गुरुवार, 23 अक्टूबर 2008

उत्तर भारतियों बंधुओं को अपने क्षेत्र से क्यों पलायन हेतु मजबूर होना पड़ता है .

महाराष्ट्र प्रदेश मैं महाराष्ट्र नवनिर्माण पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा रेलवे की परीक्षा देने आए उत्तरभारतीयों को ढूँढ कर उनकी पिटाई की गई और उन्हें महाराष्ट्र मैं परीक्षा देने से रोका गया और यह कहकर विरोध किया गया की उत्तर भारतियों स्थानियों लोगों के रोजगार और संसाधन का अतिक्रमण कह रहें है । उत्तर भारतियों के विरोध की यह लहर महाराष्ट्र नवनिर्माण पार्टी के प्रमुख राज ठाकरे और उनके कार्यकर्ताओं की और से पहले भी उठ चुकी है और अब यह विकराल रूप लेती नजर आ रही है । इस तरह का विरोध देश के किसी भी नागरिक को देश के किसी भी कौने मैं जाकर रहने और जीवन बसर करने के अधिकार के विरुद्ध है और इस तरह का कार्य किसी भी राजनीतिक पार्टी द्वारा अपना आधार मजबूत करने और वोट बैंक की राजनीति के तहत किया जा रहा है जो की बिल्कुल ग़लत है ।
फ़िर भी इस बात पर विचार तो किया जाना चाहिए की क्यों उत्तर भारतीय बंधू अपनी जन्मभूमि , माटी , अपने परिवार और अपने लोगोने को छोड़कर अपने प्रदेश से पलायन करने हेतु मजबूर होना पड़ता है । क्यों उन्हें अन्य प्रदेशों मैं रोजगार की तलाश हेतु भटकना पड़ता है और अपमानित होना पड़ता है । देश के हर मुद्दे की तरह इस मुद्दे को भी राजनीतिक रंग दिया जा रहा है बजाय इस समस्या के मूल मैं जाने के । उत्तर भारतियों के प्रदेश के जननेता जो स्वयम को प्रदेश और प्रदेश की जनता का रहनुमा और जन हितेषी कहते हैं वे इस समस्या को राजनीति रंग देकर और एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप कर जनता को दिग्भ्रमित और उलझाने का कार्य करते हैं । यदि यही जन नेता अपने प्रदेश की विकास और जनहित पर विशेष ध्यान देते और प्रदेश मैं उपलब्ध संसाधन के आधार पर विकास का मूलभूत ढांचा तैयार करते तो ऐसा कोई कारण नही बनता की उत्तर भारतीय बंधुओं को रोजगार की तलाश मैं इधर उधर भटकना पड़ता ।
वैसे इस प्रकार विरोध का स्वर आज नही तो कल उठाना स्वाभाविक था , जो की एक राजनीतिक पार्टी ने जल्द ही लपककर अपना आधार बढ़ाने और ख़ुद को महाराष्ट्रीय मानुष का हितेषी साबित करके वोट बैंक की राजनीति कर रही है । कोई घर का सदस्य यह कैसे बर्दाश्त करेगा की कोई बहार का व्यक्ति उसके संसाधन और सुबिधाओं का उपभोग करे और उसे उसके मूलभूत आवश्यकताओं के अधिकार से वंचित होने के स्थिती मैं खड़ा होना पड़े ।
अतः जरूरी है की प्रदेशों और देश के नीति निर्माताओं और प्रशासन को चाहिए की ऐसी नीतियां और विकास का ऐसा खाका तैयार किया जाए की देश के हर व्यक्ति को उसके स्थानीय स्तर पर रोजगार के साथ साथ जीवन की सभी आवश्यक मूलभूत सुबिधायें उपलब्ध हो , जिससे लोगों को अपनी माटी छोड़कर अन्य प्रदेशों मैं भटकना न पड़े । साथ ही इस बात का ध्यान दिया जाना चाहिए की देश मैं क्षेत्रीय आधार पर वैमनस्यता ना फैले और देश सभी नागरिक का देश के किसी भी कौने मैं जाकर रहने और जीवन बसर करने का अधिकार भी सुरक्षित रहें ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपका कहना सही है मगर क्रि‍यान्‍वि‍त करना मुश्‍कि‍ल-
    प्रदेशों और देश के नीति निर्माताओं और प्रशासन को चाहिए की ऐसी नीतियां और विकास का ऐसा खाका तैयार किया जाए की देश के हर व्यक्ति को उसके स्थानीय स्तर पर रोजगार के साथ साथ जीवन की सभी आवश्यक मूलभूत सुबिधायें उपलब्ध हो , जिससे लोगों को अपनी माटी छोड़कर अन्य प्रदेशों मैं भटकना न पड़े ।

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  2. आज़ादी के समय मुंबई दिल्ली चेन्नई बड़े शहर थे | यही सारे मुख्यालय, शिक्षण संसथान, उद्योग थे | अब आबादी बड रही है | और आबादी की ज़रुरतों के हिसाब से सारे शिक्षण संस्थान, उद्योगों का विकेन्द्रीयकरण आवश्यक होता जा रहा है | उत्तर भारतीय बहुत सीधे हैं | इसका फायदा उठाया जाता है | मुंबई वालों को दिल्ली आकर जॉब कराने से कोई नई रोकता, परन्तु मुंबई वालों के मन में वैसा आदर नहीं |

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  3. बहुत सुंदर लिखा आप ने , लेकिन यह क्षेत्रीय आधार पर वैमनस्यता फ़ेलाता कोन है?? यही नेता... तो यह केसे ईलाज करेगे इस का???
    धन्यवाद

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