रविवार, 30 जून 2024

#अनजानी राहों की , क्यों छानते हो खाक !

 

#अनजानी राहों की ,
क्यों छानते हो खाक,
बहुत कुछ मौजूद है,
जाना पहचाना आसपास।

अपने अंदर जरा तो,
एक बार तो झांक ,
मिल जायेगा खुद में,
जो अपने अंदर है खास।

धार देकर जरा उसको ,
कुछ #खासियत से नवाज,
बनाओ फिर जीने का,
एक अलग ही अंदाज ।

#मुश्किल होगी जब सामने,
तो खा जायेगी मात ,
बढ़ते रहेंगे राहों में ,
और #मंजिल होगी पास ।


 

बुधवार, 5 जून 2024

अब न करेंगे हम #प्रकृति को तंग,


मुरझा गई पेड़ों की पत्ती,

दिखते नहीं आंगन में पक्षी,

बूंद बूंद पानी को तरसती ,

पशु पक्षी इंसानों की बस्ती ।


कंकाल बना देह नदी का ,

चटक गया सीना धरती का,

पत्थर पहाड़ तपे भट्टी सा ,

जैसे स्नान किये सब अग्नि का ।


चलता हल धरती को चीर ,

चुभती गर्मी तन बहता नीर ,

घर में बैठी दुबक के भीड़ ,

बाहर खेला करते श्रमवीर ।


आसमां को अब तकते नयन ,

सूर्य देवता समेटो गर्मी प्रचंड,

अब न करेंगे हम प्रकृति को तंग,

सहेजेंगे सवारेंगे प्रकृति कण कण ।


#पर्यावरण दिवस 05 जून, एक पेड़ लगाएं वेरी सून ।