शनिवार, 26 जुलाई 2008
बम धमाकों की गूँज दुबारा सुनने को न मिले !
गुरुवार, 24 जुलाई 2008
मजबूर ये हालत - हर कही है !
शुक्रवार, 18 जुलाई 2008
जिस डाली मैं बैठे है उसे ही काट रहे हैं !
सत्ता हथियाने का कैसा कलुषित खेल देश मैं खेला जा रहा है , सभी राजनेता और राजनैतिक दल अपने अपने नफे नुक्सान के हिसाब से इस खेल मैं अपनी भागीदारी कर रहा है । नियमों और मर्यादायों की सभी सीमाओं को लाँघ कर सत्ता प्राप्ति का और सरकार गिराने का हर सम्भव खेल खेला जा रहा है । इस समय कोई अपराधी , नही कोई विरोधी नही , अपने अपने सहूलियत से एक दूसरे से हाथ मिलाने और गले मिलने को तैयार है । जो कल तक घोर विरोधी था वह दोस्त बन गया है और जो दोस्त था वह दुश्मन हो गया है । एक दूसरे पर ऐसे आरोप भी लगाए जा रहे है की पैसे से या फिर पद के लालच मैं बिकने और खरीदने को तैयार है । देश के ऐसे राजनैतिक परिद्रश्य पर संभवतः २२ जुलाई के बाद ही विराम लग सकेगा । तब तक हमें रेडियो और टीवी के माध्यम से देखने और सुनने को और अखबार के माध्यम से पढने को यह सब मिलता रहेगा । तब तक आम आदमी और उसकी समस्यायें , देश और उसके महत्वपूर्ण मुद्दे और निर्णय हासिये पर जाते रहेंगे ।
देश मैं मचे राजनैतिक घमाशान से जन्हा लोगों की राजनीति से दूरियां बढ़ रही है वन्ही लोकतंत्र के साथ हो रहे इस घिनोने मजाक से लोगों का लोकतंत्र से विश्वाश उठने लगा है । लोकतंत्र के नाम पर पहले भी लोगों की भागीदारी सिर्फ़ वोट डालने तक सीमित थी , किंतु अब लोग अब इस पुनीत कार्य से भी कतराने लगे हैं । बमुश्किल ५० फीसदी से भी कम लोगों की चुनाव मैं भागीदारी रहती थी , किंतु ऐसी स्थिति मैं तो लोगों के रुझान मैं और कमी आएगी । आम जन अपने चुने हुए प्रतिनिधि के वादा खिलाफी और स्वार्थसिद्धि हेतु किए जाने वाले कारनामे से दुखित और निराश हैं ।
अतः राजनेता और राजनैतिक दल अपने हाथ से अपने पैरों मैं ख़ुद कुल्हाडी मारने का काम कर रहे हैं । वे लोकतंत्र रुपी जिस डाली मैं बैठे हैं उसे ही काटने को तुले हैं । जब लोगों का राजनेता और राजनैतिक दलों पर से विश्वाश उठने लगेगा तो लोगों का लोकतंत्र के प्रति रुझान मैं स्वतः ही कमी आने लगेगी । और जब लोग ही चुनाव मैं वोट डालने ही नही जायेंगे फिर लोकतंत्र तो खतरे मैं पड़ेगा ही , और जब लोकतंत्र खतरे मैं होगा तो फिर कान्हा राजनेता और कान्हा राजनैतिक दल सुरक्षित रहेंगे ।
यदि राजनेता और राजनैतिक दलों का ऐसा ही आचरण और आलम रहा तो एक दिन उनका अस्तित्व ही खतरे मैं आ जायेगा । अतः आवश्यकता है लोकतंत्र के प्रति लोगों के घटते विश्वाश को बचाने की , राज नेता और राजनैतिक दलों को अपने आचरण और कार्यों मैं सुधार कर खतरे मैं पड़ते अपने अस्तित्व को बचाने की । तभी देश मैं स्वस्थ्य लोकतंत्र के परचम को फिर से लहराया जा सकेगा ।
बुधवार, 16 जुलाई 2008
क्या वोट के अधिकार मात्र से सुधार मुमकिन है !
