शुक्रवार, 25 सितंबर 2009
विनम्र अपील धार्मिक उत्सव आयोजन कर्ताओं के नाम !
बुधवार, 23 सितंबर 2009
स्वास्थय सेवाओ मैं सुधार हेतु सुझाव !
देश मैं स्वास्थय सुबिधायें दिन प्रतिदिन महँगी और आम लोगों की पहुच से दूर होते जा रही है । न तो योग्य और प्रक्षिशित चिकित्षों की पर्याप्त उपलब्धता है , और न ही पर्याप्त मात्रा मैं दवाएं की उपलब्धता है । चिकित्षकों की कमी और उनका ग्रामीण क्षेत्रों मैं सेवाओ देने मैं आना कानी करना । महँगी और आम लोगों की पहुच से दूर होती चिकित्षा शिक्षा के परिणाम स्वरुप स्वस्थ्य सेवाओ मैं सेवा भावः का लोप होकर व्यवसायीकरण की और उन्मुख होना , चिकित्षा शिक्षा संस्थाओं का सीमित और बड़े शहरों तक सीमित होने से छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं की पहुच से दूर होना , बाजारवाद के प्रभाव के चलते अन्य चिकित्षा पद्धति की उपेक्षा कर एक ही चिकित्षा पद्धति एलोपेथी को बढ़ावा दिया जाना इत्यादि इत्यादि कारण ने देश की स्वास्थय सेवाओ का स्वास्थय बिगाड़ रखा है । अतः देश की स्वास्थय सुबिधाओं का स्वास्थय सुधारने और आम लोगो तक इसकी आसान और सुलभ पहुच बनाने हेतु देश की स्वास्थ्य नीति मैं परिवर्तन आवश्यक है इस हेतु कुछ सुझाव निम्नानुसार है :
१.पर्याप्त मात्रा मैं चिकित्सकों की उपलब्धता : - सुनिश्चित करने हेतु सबसे पहले तो चिकित्षा शिक्षा के केन्द्र प्रत्येक जिला स्तर पर खोले जावें , कम आय वाले युवाओं को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जावे , चिकित्षा शिक्षा के पाठ्यक्रमो मैं बदलाव कर सस्ते और शोर्ट टर्म कोर्स शुरू किए जावे , दो वर्षीय डिग्री कोर्स एवं एक वर्षीया डिप्लोमा कोर्स शुरू किया जावे जिससे ग्रामीण और छोटे शहरों के कम आय वाले भी शिक्षा ग्रहण कर स्वास्थय सेवाओ के क्षेत्र मैं पदार्पण कर सके ।
२.समानान्तर रूप से सभी चिकित्षा पद्धति को बढ़ावा : - एलोपेथी के साथ आयुर्वेदी ,होमो पेथी एवं अन्य चिकित्षा पद्धति को समान रूप से बढ़ावा जावे जिससे परंपरागत और सस्ती चिकित्षा को बढावा मिलेगा और महँगी एलोपेथी दवायों पर निर्भरता कम होगी ।
३.आई ऐ एस , आई पी एस जैसी समकक्ष चिकित्षा सेवा संस्था आई एम् एस ( इंडियन मेडिकल सर्विसेस ) और एस एम् एस ( स्टेट मेडिकल सर्विसेस ) की अवधारणा को अपनाना और उसके माध्यम से चिकित्षा क्षेत्र की प्रसाशनिक व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त करना । इससे चिकित्षा विशेषज्ञों की अधिकतम उर्जा और ज्ञान का उपयोग प्रसाशनिक व्यवस्था मैं सर खपाने की जगह अधिकतम समय इलाज़ और उपचार मैं कर सकेंगे ।
४. स्वास्थय सेवाओ मैं स्थानीय लोगों स्थान देना : - प्रायः यह देखने मैं आता है की चिकित्षक पहुच विहीन ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों मैं स्वास्थय सेवाओ देने मैं कतराते हैं । स्वास्थय कर्मी भी परिवार से दूर रहकर एवं नए क्षेत्रों मैं पूरी तन्मयता से सेवायें देने मैं कठिनाई महसूस करता है और अपने सेवा क्षेत्र मैं सतत रूप से सेवा देने मैं असमर्थ रहता है । अतः स्वास्थय सेवाओ मैं स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए । जन्हा तक हो सके स्वास्थय कर्मी का सेवा क्षेत्र उसके गृह ग्राम अथवा गृह जिले के पास ही होना चाहिए ।
