देखा करते थे शीशा जब तब ,
छुपाते थे चेहरे के एब तब तब ,
शीशे ने कहा "लग रहे हो खूबसूरत" ,
फिर दिल कहां संभाले संभलता ,
लो अब हाथ से है उछलता ,
शीशा अब टूटकर है बिखरता ।
शीशा जब टूटकर है बिखरता ,
हर टुकड़ा खुद एक शीशे में है ढलता,
टुकड़े टुकड़े में तस्वीर नजर आती है ,
पर टूटे टुकड़े पर तस्वीर कहां भाती है,
अब शीशा दिल से है उतरता ,
शीशा जब टूटकर है बिखरता ।
शीशे को छूने से अब हर कोई है मुकरता ,
चुभ न जाये कोई टुकड़ा हाथों को ,
बह न जाये कोई खून का कतरा ,
फिर कौन उस पर है सजता संवरता ,
फेंक आते है शीशे के टुकड़े बाहर ,
शीशा जब टूटकर है बिखरता ।