सोमवार, 14 जुलाई 2008
केन्द्र की हलचल पर एक नजर !
करार पर कई दिनों से U.P.A के घटक दलों के इनकार और इकरार का घटनाक्रम चल रहा था और अब यह अंजाम तक पहुच ही गया । U.P.A के साथ पिछले चार वर्षों से तू तू मैं मैं करते खड़े सहयोगी दल वाम मोर्चा ने समर्थन से हाथ खींच ही लिया एवं सरकार को अल्पमत मैं ला खड़ा दिया है । वाही सरकार के कुछ सहयोगी दल अभी भी सरकार के साथ खड़े हैं । इन घटनाक्रमों के चलते सरकार और सोनिया के धुर विरोधी दल सपा अब सरकार के साथ आ खड़े होने को लालायित हैं वह भी अपने पुराने सभी गिले शिकबे भूलकर । अब जन्हा सरकार से सहयोगी दलों का अलग हटना और वन्ही नए विरोधी दलों का सरकार से जुड़ने का अपना अपना नफे और नुक्सान का गणित हो सकता है , अतः अलग अलग लोगों के लिए इसका अलग अलग मत और सोचना हो सकता है .
जन्हा कांग्रेस पार्टी सरकार को बचाने की कवायद मैं जुट गई है वाही अभी तक राष्ट्रीय राजनीति के परिद्रश्य से हासिये पर पड़े क्षेत्रीय , छोटे दलों और निर्दलियों की महत्व्कांचा जाग गई है । उनके लिए यह अवसर होगा अपनी पूरी कीमत वसूलने का , मौका होगा सौदाबाजी का और मौका होगा अपने प्रतिस्पर्धी को पछाड़कर अच्छा से अच्छा ओहदा प्राप्त करने का । ऐसे समय मैं जन्हा कुछ दल सरकार मैं शामिल होकर और सरकार के प्रमुख दल के साथ मिलकर सत्ता की शक्ति का प्रयोग कर विरोधी दलों के बढ़ते हुए प्रभाव को कम करने का प्रयास करेंगे । यह सब कुछ राज्यों मैं और केन्द्र के चुनाव के मद्देनजर किए जायेंगे। इसी के मद्देनजर सरकार की जन विरोधी नीतियों और करार के नुक्सान के मुद्दे को कारण बताकर सरकार को गिराने का प्रयास करेंगे विरोधी दल ।
अब रहा देश और जनता का सवाल वह तो अभी हासिये मैं चला गया है , यंहा सिर्फ़ इस बात की चिंता है की सरकार को कैसे बचाया जाए , वाही विरोधी दल इस प्रयास मैं लगे है की किसी भी तरह सरकार को गिराया जाए । जनता यह सब देख रही है और देखने को मजबूर हैं । क्योंकि उसे तो समय का इंतज़ार है , फिर भी एक बात राजनैतिक बखूबी जानते हैं की हमारे देश की जनता बड़ी भोली है यदि उसे चुनाव के नजदीक वाले समय मैं अच्छा अच्छा दिखाया जाए और दिया जाए तो वह पुराने दिनों के दुःख दर्द और उनके साथ हुए धोखे और दगाबाजी के खेल को भूल जाती हैं । और तात्कालिक सुखों की खुमारी मैं वह एक बार पुनः वाही गलती करने को तैयार हो जाती है जो की पहले की थी । अब सब कुछ तो आने वाले समय के गर्त मैं छुपा है की ऊंट किस करवट बैठेगा । फिर भी देश मैं चल रही यह उठा पठक जरूर कुछ नया समीकरण पैदा करेगी - अच्छा या बुरा यह तो वक़्त ही बतायेगा ।
मंगलवार, 8 जुलाई 2008
खेल है कुर्सी का - न कोई दोस्त न कोई दुश्मन !