५. स्कूली पाठ्यक्रमों मैं योग और चिकित्षा पाठ्यक्रम : - स्कूली पाठ्यक्रमो मैं योग विषय अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए , चिकित्षा शिक्षा को भी प्रत्येक स्तर की शिक्षा मैं शामिल किया जावे , संतुलित भोजन और प्रत्येक मौसम के हिसाब से खान पान मैं बदलाव के साथ किस समय और कौन सा खाद्य किस खाद्य पदार्थ के साथ खाना और न खाना इत्यादि की शिक्षा , सर्दी खांसी और बुखार जैसी छोटी बीमारयों के घरेलु और प्राथमिक उपचार की शिक्षा भी दी जावे । इससे बच्चों मैं स्वास्थय जीवन जीने के प्रति सोच और समझ विकसित होगी साथ ही स्वास्थय सेवा के क्षेत्र मैं सेवा देने हेतु भी प्रेरित होंगे ।
६. दवाओं के मूल्य मैं नियंत्रण और उपलब्धता :- यह सुनने मैं आता है की दवा निर्माता कंपनी १०० से १००० प्रतिशत तक मुनाफा कमाती है निर्माता कंपनी के ऊपर कोई मूल्य नियंत्रण का दवाव नही होता फलस्वरूप जनता को दवाएं कई गुना महँगी मिलती है । अतः निर्धारित मापदंडो के तहत दवाओं के मूल्य मैं नियंत्रण आवश्यक है । साथ ही जीवन रक्षक दवाओं की पर्याप्त उपलब्धता भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए । जिस प्रकार से आज बड़ी बड़ी ब्रांडेड कंपनी अपने उत्पादों को छोटे से छोटे आम उपभोक्ताओं की क्रय क्षमता मैं आ जाने वाले पैक मैं प्रस्तुत कर रही है ठीक उसी तरह से आवश्यक दवाओं की भी छोटे साइज़ मैं पैकिंग उपलब्ध कराई जानी चाहिए , जिससे क्रय क्षमता मैं होने से दवाओं को खरीदा जा सकेगा साथ ही बड़ा पैक पूर्णतः उपयोग न होने की सूरत मैं बेकार भी नही जाएगा । आवश्यकता अनुसार ही पैसे आम जनता के खर्चा होंगे ।
7 भौतिक अधो सरच्नाओं और उन्नत भौतिक उपकरण के साथ प्रशिक्षित कर्मियों की उपलब्धता : - स्वास्थय सेवाओ को पूर्ण दक्षता के साथ उपलब्ध कराया जा सके इसके लिए जरूरी है की आवश्यक भौतिक सरच्नाओ जैसे भवन , फर्नीचर एवं उन्नत उपकरणों के साथ साथ प्रसिक्षित स्वास्थय कर्मियों की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए ।
८. निगरानी / समीक्षा समित्ति - प्रत्येक स्वास्थय संस्थाओं के स्तर पर निगरानी / समीक्षा समित्ति बनायी जानी चाहिए . जो प्रत्येक माह स्वास्थय संस्थाओं / कर्मचारियों द्वारा किये जाने कार्यों की निगरानी / समीक्षा करेगी . समिति मैं निर्वाचित जनप्रतिनिधि , समाजसेवी के साथ अनु जाती , अनु जनजाति एवं बी पि एल परिवार के ऐसे सदस्यों को अनिवार्य रूप से शामिल किया जावे , जो इन संस्थाओं से चिकित्शिया लाभ ले रहा है या लिया हो . समित्ति के एक तिहाई सदस्यों को प्रति तीन माह मैं बदला जाना चाहिए .
९.कर्मचारी क्लब अवं सहकारी समिति का गठन - प्रत्येक ग्राम पंचायत स्तर पर एक कर्मचारी क्लब का गठन किया जाना चाहिए । जन्हा सुखद परिवेश एवं अपने जैसे पढ़े लिखे लोगों का सानिध्य मिल सके , जन्हा सभी कर्मचारी मिलकर सांस्कृतिक अवं सामाजिक उत्सव की गतिविधियों मैं शामिल हो सके और मनोरंजन के साथ अपने विचारों और सुख दुःख को बाँट सके । साथ ही एक सहकारी समिति का भी गठन किया जाना चाहिए जिसके अर्न्तगत दैनिक उपयोग की आने वाली सभी जरूरी साजो सामान की उपलब्धता से पारी पूर्ण दुकाने हो। जिससे कर्मचारियों को जरूरत के सामान हेतु बार बार शहर की और ना भागना पड़े । इसी प्रकार अच्छे स्कूल , अस्पताल और शासकीय सुबिधाओं की भी उपलब्धता सुनिश्चित होनी चाहिए . आवागमन हेतु पक्की सड़क , स्वच्छ पानी की उपलब्धता और पर्याप्त बिजली की उलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए . इस प्रकार यदि सभी आवश्यक मूलभूत सुबिधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जायेगी तो कोई भी शासकीय कर्मचारी गाँव मैं सेवा देने से नहीं कतरायेगा और देश की कोने कोने तक सरकार की जनकल्याण कारी योजनाओं का लाभ पहुच पायेगा .
