शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2008
ब्यूटीफुल और हेंडसम की चाहत !
गुरुवार, 23 अक्टूबर 2008
उत्तर भारतियों बंधुओं को अपने क्षेत्र से क्यों पलायन हेतु मजबूर होना पड़ता है .
बुधवार, 22 अक्टूबर 2008
देश के कदम चंद्रमा पर - कुछ खुशी कुछ गम !
सोमवार, 20 अक्टूबर 2008
क्या चुने हुए जनप्रतिनिधि / सरकार सभी जनता / देश का प्रतिनिधित्व करती है !
शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2008
वादा और वचन की तबियत बिगाड़ रखी है राजनेताओं ने .
जी हाँ वादा , वचन या आश्वाशन और इंग्लिश मैं कन्हे तो प्रोमिस । अब जीवन मैं इन शब्दों का उपयोग बेमानी सा लगने लगा है । अब लोग किए गया वादा , वचन और आश्वाशन पर विशवास नही कर रहे है । क्योंकि इन राजनेताओं ने इन शब्दों के साथ खेलकर और अपने राजनैतिक हितार्थ इनका मन माफिक प्रयोग कर इनकी तबियत ख़राब कर रखी है । वैसे ही जैसे भगवान् राम के नाम को किसी एक पार्टी से जोड़कर देखना , रंगों एवं प्रतीकों को किसी अन्य पार्टी से जोड़कर देखना वैसे ही अब इन शब्दों को राजनेताओं की भाषा से जोड़कर देखा जाना लगा है । अब वो दिने गए जब वादा और वचन का बड़ा महत्व होता था । दिया गया वादा और कही गई बात पत्थर की लकीर होती थी । भगवान् राम के युग मैं तो प्राण जाए पर वचन ना जाए के धर्मं का पालन किया जाता था । प्रेमी भी वादा और आश्वाषणों जैसे शब्दों का प्रयोग करने से कतराने लगे है । अब वे प्रेमी अथवा प्रेमिका द्वारा किए गए वादों विशवास करने मैं संकोच करने लगे हैं । अब कसमों और वादों पर बने हुए गाने भी बेमानी लगने लगे है , जैसे वादा रहा सनम होंगे न जुदा सनम , जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा , वादा करले साजना तेरे बिन मैं न रहू मेरे बिन तू न रहे इत्यादि इत्यादि ॥ वही कुछ दूरदर्शी गीतकार ने यह भांप लिए था की वादा और वचन शब्द का क्या हश्र होना है तो उन्होंने ने कुछ ऐसे गीत लिख डाले जैसे कसमे वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या , क्या हुआ तेरा वादा , मिलने की कोशिश करना वादा कभी न करना वादा तो टूट जाता है आदि आदि । इसी कारण आजकल की फिल्मों मैं तो प्रेमी और प्रेमिका के वादा और अश्वाशानो वाले द्रश्य भी कम ही देखने को मिलते हैं । इसी का ही प्रभाव है की आजकल की युवा पीढी बंधन और जीवन भर साथ निभाने वाली शादी और विवाह जैसे संस्था से परहेज करने लगे हैं और लाइव इन रिलेशन शिप को अपनाने को महत्त्व दे रहें है ।
इन शब्दों से विश्वास इतना उठ गया है की अब हर कही गई बात का लिखित प्रमाण मांगने लगे हैं । क्योंकि इन राजनेताओं के रोज बदलते बयानों और वादों ने इतनी छबि ख़राब कर रखी है । इनके चुनाव के समय किए वादों और आशावाशानो को पूरा होने की रास्ता देखते देखते लोगों की नजरें सूख जाती है और अगले पाँच साल बाद फिर नया वादों और अश्वशानो के साथ खड़े हो जाते है और उनसे यह भी नही पूछ पाते है की क्या हुआ तेरा वादा । जो ज्यादा पूछता है तो उसे कोई उपहार और सुख सुबिधायें दे दी जाती है ।
तो देश मैं अब चुनाव का समय आ गया है । और नए वादों और वचनों के साथ फिर हाज़िर है हमारे देश के कर्णधार और राजनेता । अब देखें जनता किसके वादों पर कितना विश्वाश करती है और अपना अमूल्य मत देती है ।
गुरुवार, 16 अक्टूबर 2008
आर्थिक मंदी - दोषी सरकार या जनता !
