असंतोष और उपेक्षा से उपजी हताशा का परिणाम है - प्रथक राज्य की मांग !
तेलंगाना राज्य को प्रथक राज्य बनाने की घोषणा के बाद , अब देश के हर कोने से प्रथक राज्य गठन की मांग उठने लगी है । कुछ लोग प्रभावशाली और कारगर प्रशासनिक व्यवस्था क्रियान्वयन और नियंत्रण के मद्देनजर प्रथक छोट छोटे राज्यों की मांग को जायज ठहराते हैं । तो वन्ही कुछ राजनैतिक लोग सत्ता अवं महत्वपूर्ण पदों की लालसा अवं राजनीतिक नफे नुकसान की द्रष्टि से प्रथक राज्य की मांग करते हैं । जबकि मुझे लगता है की क्षेत्र विशेष का असंतुलित विकास , असमान वित्तीय संसाधनों का आवंटन अवं उपेक्षित भाव से उपजे असंतोष और हताशा का परिणाम है प्रथक राज्य की मांग ।
जो भी हो इस तरह से देश के हर प्रदेशों से छोट छोटे टुकड़े कर प्रथक राज्यों की मांग को हवा देना देश की अखंडता और एकता की सीरत और सेहत के लिए अच्छा नहीं है । प्रथक राज्य की मांग का उठाना अथवा उठाया जाना , जनहित और प्र देशहित से वास्ता तो कम किन्तु तात्कालिक राजनीतिक स्वार्थ ज्यादा नजर आता है । अभी तक जितने प्रथक राज्यों का गठन हुआ है उनमे कुछ को छोड़कर कितनो का विकास पूर्व की तुलना मैं ज्यादा बेहतर हो पाया है यह संभवतः किसी से छुपा नहीं होगा । फिर भी इस बहाने देश को छोटे छोटे टुकड़ों मैं क्षेत्रवाद , भाषावाद अवं वर्ग विशेष वाद के आधार पर तोडना कंही अधिक घातक होगा ।
तेलंगाना राज्य को प्रथक राज्य बनाने की घोषणा के बाद , अब देश के हर कोने से प्रथक राज्य गठन की मांग उठने लगी है । कुछ लोग प्रभावशाली और कारगर प्रशासनिक व्यवस्था क्रियान्वयन और नियंत्रण के मद्देनजर प्रथक छोट छोटे राज्यों की मांग को जायज ठहराते हैं । तो वन्ही कुछ राजनैतिक लोग सत्ता अवं महत्वपूर्ण पदों की लालसा अवं राजनीतिक नफे नुकसान की द्रष्टि से प्रथक राज्य की मांग करते हैं । जबकि मुझे लगता है की क्षेत्र विशेष का असंतुलित विकास , असमान वित्तीय संसाधनों का आवंटन अवं उपेक्षित भाव से उपजे असंतोष और हताशा का परिणाम है प्रथक राज्य की मांग ।
जो भी हो इस तरह से देश के हर प्रदेशों से छोट छोटे टुकड़े कर प्रथक राज्यों की मांग को हवा देना देश की अखंडता और एकता की सीरत और सेहत के लिए अच्छा नहीं है । प्रथक राज्य की मांग का उठाना अथवा उठाया जाना , जनहित और प्र देशहित से वास्ता तो कम किन्तु तात्कालिक राजनीतिक स्वार्थ ज्यादा नजर आता है । अभी तक जितने प्रथक राज्यों का गठन हुआ है उनमे कुछ को छोड़कर कितनो का विकास पूर्व की तुलना मैं ज्यादा बेहतर हो पाया है यह संभवतः किसी से छुपा नहीं होगा । फिर भी इस बहाने देश को छोटे छोटे टुकड़ों मैं क्षेत्रवाद , भाषावाद अवं वर्ग विशेष वाद के आधार पर तोडना कंही अधिक घातक होगा ।
यदि राजनीतिक और प्रशासनिक इक्क्छा शक्ति हो तो देश को छोटे छोटे राज्यों मैं बिना तोड़े और प्रथक राज्य के गठन के बिना ही प्रदेश और प्रदेश वासियों का समुचित और पर्याप्त विकास उनकी अपेक्षा और आवशकताओं के अनुरूप किया जा सकता है । वित्तीय संसाधनों का सामान रूप से आबंटन , केंद्रीय और राज्य स्तरीय सत्तात्मक नेत्रत्व मैं आबादी के हिसाब से सभी क्षेत्रों की सामान भागीदारी , क्षेत्र विशेष के प्राकृतिक संसाधनों के विदोहन से प्राप्त राजस्व का अधिकतम भाग क्षेत्र के विकास हेतु ही लगाया जाना , क्षेत्र विशेष के हितों और आवश्यकताओं के अनुरूप योजनाओं का निर्माण और उनका कारगर और प्रभावी क्रियान्वयन , बिना किसी राजनीतिक भेदभाव के सभी प्रदेशों को सामान विकास के अवसर उपलब्ध कराना इत्यादि ऐसे अनेक कार्य लोगों के असंतोष और निराशा को दूर कर वर्तमान राज्य और राष्ट्र व्यवस्था मैं ही लोगों का विश्वास कायम रखने मैं महती भूमिका निभा सकते हैं और देश को क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों और भाषा , क्षेत्र और वर्ग विशेष के आधार पर छोटे छोटे टुकड़ों मैं बटने से रोका जा सकता है ।