष रूप से कार्यवाही पूर्ण कर भ्रस्ताचारियों एवं दोषियों को कड़ी सजा दिलवाना ।
४। प्रतिवर्ष शासन द्वारा क्षेत्र के विकास और जनकल्याण हेतु जारी की जाने वाली राशिः का जिलेवार , विभागवार और कार्यवार जानकारी एवं उसके अनुसार कार्यों की समीक्षा रिपोर्ट सार्वजनिक प्रस्तुत करना ।
५। प्रतिवर्ष सरकारी कर्मचारियों / अधिकारियों से लेकर विधायक , सांसद एवं मंत्रियों को अपनी संपत्ति का व्योरा सार्वजानिक करना एवं उनके द्वारा अपने कर्तव्यों के पालन मैं किये कार्यों का व्योरा प्रस्तुत करना ।
६। सूचना के अधिकार का दायरा और व्यापक कर सभी को इस दायरे मैं लाना । यंहा तक की निजी एवं गैर सरकारी संस्थाओं को भी इसके दायरे मैं लाना ।
७। विभिन्न महत्वूर्ण देश हित और जनहित से जुड़े न्यायालीन प्रकरण एवं विभिन्न महत्वपूर्ण जनहित और देश हित से जुड़े जांच एवं तफ्तीश प्रकरण की प्रगति रिपोर्ट प्रत्येक तीन माह मैं सार्वजनिक करना.
८। राज्य एवं देश की सरकारों द्वारा किये गया कार्यों का व्योरा , मंत्री , सांसदों और विधायकों एवं अधिकारियों के कार्यों का व्योरा प्रति तीन माह मैं सार्वजानिक करना एवं इनका जनता के सामने जनता की निगरानी मैं रखना ।
इस तरह के जवादेह और पारदर्शी पूर्ण ठोस कदम देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करने मैं महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं ।

बुधवार, 9 सितंबर 2009

लोकतंत्र - जनता के ऊपर शासन और जनता के पैसों पर सुखासन करने का नाम है !

लोकतंत्र जनता का , जनता के लिए और जनता द्वारा शाशित शाशन कहलाता है । क्या आज के बदलते दौर के साथ इसके मायने नही बदल गया हैं , और इसे नए सिरे से परिभाषित किए जाने की जरूरत नही है । तो क्या आज की जननायक के चाल चलन और चरित्र को देखकर नही लगता है । वो पाँच सितारा होटलों का रहन सहन , वो भरी भरकम सुरक्षा का ताम झाम , वो बड़े बड़े बुतों और स्मारकों का जंगल क्या ये सब काफी नही आज के लोकतंत्र की परिभाषा बदलने के लिए ।
जन्हा जनता का शासन कहकर लोकतंत्र की दुहाई दी जाती है उसी के नाम पर मंत्री जी आलिशान पाँच सितारा होटल मैं लाख रुपयों प्रतिदिन किराए के खर्च पर ना जाने कौन सी विदेश नीति बना रहे हैं और पड़ोसी देश देश की सीमाओं को लांघकर कुत्षित कारनामे को अंजाम दे रहें है । चुनाव के समय जो जनता भगवान् होती है उसी से डर कर करोड़ों रुपयों वाली भरी भरकम ताम झाम वाली सुरक्षा का लबादा ओढ़कर विशिष्ट होने का स्वांग रच रहे हैं और दूसरी और जनता आतंकवाद , नक्सल वाद , तोड़फोड़ और आगजनी के भय और असुरक्षा के साए मैं जीने को मजबूर है । एक और तो करोड़ों रुपयों खर्च करके बड़ी बड़ी मूर्तियों और बुत बनाए जा रहे हैं वन्ही जनता रोटी , बिजली , स्वास्थय , शिक्षा और सुरक्षा के आभाव मैं बुत बनी जा रही है । मंच पर से नेता जी और मंत्रीजी द्वारा बड़े बड़े वादे , आश्वाशन और घोषणाएं हो रही है वन्ही दूसरी और नकली नोटों से चरमराती अर्थव्यवस्था , भ्रष्टाचार और अव्यवस्था इनकी पोल खोल खोलकर सरकार और प्रशासन को मुंह चिढा रही है । एक और जन्हा मंत्री और नेताओ द्वारा पाँच सितारा होटलों मैं दावतें और पार्टियाँ उडाई जा रही है वन्ही देश के लोगों की कमर तोड़ मंहगाई , कालाबाजारी और जमा खोरी जनता के चेहरे की रंगत और हवाइयां उड़ा रही है । जनता किम कर्तव्य विमूढ़ होकर अपने खून पसीने कमाई से भरे गए सरकारी खजाने को इस तरह से लुटते देख रही है और लोकतंत्र के नाम पर मातृ वोट का झुनझुना पाकर शासन करने और शाशित होने की भ्रम मैं जी रही है ।
तो क्या लोकतंत्र को कुछ इस तरह से परिभाषित किया जा सकता है की लोकतंत्र जननेता और जनसेवकों का जनता के ऊपर शासन करने और जनता के पैसों पर सुखासन करने का नाम है ।