बुधवार, 21 अक्टूबर 2020

शीशा जब टूटकर है बिखरता !

 


देखा करते थे शीशा जब तब ,

छुपाते थे चेहरे के एब तब तब ,

शीशे ने कहा "लग रहे हो खूबसूरत" , 

फिर दिल कहां संभाले संभलता , 

लो अब हाथ से है उछलता , 

शीशा अब टूटकर है बिखरता । 


शीशा जब टूटकर है बिखरता , 

हर टुकड़ा खुद एक शीशे में है ढलता,

टुकड़े टुकड़े में तस्वीर नजर आती है , 

पर टूटे टुकड़े पर तस्वीर कहां भाती है, 

अब  शीशा दिल से है उतरता ,

शीशा जब टूटकर है बिखरता । 


शीशे को छूने से अब हर कोई है मुकरता , 

चुभ न जाये कोई टुकड़ा हाथों को , 

बह न जाये कोई खून का  कतरा , 

फिर कौन उस पर है सजता संवरता  , 

फेंक आते है  शीशे के टुकड़े बाहर ,  

शीशा जब टूटकर है बिखरता ।


बुधवार, 7 अक्टूबर 2020

अश्क आंखों से यूं गिराया न करो !



 अश्क आंखों से यूं गिराया न करो ,

गम के समंदर में दुनिया  डुबाया न  करो ,

बमुश्किल से आती है साहिल पर कश्ती जिंदगी की ,

तूफान उठाकर यूं भंवर में उलझाया न करो ।


माना कि हर आरज़ू को मिलती नहीं मंजिल ,

हालात होते है तमन्नाओं के कत्ल में शामिल , 

हर हादसे पर यूं आहत न हो जाया करो , 

अश्क आंखों से यूं गिराया  न करो । 


सजाया न करो जख्म ए दिल अश्कों की दुकान में ,

मरहम तो होता नहीं , होता है नमक लोगों की जुबान में ,

थोड़ा मुस्कुरा कर हाले दिल जमाने से छुपाया भी करो  , 

अश्क आंखों से यूं गिराया न  करो ।


झांक भी लिया करो हसरतों की इमारतों से बाहर ,

मिल जाएंगे खुदा का शुक्रिया करते जो मिला उसके लिये ,

कभी अपने दिल की ऐसे भी समझाया करो , 

अश्क आंखों से यूं गिराया न  करो ।


अश्क आंखों से यूं गिराया न  करो ,

थाम कर इन्हें अपनी ताकत बनाया करो  ,

बमुश्किल से आती है साहिल पर कश्ती जिंदगी की , 

यूं तूफान उठाकर भंवर में  उलझाया न करो ।

                                      ******दीप******