१०. सरकारी नुमाइंदे / निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को शासकीय स्वास्थय संस्थाओं से चिकित्शिया सेवा लेना अनिवार्य किया जाना चाहिए । निजी एवं गैर सरकारी संस्थाओं से सेवा लेना पूर्णतः प्रतिबंधित हो . कुछ विशेष परिस्थितियों मैं ही इसकी अनुमति हो . इससे वरिष्ठ शासकीय नुमाइंदे और जनप्रतिनिधियों का आना जाना बना रहेगा , जिससे इन संस्थाओं की स्वमेव निगरानी बनी रहेगी और चिकित्शिया सेवा और संस्थाओं की गुणवत्ता बनी रहेगी .
११. निजी एवं गैर सरकारी संस्थाओं से , मोजूद शासकीय स्वास्थय संस्थाओं के माध्यम से ही चिकित्शिया सेवा प्रदाय किये जाने हेतु सहयोग लिया जाना चाहिए । इनसे कुछ शर्तों और नियमो के तहत ही यह सहयोग लिया जाना चाहिए .
१२.स्वास्थय कर्मचारियों / अधिकारियों का प्रशिक्षण क्षेत्र विशेष मैं - प्रायः यह देखने मैं आता है की प्रशिक्षण कार्यक्रम बंद कमरे मैं आयोजित किए जाते हैं जन्हा सिर्फ़ थेओरी ज्ञान दिया जाता है । इसके बजाय प्रशिक्षण कार्यक्रम किसी बिमारी से प्रभावित क्षेत्र अथवा पहुच / सुबिधा विहीन क्षेत्र मैं अस्थायी शिविर लगाकर आयोजित किए जाना चाहिए । इस तरह मैदानी प्रशिक्षण कार्यक्रम से प्रशिक्षु को पीडितों से सीधे संपर्क कर प्रायोगिक रूप मैं सीखने वन्ही प्रभावित क्षेत्र के लोगों को चिकित्षा सुबिधा का लाभ भी मिल पायेगा ।
गुरुवार, 17 सितंबर 2009
जनता - जानवर या जनार्दन ?
जनता - जानवर या जनार्दन ?
जनता जानवर है या जनार्दन या भगवान । यह तो हमारे देश के नेता तय करते हैं । वक़्त वक़्त के हिसाब से नजरिया बदलता है । चुनाव के समय जब वोट की आवश्यकता होती है तब तो जनता जनार्दन अथवा भगवान् होती है बाकी समय तो जानवर होती है और यही सोच को हमारे विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर ने जग जाहिर कर ही दी है की देश की इकोनोमी क्लास जिसमे जनता सफर करती है को केटल क्लास ( अर्थात जानवर के स्तर की श्रेणी ) कहकर । और यह सही भी तो है जो दिल मैं जनता के प्रति भाव है वह तो वाही तो मंत्री जी के श्रीमुख से बाहर निकला है की जनता जानवर के समान है । जिस पर क़र्ज़ का जितना बोझ डालों और ख़ुद उस क़र्ज़ के पैसे से खर्चीली जीवन शैली अपनाओं , अपने मन मुताबिक कानून को अपनी मुट्ठी मैं रख जनता को जैसा चाहे हांको , अव्यवस्था , मंहगाई और असुरक्षा के ख़राब माहोल मैं जनता को जानवर जिंदगी जीने हेतु छोड़ दो और ख़ुद पाँच सितारा और आराम जिन्दगी जियो । बस दो वक़्त की रोजी रोटी जुटाने हेतु उसकी जिन्दगी को खपा दो ताकि उसके पास न तो उनकी करतूत देखना का वक़्त हो और न ही देश के बारे मैं कुछ सोचने और पूछने का समय मिले ।
तो जनता के प्रति इस तरह की सोच रखने वाले नेताओं और जनप्रतिनिधियों और मंत्रियों से जन हित और जन कल्याण की अपेक्षा की जा सकती है । क्या इस तरह से पाँच सितारा होटलों मैं रहने वाले और वातानुकूलित खर्चीली यात्रा करने वाले , ऐशो आराम वाली जिन्दगी जीने वाले मंत्रियों से आम जनता के हितों के अनुरूप नीतियों के निर्धारण और क्रियान्वयन की उम्मीद की जा सकती है । जो आम लोगों के बीच न रहकर और जाकर उनके जीवन और जीवन शैली मैं झाँकने का प्रयास न करे और उन्हें और उनकी जिन्दगी की तुलना जानवर से करके देखे , क्या ऐसा व्यक्ति आम लोगों की समस्या और आवश्यकता से अच्छी तरह से रूबरू और वाकिफ हो सकता है । क्या ऐसे नेता आम जनता के सच्चे प्रतिनिधि हो सकते हैं ।
जरूरत है ऐसे जनप्रतिनिधि को पहचानकर इन्हे संसद , विधानसभा अथवा सरकार मैं जाने से रोका जाए और ऐसे जनप्रतिनिधि को चुना जाए जो जनता को जानवर नही अपितु जनार्दन समझे , जो जनता के हमदर्द हो और जनता के दुःख दर्द और मुसीबत मैं काम आए , लोगों की भावना और आवश्यकता के अनुरूप काम करें ।