बुधवार, 15 अक्टूबर 2008
क्या संसकारों और मर्यादाओं को लांघना ही आधुनिकता का परिचायक है .
मंगलवार, 14 अक्टूबर 2008
चुनाव के दो दृश्य - सकारात्मक और नकारात्मक !
सोमवार, 13 अक्टूबर 2008
जेंटल मेन गेम के खिलाडी ग्लेमर की चकाचोंध मैं धर्म को भूले !
क्रिकेट सभ्य लोगों का खेल कहलाता है । किंतु इस सभ्य खेल के सभ्य खिलाडी ग्लेमर की चकाचोंध से अपने आप को नही बचा सके । फिल्मों और टीवी और फैशन के ग्लेमर की चमक के सामने क्रिकेट के ग्लेमर की चमक फीकी पड़ गई , और सभ्य खिलाडी इस ग्लेमर की चमक मैं फंस गए । आज के क्रिकेट खिलाडी ग्लेमर की अंधी दौड़ मैं शामिल होकर ख़ुद को और अधिक धन और शोहरत कमाने की हसरत से ख़ुद को रोक नही पाये , यंहा तक की अपने मूल खेल की जिम्मेदारी को भुलाकर । और इसमे इस खेल की प्रमुख संस्था बी सी सी आई भी अपने आप को दूर रख नही पायी । चाहे वह किसी उत्पाद के प्रमोशन हेतु विज्ञापन की बात हो । चाहे वह फैशन जगत मैं रैंप मैं चलने की बात हो , फिल्मों और टीवी धारावाहिकों मैं काम करने की बात हो या फिर अब कलर टीवी के एक खिलाडी एक हसीना के प्रोग्राम मैं टीवी अदाकारों के साथ नृत्य करने की बात हो ।
खिलाड़ियों द्वारा अपने मूल खेल को छोड़कर इस तरह ग्लेमर जगत की चकाचोंध वाली गतिविधियों मैं शामिल होने पर छुटपुट विवाद बनते और उठते रहे । किंतु कलर टीवी के एक खिलाडी एक हसीना प्रोग्राम मैं हरभजन का रावण का और उनकी सहभागी मोना सिंह का सीता का रूप धरकर विवादित नृत्य कर धार्मिक भावनाओं को आहात करने वाली घटना ने एक बड़े विवाद को जन्म दे दिया है । इस पर सिख संगठन और हिंदू संगठन ने आपति उठायी है , और ख़बरों के अनुसार उनके ख़िलाफ़ हिंदू देवी देवताओं का मजाक उडाकर धार्मिक भावनाओं को आहात करने पर कोर्ट मैं इसके ख़िलाफ़ केस भी दायर किया गया है ।
पहले भी मनोरंजन , कला प्रदर्शन और अभिव्यक्ति के नाम पर विवादस्पद होकर प्रसद्धि पाने के कुत्सित प्रयासों के चलते धार्मिक देवी देवताओं के सम्बन्ध मैं विवादस्पद बातों को अंजाम दिया गया है । क्या किसी धर्मं के आस्था और श्रद्धा के प्रतीक को निशाना बनाकर और उनका मजाक बनाकर सस्ती शोहरत हासिल किया जाना सही है । क्या ऐसी सस्ती लोकप्रियता की उमर लम्बी हो सकती है ? यदि इस प्रकार के विवादस्पद कार्यों जिसमे धार्मिक भावनाएं आहत हो के कारण यदि कोई देश और प्रदेश मैं अशांति का माहोल पैदा होता है तो क्या विवादों को जन्म देने वाले लोग इसकी जिम्मेदारी लेंगे ? हड़ताल , आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं होती है और उस पर जन और धन की कोई हानि होती है तो क्या ऐसे लोग इसकी जिम्मेदारी लेंगे ? यदि नही तो फिर बार इस तरह विवादास्पदों बातों को अंजाम देने वाले लोगों के ख़िलाफ़ कड़ी करवाई क्यों नही की जाती , क्यों ऐसे लोगों को समाज मैं घूमने के लिए खुला छोड़ दिया जाता है ?
