अब आप कहेंगे ऐसी कौन सी बात है जो आने वाली पीढ़ी के लिए भी सोचनी पड़ेगी । जी हाँ प्रकृति प्रदत्त जीवन दायिनी एक अनमोल नियामत जिस पर हमारा ही नहीं आने वाली पीढ़ी यों का भी अधिकार हैं। एक ऐसी अनमोल चीज जिसके बिना इंसान तो क्या सारे विश्व का काम नही चले। अब वह आसानी से मिलने वाली चीज थोड़े ही रही है । खासकर गर्मी के दिनों मैं तो मिलना बड़ा ही मुश्किल होता है । उसके पाने के लिए लम्बी कतार लगनी पड़ती है । आस पड़ोस तो क्या भाई भाई मैं भी उसके लिए लड़ाई हो जाती है । गाओं मैं तो उसकी खोज मैं लोग बड़ी दूर दूर तक जाते हैं । अब तो वह बहुत कीमती हो गया है । कीमती तो पहले से था । किंतु हो सकता है भविष्य मैं वह पैसा देने पर भी नही मिले । और तो और उसे कृत्रिम रूप से पैदा भी नही किया जा सकता है । क्योंकि ऐसी वैज्ञानिक विधि भी इजाद नही हो पाई है और न ही ऐसी कोई जादू की छड़ी है जिसको घुमाकर सभी को दिलाई जा सके । अब तो समझ गए होंगे मैं किसकी बात कर रहा हूँ । जी हाँ जीवन के लिए अनमोल है जो अर्थात पानी या जल , जिस पर मानव मात्र नही वरन समस्त वनस्पति और प्राणी जगत का भी हक़ है ।
हमने उसे सहेजने की भी तो कोशिश नही की हैं । पहले से विद्यमान झरने , तलब , कुओं और बब्दियों को तो नष्ट होने की कगार पर पंहुचा दिया साथ ही नदी व नाले के अस्तित्व को भी खतरे मैं डाल दिया है । और तो और जमीन से निकलकर उसे बरवाद करने पर तुले हुए हैं । क्या हम अगला विश्व युद्ध करवाकर ही मानेंगे ।
अब तो हमें चेत जाना चाहिए । हर निजी तथा शाश्कीय बिल्डिंग मैं वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम अपनाकर , नए जंगलो को तैयार कर , नदियों व तालाबों , कुओं व बब्दियों का जीर्णोद्धार कर वर्षा का जल सहेजना होगा । बंजर व बेकार पड़ी निजी व राजस्व भूमि मैं निजी व शाश्किया संस्था के सहयोग से तलब खुदवाकर एवं नदी व नालों मैं बाँध बनाकर पानी को रोककर जल स्तर को बढाया जाना चाहिए । इनमे मछली पालन , अन्य जलीय खेती करवाकर और संचित जल को सशुल्क सिंचाई हेतु देकर आर्थिक लाभ का साधन बनाया जा सकता है । स्कूली शिक्षा एवं प्रचार प्रसार के माध्यम से लोगों को जल संग्रहण एवं जल के किफायती उपयोग हेतु प्रेरित किया जा सकता है । अतः इस हेतु समुचित प्रयास किया जाना चाहिए , तभी हम अगली पीढ़ी का ख्याल करते हुए विश्व को अगले विश्वयुद्ध से बचा सकते हैं।
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