शुक्रवार, 15 अगस्त 2008

एक लड़ाई नकारात्मक सोच के अपने ही लोगों से !

आजादी की 61 वी वर्षगाँठ मना रहे हैं . न जाने कितने ही लोगों ने अपने सुखों , पारिवारिक हितों और अपनी जान की परवाह किए बगैर बाहरी लोगों से लड़कर आजादी को दिलाने हेतु अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया होगा और इस मंगल कामना के साथ इस देश को आगामी पीढी के हवाले कर इस जन्हा से रुखसत हुए होंगे की , देश के लोग और देश भय , भूख , भ्रष्टाचार और अराजकता जैसी समस्याओं से मुक्त होकर निरंतर सुख , समृद्धि और विकास के नित नए आयाम और सिखर को छुयेगा . किंतु इन सब से इतर देश मैं अपने ही लोगों द्वारा बनायी जा रही भूख , भय , भ्रष्टाचार और राजनैतिक और सामाजिक अराजकता की बेडियों मैं जकड़ते जा रहा हैं .
आजादी से लेकर अब तक हर क्षेत्र मैं हुए विकास को नकारा नही जा सकता है . किंतु लगता है की देश ने जन्हा स्रजनात्मक द्रष्टि वाले कड़ी म्हणत और दृढ इक्छा वाले लोगों के योगदान से विकास किया है वन्ही नकारात्मक और अरचनात्मक द्रष्टिकोण वाले लोगों द्वारा पैदा की जा रही नित नई समस्याएं जो लोगों का जीना मुहाल कर रही है और देश मैं अशांति और भय का वातावरण निर्मित कर देश के अब तक हुए विकास को धता बता रही .
देश मैं धधकती कश्मीर की आग जो वोट बैंक और दृढ इक्छा शक्ति के अभाव मैं उन्सुल्झी रहकर सारे देश को झुलसाने को तैयार है , कमर तोड़ मंहगाई जो हर प्रयासों के बाद भी दिनों दिन सुरसा की तरह मुंह फाड़ रही है और आम आदमी के लिए संतुलित भोजन को दूर की कौडी साबित कर पेट भरने के लिए दो वक़्त की रोटी जुटाने मैं भी उलझाने पैदा कर रही है , आतंकवाद की समस्या जो इतनी सम्रद्धि होने के वाद भी लोगों को असुरक्षा और भय के माहोल मैं जीने को मजबूर कर रही है , देश मैं उत्पन्न राजनीति अराजकता की स्थिति जिसमे नैतिकता , सैधांतिक वैचारिकता और संवेदनशीलता शुन्य हो गई है , जन्हा देश हित और जन हित गौण होकर सत्ता सुख , व्यक्तिगत और राजनैतिक हित महत्वपूर्ण हो गए है , जन प्रतिनिधियों के खरीद फरोख्त से लेकर हर छोटे छोटे कार्यों मैं रुपयों की बोली लगने लगी है , जिससे ऐसा लगता है की भ्रष्टाचार अब समस्या नही अब जीवन के आम दिनचर्या का हिस्सा है . धर्मं और आध्यात्मिकता को व्यापार और वसाय का रूप देकर और छल कपट की नीति को अपनाकर उसकी आड़ मैं नैतिकता की हदें पार की जा रही है . विरोध प्रदर्शन के नाम पर चक्का जाम , जुलुश और बंद के दौरान लूट , आगजनी , हिंसा और तोड़फोड़ कर राष्ट्रीय संपत्ति को नुक्सान पहुचकर और आम आदमी के जीवन की परवाह न कर मानविय संवेदना को टाक पर रखा जा रहा है .
इन समस्यायों के अब तक तो कोई ठोस और सर्वमान्य हल सामने नही आए है . देश की सरकार और प्रशासन की कार्यशैली को देखते हुए ऐसा लगता भी नही है इन समस्याओं से देश को मुक्ति मिल सकेगी ।

अतः आवश्यकता है अपने ही बीच के नकारात्मक और अरचनात्मक द्रष्टिकोण वाले लोगों से एक लड़ाई और लड़ने की जो देश को भूख , भय , भ्रष्टाचार और राजनैतिक और सामाजिक अराजकता की बेडियों से मुक्ति दिला सके ।

इस आशा और विश्वाश के साथ की यह पर्व देश और देश के सभी लोगों के लिए सुख समृद्दी भरा होगा । सभी को इस राष्ट्रीय पर्व की हार्दिक बधाई ।

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