मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

बेपरवाह बच्चे !















कचरों
के ढेरों मैं से प्लास्टिक व धातु के टुकड़े बीनते बच्चे
बेपरवाह गंदगी और सडन के दुष्प्रभाव से , सिर्फ कुछ रुपयों की आस मैं
इस बात से बेखबर से की उम्र का अगला पड़ाव हमें कंहा ले जायेगा ||

चाय की दुकानों व होटलों मैं ग्राहक की हर एक आवाज पर दौड़ते बच्चे
बेपरवाह लोगों की डांट डपट और तिरस्कार से , चंद रूपये से के चूल्हा जलने की आस मैं
इस बात से बेखबर की आने वाली जिन्दगी कैसी होगी ||

भवनों और सड़क निर्माण के कार्यों मैं इंट ढोते और पत्थर तोड़ते बच्चे
बेपरवाह चोटों और बारिश व धुप की तपन से, तुरंत के अच्छे कपडे और पेट भरने आस मैं
बेखबर इस बात से की कल फिर उन्हें जोखिम भरा काम करना होगा ||

स्कूल जाते , महँगी गाड़ियों मैं बैठे बच्चों को निहारते बच्चे
परवाह इस बात की क्या स्कूल जा पाएंगे , गाड़ियों मैं घूम पाएंगे
चंद रुपयों और मदद की आस मैं जिससे हमें यह सब मिल जायेगा
इस बात से खबरदार की हमारा आने वाला भविष्य अच्छा होगा ||