शुक्रवार, 30 मई 2008

आज क्या लिखूं ?

वर्तमान मैं घटित हो रही तात्कालिक घटनाओं पर हमेशा प्रतिक्रिया देने की कोशिश की है । कभी मंहगाई , कभी राजनीति , कभी भूकंप तो कभी तूफ़ान और बाढ़ की त्रासदी तो कभी आतंकवाद की घटना तो कभी आरक्षण के मुद्दे पर ब्लॉग लिखने की कोशिश किया । अब मैं इन मुद्दे पर अपनी सटीक प्रतिक्रिया सटीक देने मैं कितना सफल रहा यह तो बुद्धिजीवी पाठक वर्ग ही जाने । कुछ घटनाये तो प्रकृति प्रदत्त हैं जिस पर की इंसान का बस नही है , किंतु कुछ तो इंसान स्वयं समस्याएं पैदा कर परेशानी मोल ले रहा है , कही जुलूस , कही तोड़फोड़ , कही आगजनी तो कही दंगे फसाद , आख़िर इंसान कंहा जा रहा है अपने हाथ से स्वयं जन धन और देश की राष्ट्रीय संपत्ति को क्षति और नुकसान जान बूझकर पंहुचा रहा है , वह क्यों स्वयं अपने पैरों मैं कुल्हाडी मार रहा है ? इन आपा धापा और आक्रोश भरे घटनाओं से मन अशांत सा हो जाता है । मन कुछ थका थका सा लगा , रोज रोज वही मन को व्यग्र और अशांत कर देने वाली घटना । यही सब देखकर और लिखकर आज मन कह रहा था की आज क्या लिखूं ? फिर सोचा की मन मैं मचे इस द्वंद के बारे मैं लिख दूँ जिसको कह देने से मन हल्का हो जायेगा ।
कुछ बात और कहना चाहूँगा की कुछ दिनों से लिखे जाने ब्लॉग पर बुद्धिजीवी पाठकों द्वारा असंतोष और नाराजगी जतायी जा रही है । जो बाकी सोचनीय और गंभीर बात है । निसंदेह यदि हिन्दी ब्लॉग लेखन को सम्रध और सर्वव्यापी बने इस हेतु यह आवश्यक है की ब्लॉग लेखन पर गंभीरता पूर्वक कार्य करना होगा । ब्लॉग पर मात्र क्लिक संख्या बढ़ाने के लिए नही ( जैसा की कुछ बुद्धिजीवी पाठकों ने इस पर चिंता जताई है ) वरन ऐसे लेखन को बढ़ावा देना होगा जिससे विभिन्न समस्याओं एवं मतभेदों पर एक मत और राय बन सके , एक सर्वसम्मत हल निकल सके । साथ ही हिन्दी ब्लॉग लेखन को नई बुलंदियों मिल सके ।

मैं ब्लॉग लेखन मैं अभी नया हूँ अतः ज्यादा कुछ और तो नही कह सकता हूँ । अपने बुद्धिजीवी और सम्मानीय पाठकों से मन की बात कहने पर कुछ मन की व्यग्रता और बेचैनी तो कम हुई , जो मन मैं था कह डाला । इसी आशा और विश्वाश के साथ की अभी तक जो साथ और भरोसा बुद्धिजीवी पाठक वर्ग ने जताया है वह आगे भी बरक़रार रहेगा ।

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