अतः ऐसे लोग चाहे वे किसी खेल के राष्ट्रीय टीम के खिलाडी हो या फिर देश के व्ही आई पी ही क्यों न हो , के विरुद्ध कड़ी कारर्वाई की जानी चाहिए , ताकि दुबारा लोग इस तरह की विवादस्पद बातों को अंजाम देने से परहेज करें । और देश और प्रदेश मैं शान्ति और भाईचारे के वातावरण को दूषित और नुक्सान न पंहुचा सके । साथ ही खिलाड़ियों को भी अपनी वरिष्ट नागरिक की छबि और जिम्मेदारी को ध्यान मैं रखते हुए ऐसे विवादस्पद बातों को अंजाम देने से बचना चाहिए , क्योंकि इससे उनके लाखों प्रशसंकों और धर्मं से जुड़े करोरों लोगों की देवी देवताओं के प्रति आस्था और विशवास की भावना भी आहत नही होगी और सभ्य खेल की छबि भी बरकरार रहेगी .
बुधवार, 8 अक्टूबर 2008
ब्लॉग मैं धर्मं के प्रति उठे सवाल और संसय को सकारात्मक रूप मैं प्रस्तुत किया जाना चाहिए !
देश मैं चारों और धर्मं और भक्तिमय वातावरण बना हुआ है । नवरात्र और ईद के पवित्र अवसर पर सारा वातावरण आस्था और श्रद्धा के भक्तिमय वातावरण से सराबोर हैं । ऐसे अवसरों पर हिन्दी ब्लॉग जगत मैं भी इसका असर दिख रहा है । इन खुशी और आस्था के अवसर पर शुभकामनाएं और मंगल कामनाये दी जा रही है और इश्वर , परमात्मा , खुदा के इबादत और पूजा अर्चना की बात की जा रही है ।
किंतु वही इसके इतर ब्लॉग जगत मैं धर्मं और इश्वर , परमात्मा मैं खामियां और कमियां ढूंढकर उनपर उँगलियाँ उठायी जा रही है । हो सकता है की धर्मं और परमात्मा , इश्वर एवं धर्मं के पथ प्रदर्शक द्वारा बतायी गई बातें और मानव हित एवं कल्याण मैं उनके द्वारा किए कार्य की कुछ बातें आज के इस बदलते दौर मैं प्रासंगिक नही रही हो । हो सकता है धर्मं ग्रंथों मैं लिखी गई कुछ बातों मैं मत भिन्नता हो ,या फिर कुछ बातों को लेकर संसय और सवाल हो , किंतु कुछ बातों के संसय को लेकर पूरी बात की हकीकत को जाने बगैर , पूरे धर्मं और धर्मं के पथ प्रदर्शकों और उनके द्वारा दी गई सीखों पर उँगलियाँ उठाई नही जाना चाहिए । सदियों से ये धर्मं और उनके आदर्शों को इतनी श्रद्धा और आस्था और विश्वाश के साथ अपनाया जाना , निराधार और बेबुनियाद नही हो सकता है । धर्मं और इश्वर , परमात्मा एवं पथ प्रदर्शक के आदर्श और सीखें ही है जो इंसान को इंसानियत और मानवता की सीख देता है भाई का भाई के प्रति एवं भाई का