हाल ही मैं बच्चे द्वारा अंजाम दी जा रही कुछ घटनाएं जैसे अपने साथी छात्र की गोली मारकर हत्या करना , मनमानी करने से रोकने एवं टोकने पर अपने से बडो की हत्या करना , बड़े की बात बात पर चिड़ना और उन्हें झिडकियां देना , स्कूल और कॉलेज के अध्यापकों की बात नही मानना , स्कूल स्तर से ही विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षित होकर प्यार होने जैसी बात करना और ग़लत कदम उठाना , कम उम्र मैं ही बडो और व्यस्कों जैसी बातें करना । ये सभी बातें इस बात की और इंगित करती है की आज के बच्चे और देश के कल के भविष्य को उम्र से पहले व्यस्क बना रहे हैं ।
देश मैं हावी होती आधुनिकता वादी सोच और पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव ही है की आज देश मैं बच्चे मैं इस प्रकार की प्रवृत्ति पनप रही है । टीवी और सिनेमा मैं दिखाए जाने वाले उन्मुक्त और हिंसक द्रश्य इस प्रवृत्ति को बढ़ाने मैं प्रमुख भूमिका अदा कर रहे हैं । तो वही कंप्यूटर गेम भी इसमें आग मैं घी डालने का कार्य कर रहे हैं । आज की बड़े बड़े फेशंन शो की बात करे या फिर विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता जैसे आयोजन की , इनमे भी पहनावा और व्यवहार का स्तर किस स्तर का होता है यह किसी से छुपी नही है । एकल परिवार और मिलजुलकर साथ रहने की टूटती परिपाटी , आमिर माता पिता के द्वारा अपने बच्चों को पर्याप्त समय न देकर सिर्फ़ सभी सुख सुबिधाये जुटाकर अपने पारिवारिक जिम्मेदारी से इतिश्री समझना आदि के कारण परिवार ही बच्चे की पहली पाठशाला की अवधारणा को समाप्त करते नजर आते हैं । धर्मं , योग और आध्यात्मिकता से बढ़ती दूरी , भौतिकता वादी सोच और संस्कृति को अपनाना , ये भी बच्चे मैं मानसिक तनाव और असंतुलन पैदा करता हैं । शिक्षा संस्थाओं का भी नैतिक , सामाजिक समरसता और देश की संस्कृति आधारित शिक्षा को दरकिनार कर , पूर्ण रूप से व्यसयिकता को अपनानाकर सिर्फ़ नम्बरों के होड़ को बढावा देना , माता पिता द्वारा भी शिक्षा को सिर्फ़ अच्छे रोजगार और नौकरी प्राप्त करने के साधन के रूप मैं अपनाना , सरकार द्वारा भी लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति को देश की संस्कृति , परिवेश और परिष्ठितियाँ के अनुरूप ढाले बिना , वैसा वैसा की अपनाना आदि कारण भी बच्चों की सोच मैं घालमेल पैदा करते हैं ।
आवश्यकता है इन सभी कारणों पर गंभीरता पूर्वक विचार करने की , और उस अनुरूप परिस्थितियों मैं बदलाव लाकर उसे आवश्यकता अनुरूप अपनाने की । ताकि दिशा भ्रमित और दिग्भ्रमित होती भावी पीढ़ी को समय से पहले व्यस्क और भटकने से बचाया जा सके । देश और उनके स्वर्णिम भविष्य को उनकी मंजिल तक पहुचाया जा सके ।
आप ने बिल्कुल सही कहा,लेकिन कहने और करने बहुत फर्क है,आज का माहौल ऐसा हो गया है की हम चाहें भी तो अपने बच्चों को उस से दूर नही रख सकते,हमारी फिल्में ,इंटरनेट साइट्स,दिन प्रतिदिन हिंसक और अश्लील होता टेलीविज़न ,बुरी संगति,,कितना और कैसे बचाएं हम अपने बच्चों को...फिर भी कोशिश तो करनी होगी.
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा है आपने, आपकी इस गहरी अभिव्यक्ति पर मुझे दुष्यंत का एक शेर याद आ गया -"खिलौने बेच कर चाकू खरीद लाते हैं , बच्चे हमारे दौर के चालाक हो गए हैं !"
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