शुक्रवार, 4 जुलाई 2008
मातापिता के ख्वाब और बढती प्रतिस्पर्धा का शिकार होते बच्चे !
कहते है की जो ख्वाइश माता पिता अपने जीवन मैं पूरी नही कर पाते हैं , उस अधूरी ख्वाइश को वे अपने बच्चों के माध्यम से पूरा होते हुए देखना चाहते हैं । हर इंसान के मन मैं बचपन से एक सपना पलता है , हर इंसान अपनी रूचि के अनुसार क्षेत्र मैं एक मकाम हासिल करना चाहता है । कोई सफल गायक तो कोई डांसर , कोई डॉक्टर तो कोई इंजिनियर , कोई क्रिकेटर तो कोई फूटबाल का सफल खिलाडी , तो कोई अच्छी नौकरी पाना चाहता है । किंतु यह सम्भव नही की हर इंसान का हर ख्वाब पूरा हो , कुछ आर्थिक तो कुछ सामाजिक तो कुछ पारिवारिक और कुछ आशा के विपरीत अचानक आने वाली परिस्थितियां मन मैं पलने वाले ख्वाब को पूरा होने मैं बाधक बनती है । ऐसे मैं इंसान अपने अधूरे ख्वाब को दिल के किसी के कौने मैं छुपाये रखता है । किंतु माता पिता बनने के बाद अपने अधूरे ख्वाब को पूरा करने हेतु अपने बच्चे को माध्यम बनाते हैं । ऐसी स्थिती मैं वे यह सोचना भूल जाते हैं की हम जिस ख्वाब को पूरा करने हेतु अपने बच्चे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं क्या उनका बच्चा उसमे रूचि रखता है ? क्या वह उनके अधूरे ख्वाब को पूरा करने मैं सक्षम हैं ? बच्चे के भी अपने स्वयं के द्वारा गढे गए सपने होते हैं ऐसे स्थिती मैं माता पिता के ख्वाब और स्वयं के ख्वाब के बीच पेंडुलम बनकर रह जाता है
कुछ मामलो मैं तो माता पिता द्वारा अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को बरक़रार रखने और झूठी शान दिखाने के चक्कर मैं बच्चे से उनकी योग्यता , क्षमता और रूचि के विपरीत कार्य और परिणाम प्राप्त करने हेतु दबाब बनाया जाता हैं ।
आज की बढती प्रतिस्पर्धा भी इन बातों के लिए जिम्मेदार हैं जो माता पिता और बच्चों की अपनी क्षमता से बढ़कर कार्य करने और रूचि के विपरीत क्षेत्र को चुनने हेतु बाध्य करता हैं ।
नतीजा यह होता है वाँछित परिणाम न दे सकने की स्थिती मैं कमजोर दिल और दिमाग वाले बच्चे दबाब बस टूट जाते हैं । अतः एक बंगाली टीवी नृत्य प्रतियोगिता की प्रतिभागी शिंजिनी सेन गुप्ता जैसे बच्चे , वांछित परिणाम न प्राप्त करने और अपने प्रदर्शन पर निर्णायक मंडल द्वारा की गई टिप्पणी से आहत होकर जीवन का संतुलन बरक़रार नही रख पाते हैं और टूट कर बेबस हो जाते हैं ।
अतः आवश्यक है की बच्चे की रूचि , योग्यता और क्षमता के अनुरूप ही उनसे परिणाम प्राप्त करने के आशा की जाए । उन पर उनकी क्षमता से अधिक प्राप्त करने हेतु अनावश्यक दबाब न बनाया जाए । बच्चे के असफल होने अथवा वांछित परिणाम प्राप्त करने की स्थिती मैं उन्हें प्रताडित और आलोचना करने की बजाय आगे और अच्छे प्रयास करने हेतु समझाइश और सलाह दी जाए।