बहन के प्रति , पुत्र / पुत्रियों का माता पिता के प्रति एवं माता पिता का अपने बच्चों के प्रति कर्तव्यों और जिम्मेदारियों , संबंधों की मर्यादा एवं समाज मैं नैतिक आचरण का निर्धारण कर पारिवारिक मूल्यों को कायम रख जीने की सीख देता है । आज देश को यही चीज जोड़े हुई है । ये बात अलग है की कुछ लोगों द्वारा इसकी आड़ मैं ग़लत आचरण और ग़लत रास्ते अपनाए जा रहे हैं । किंतु इससे पूरे धर्मं और उनके आदर्शों को दोष देना उचित नही है ।
यह देखने मैं आता है की ऐसे धर्मों मैं खामियां निकालकर उस आधार पर धर्मं को ग़लत कहने को कोशिश की जाती है जिनके अनुयायी कठोर रुख नही अख्तियार नही करते हैं । जो हमेशा ऐसी बातों से विचलित हुए बिना विवादों को नजरअंदाज कर अपनी आस्था और विश्वाश मैं अडिग रहते हैं ।
ऐसे अवसरों पर धर्मं और उनके पथ प्रदर्शकों के चरित्र और परमात्मा एवं इश्वर द्वारा बताये गए रास्तों और आदर्शों मैं खामियां निकालकर उसे विवादस्पद बनाकर एवं नकारात्मक रूप मैं अपने ब्लॉग मैं प्रस्तुत करना क्या अपने ब्लॉग को प्रसद्धि दिलाने का प्रयास नही लगता है । यदि धर्मं की किसी बात को लेकर कोई संसय और सवाल है तो उसे सकारात्मक रूप देते हुए उसका समाधान और हल ढूँढने का प्रयास नही किया जाना चाहिए । एक से अधिक धर्मं पुरुषों द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन कर संसय को दूर करने या फिर धर्मं के ज्ञाता और विद्धवान से इस बात का समाधान प्राप्त करने का प्रयास नही किया जा सकता है । बजाय अधूरे ज्ञान और अधूरे अध्ययन के और बिना किसी समुचित प्रमाण के उँगलियाँ उठाने के ।
अतः जरूरी है की ब्लॉग के माध्यम से यदि धर्मं की किसी बातों के बारे मैं संसय है तो उसे सकारात्मक रूप और शालीन तरीके से उठाया जाना चाहिए , बजाय उसे विवादस्पद और नकारात्मक रूप मैं प्रस्तुत करने के । इससे एक तो धर्मं के लोगों की आस्था और विश्वाश को ठेस नही पहुचेगी और हिन्दी ब्लॉग जगत की सादगी भी बनी रहेगी ।
मंगलवार, 7 अक्टूबर 2008
जवानों का मनोबल गिराकर, राजनेता स्वयम की सुरक्षा को दाव पर लगा रहे हैं !
सोमवार, 6 अक्टूबर 2008
लोग उग्र और हिंसक क्यों होते जा रहें हैं !
शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2008
अब हर फिक्र को धुँए मैं कैसे उडायेंगे .
