मंगलवार, 26 अगस्त 2008

कलाकार की नैसर्गिक प्रतिभा का दम न घुटे !

टीवी चैनल प्रतियोगिताएं का आयोजन कर देश के कला प्रतिभायों को कला प्रदर्शन हेतु समुचित मंच और उचित अवसर प्रदान करा रहे है । जिसमे गायन , नृत्य , हास्य कला , साहसिक खेल और ज्ञान आधारित प्रतियोगिताएं शामिल हैं । टीवी मैं होने वाली इन प्रतियोगिताएं मैं प्रतियोगियों को स्वयं की मौलिक और प्रक्रत्रिक प्रतिभायों के प्रदर्शन का अवसर मिलता है और वे अपने अन्दर निहित प्रतिभा , कला और हुनर को प्रर्दशित करते हैं , किंतु इस समय टीवी मैं कुछ प्रतियोगिताएं जैसे गायन और नृत्य की , जिसमे प्रतियोगी अपनी मौलिक और स्वाभाविक प्रतिभा के स्थान पर सिखर कलाकारों की नक़ल करते दिखायी देते हैं । जैसे की गायन मैं गायक प्रतिभाएं सुप्रसिद्ध गायकों के गाने अपनी मौलिक आवाज़ मैं गाने के स्थान पर हु बा हु नक़ल करते हैं । ठीक इसी तरह नृत्य कला के प्रतियोगी भी नृत्य कलाकारों के नृत्य की नक़ल करते हैं । ऐसी स्थिती मैं ऐसा लगता है की ये प्रतियोगी प्रतिभाएं परंपरागत और पूर्व कलाकारों का अनुसरण और नक़ल कर अपने अन्दर के स्वाभाविक कलाकार को मार रहें हैं ।

सिखर कलाकारों की कला शैली का अनुसरण सिर्फ़ अपनी प्रतिभा को बढ़ाने और निखारने के लिए होना चाहिए ना अपनी स्वाभाविक और मौलिक प्रतिभा को दबाने और ख़त्म करने के लिए । इन प्रतियोगिताएं के निर्णायक मंडल के सदस्य भी प्रतियोगियों को इस तरह करने से नही रोकते हैं , कई बार इन निर्णायक मंडल मैं ऐसे सदस्य होते हैं जो उस कला मैं पारंगत नही होते हैं या फिर उस कला प्रतियोगिता के क्षेत्र के नही होते हैं , ऐसे मैं ये निर्णायक सदस्य प्रतियोगी की प्रतिभाओं को आंके मैं कितना न्याय करते होंगे , यह सोचने बाली बात है ।

इस समय टीवी चैनल द्वारा नई प्रतिभाओं को उनकी कला और हुनर को दुनिया के सामने प्रदर्शन हेतु उचित मंच प्रदान किया जा रहा है साथ ही उनकी कला को परिमार्जित और पल्लवित होने हेतु समुचित अवसर और संसाधन उपलब्ध कराये जा रहे है । टीवी चैनल के ये प्रयास अत्यन्त सराहनीय हैं और वे इस बात के लिए साधुबाद के पात्र हैं । किंतु आयोजित होने वाली प्रतियोगिताएं मैं इस बात पर तबज्जो दी जानी चाहिए की प्रतियोगी कलाकारों की नैसर्गिक , मौलिक और स्वाभाविक प्रतिभा को निखरने का अवसर मिले , ना की उसका दम घुटे । प्रतियोगी को भी इस बात ध्यान रखना चाहिए की सिखर कलाकारों की कला शैली को प्रेरणा और मार्गदर्शन स्वरुप अपनाना चाहिए , और उसका उपयोग अपनी स्वाभाविक और नैसर्गिक प्रतिभा और कला को परिमार्जित और परिष्कृत करने हेतु अपनाए , ना की हु बा हु नक़ल कर अपने अन्दर की नैसर्गिक प्रतिभा को दबाने हेतु ।

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