भाई हमारे बुजर्गों ने हमे हमेशा खुश रहने और जितना है उसमे ही संतोष कर जीने की सीख दी है । तो फिर दुनिया की बातों को लेकर हम खफा क्यों हों ? चाहे देश मैं कितनी ही महंगाई बढ़ जाए , देश के नेता जो चाहे मन मर्जी करें , चाहे गाय का चारा खा जाए , चाहे खूब आपस मैं नूर कुश्ती करे या चाहे देश को बेच दे , एक बार वोट लेकर पूरे पाँच साल मैं आए , पर हम खफा नही होंगे । अगले चुनाव मैं हम सारे गिले शिकवे को भूलकर और नशे की खुमारी मैं फिर से उन्हें ही वोट देंगे वह भी बिना खफा हुए ।
हमें तो कम मैं ही जिन्दादिली से जीना सिखाये गया है । जितनी चादर है उतने मैं ही पैर फैला कर सोना है , ज्यादा हुआ तो अपनी चादर को सुकोड़ कर या फिर काट कर छोटा कर लेंगे और उसी मैं सो जायेंगे । पानी के लिए लम्बी कतार लगाना है लगा लेंगे , स्कूलों मैं बच्चों की पढ़ाई का कचरा हो जाए , बच्चों को ट्यूशन पढ़ा लेंगे , सरकारी अस्पताल मैं डॉक्टर और दवा न हो तो न हो , प्राइवेट मैं जाकर इलाज करा लेंगे , राशन की दूकान न खुले तो न खुले और उसमे राशन न हो तो हम बाजार मैं जाकर ज्यादा पैसे मैं खरीद लेंगे । पर्याप्त बिजली न मिले , चोरी बढे , सड़क मैं गड्ड ही गड्ड हो , आवागमन के साधन ठीक से न मिले , वे समय पर नही आए और गाड़ी वाले मनमाना किराया वसूले , पर हम खफा नही होंगे । क्योंकि हमने सीखा है सदा मुस्कराते रहना । खुशी बाटना और खुशी देना । दूसरों को को नाखुश तो नही कर सकते हैं न । किसी कार्यालयों मैं किसी भी काम के लिए पैसा देना हो दे देंगे , कौन दफ्तर के लंबे चक्कर लगायेगा और सरकारी कर्मचारियों को खफा करेंगे और उन पर खफा होंगे ।
खफा होना और तनाव बढ़ाना स्वास्थ्य के लिए भी तो अच्छा नही होता है न , कौन अपना तथा दूसरों का बीपी बढायेगा और कौन समाज , अपने नगर और प्रदेश एवं देश के खुशनुमा माहोल को ख़राब करेगा । इसलिए भइया हमने तो सीखा है के बस कुछ भी हो जाए पर कभी खफा न होना , बस सदा मुस्कराते रहना और आपको भी कहेंगे की सदा मुस्कराते रहना , पर खफा न होना ।
बस यही प्रयास रहता है हमेशा. अच्छा आलेख.
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