ये सरकार ने भी क्या कर डाला । अब लोग अपनी फिक्र को धुँए मैं कैसे उड़ा पायेंगे । अब तो वो गाना भी बेमानी हो जायेगा की " मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया , हर फिक्र को धुएँ मैं उडाता चला गया " । तो अब जिन्दगी का साथ निभाने के लिए जो चिंता और फिक्र है उसको अब धुँए मैं नही उडाया जा सकेगा । ये सरकार भी जो हैं न , जिसे की जनता के सहूलियत को ख़याल रखना चाहिए , उसी को परेशान करने मैं लगी है । अरे जिस धुएँ के सहारे लोग बड़ी से बड़ी चिंता और फिक्र को दूर करते थे , बड़ी से बड़ी परेशानी का हल ढूँढ निकालते थे , ज्यादा नही तो कम से कम धुएँ के सहारे कुछ समय के लिए ही सही चिंता और फिक्र से राहत पाते थे । अब उनका यही राहत देने वाला साधन ही छीन लिया गया है । सरकार ने तो बड़ी मुश्किल कर दी है । सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर रोक लगाकर । यंहा तक तो ठीक था , बार और मैखाना तक मैं भी धुएँ उडाने पर पाबंदी लगा दी गई है । लगता है अब गाना बदलना पड़ेगा और अब फिक्र को धुएँ उडाने की बजाय , मैखाने मैं शराब और मदिरा मैं बहा कर काम चलाना पड़ेगा ।
धुएँ उडाने वालों की बड़ी परेशानी बन गई है घर वाले भी आजकल घरों मैं धुआं उडाने से मना करते हैं जिसके कारण घर के बाहर धुआं उडाया करते थे , किंतु अब वह भी बंद कर दिया गया है ।
सरकार को आम जनता का धुएँ उडाना ही नजर आ रहा है , दूसरों का धुएँ उडाना नजर नही आ रहा है । वो रेलवे वाले इतना धुआं उडा रहा है उन्हें कोई नही बोल रहा है । बड़ी बड़ी कंपनी वाले धुएँ उड़ा कर पर्यावरण को ख़राब कर रहें है , उन पर पाबंदी लगाने की कोई फिक्र नही है । दिन रात सरकार की मंत्री और अफसर गाड़ी दौड़ा दौड़ा कर धुआं उडा रहे हैं जनता के पैसे को बेफिक्र होकर उड़ा रहें है वो सरकार को नजर नही आ रहा है ।
वैसे चुनाव का समय आ रहा है यदि धुआं उडाने वाले चाहते हैं की उनका यह प्रतिबन्ध सरकार वापस ले ले , तो जल्द से जल्द अपना एक धुआं उडाने वाला संघटन बनाए , और सरकार को संगठन की वोट बैंक की शक्ति को दिखाएँ , जगह जगह धरना , प्रदर्शन और जुलुश निकाले तब सरकार निश्चित रूप से यह पाबंदी हटा सकती है क्योंकि इतने सारे वोट जो उससे दूर चले जायेंगे । तो धुआं उडाने वालों देर किस बात की , शुरू हो जाओ और अपने धुएँ उडाने के अधिकार को मौलिक अधिकार मैं जुड़वाँ लो यही अच्छा समय है । और फिर से अपनी फिक्र को धुएँ मैं उड़ा कर मस्त और खुश रहो ।
यह तो रही धुएँ उडाने वालों की बात , जनता की बात करें तो सरकार लोगों के धुएँ उडाने को रोकना चाह रही है किंतु वह ख़ुद देश की सुरक्षा , विकास , गरीबी और भ्रष्ट्राचार जैसे जनहित मुद्दे को की फिक्र को धुएँ मैं उडाकर मस्त हैं ।
अजी हम तो चाहते हैं की जिस तरह से सरकार जनता का धुआं उडाना बंद कर पीने वालों और नही पीने वालों के स्वास्थय का की फिक्र कर रही है ठीक उसी तरह देश की सुरक्षा , विकास , गरीबी और भ्रष्ट्राचार एवं देश हित और जनहित की अन्य समस्यायों की फिक्र को यूँ ही धुएँ मैं न उडाये , वरन उनको भी इसी तरह रोकने की इक्छा शक्ति दिखाएँ ।
बुधवार, 1 अक्टूबर 2008
जोधपुर की दुखद घटना - कब समझेंगे सब .
अतः इस ईद और नवरात्र के पवित्र मौके पर ऐसी मंगल कामना की जानी चाहिए की धार्मिक उत्सवों और आयोजन के शुभ अवसरों पर ऐसी दुखद और हिरदय विदारक घटना की पुनरावृत्ति नही होगी . हमारी वी आई पी भी भगवान् के दरबार मैं भी अपने को श्रेष्ट साबित करने से बचेंगे । मन्दिर प्रशासन और सरकार भी ऐसे धार्मिक शुभ अवसरों पर समुचित व्यवस्था करेंगी . साथ ही भक्त और श्रद्धालु भी भगवान् के दरबार मैं शान्ति और धैर्य के साथ शुभाशीष प्राप्त करने हेतु पहुचेंगे .