बुधवार, 16 जुलाई 2008

क्या वोट के अधिकार मात्र से सुधार मुमकिन है !

हर बार देश मैं मचे राजनैतिक घमासान पर जनता को दोषी ठहराकर और जनता के ऊपर जिम्मेदारी डालकर मुंह मोड़ लिया जाता है और हर पार्टी अपनी विरोधी पार्टी के कारनामे पर कहती है की जनता सबक सिखायेगी । हर राजनैतिक पार्टी और राजनेता जनता को भगवान् मानकर हर मसले पर जनता की अदालत मैं जाकर देश के हर मसले को सुलझाने की बात करती है । किंतु वे ही जनता की आँख मैं धूल झोंककर और विश्वाश्घात कर अवसरवादिता और स्वार्थ सिद्धि का खेल खेल रही है ।
जनता की बात करे तो क्या जनता मैं ऐसे कितने लोग है जो बिना किसी पूर्वाग्रह से , बिना लालच मैं आए अपने स्वविवेक से अपने प्रतिनिधियों को चुनने मैं अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । ऐसे कितने लोग है जो देश हित और जन हित के मुद्दे को ध्यान मैं रखकर अपना नेता को चुनते हैं । जनता मैं बहुत से लोग ऐसे हैं जो शिक्षित नही हैं , वे कितने अच्छे तरह से अपने देश , प्रदेश और अपने बारे मैं सोचते होंगे , और जो किसी भी तरह के बह्काबे मैं नही आते होंगे । तो उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है की वे निष्पक्ष और तात्कालिक लाभों को दरकिनार कर अपना स्पष्ट वोट देकर अपने लिए उपयुक्त प्रतिनिधियों को चुन पाते होंगे । कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें अपनी रोजीरोटी के जुगाड़ की चिंता के चलते देश , प्रदेश और देश की राजनीति के बारे मैं सोचिने की फुर्सत ही नही हैं । राजनीति अब तो शहर क्या हर गाँव गाँव मैं समा चुकी हैं । गाँव मैं पंचायत स्तर से लेकर हर छोटे छोटे स्तर के संगठनो के लिए होने वाले चुनावों मैं राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर की पार्टी का दखल रहता है , तो ऐसे मैं जनता किसी न किसी पार्टी की विचारधारा से प्रेरित हुए बिना नही रह सकेगी । स्वाभाविक है की जनता अपनी विचारधारा वाली पार्टी के सही और ग़लत कारनामे का समर्थन करते हुए नजर आएगी । अतः ऐसे मैं जनता के निष्पक्ष और पूर्वाग्रह से रहित नही कहा जा सकता है । इन्ही सब बातों का हा प्रभाव ही कहा जा सकता है की आज पार्टी से जुड़े आमजन पार्टियों द्वारा आयोजित किए जाने वाले बंद , हड़ताल और धरनों और जुलुशों मैं बिना किसी हिचक के भाग लेते हैं ।
अतः देश के हर राजनैतिक घटनाक्रमों पर अब यह कहना बेमानी साबित होता है की जनता ही इसका सही जवाव देगी । अपने प्रतिनिधियों को चुनने के वोट के अधिकार के आधार पर देश के राजनेताओं और राजनीति को सुधारने की उम्मीद करना उचित जान नही पड़ता है । एक बार प्रतिनिधियों को चुनने के बाद तो जनता को आगामी चुनावों तक उनके चुनिन्दा नेताओं के कारगुजारियों को देखने हेतु बाध्य और मजबूर होना पड़ता है । एक बात यह भी है की जनता को पार्टियों द्वारा थोपे गए प्रतिनिधियों को चुनने हेतु बाधा होना पड़ता हैं । जनता को न तो उनका अतीत जानने का अधिकार है और न चुनने के बाद उनका भविष्य । वे पहले क्या थे और अब वे क्या हो गए हैं । जिस जनता के नाम पर देश मैं शासन होता है आज वही इन राजनैतिक पार्टी और राजनेताओं द्वारा छली जा रही हैं ।
अतः देश मैं चल रहे इस प्रकार के छदम और कलंकित होती राजनैतिक कारगुजारियों पर रोक लगाना , जनता के सहारे तो असंभव ही जान पड़ता है ।

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