मंगलवार, 4 नवंबर 2008

शासकीय संस्थाओं की उपेक्षा करते जनप्रतिनिधि !

देश मैं जन कल्याण कारी योजनाओं के तहत देश के नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एवं उनके हितों के मद्देनजर विभिन्न शासकीय संस्थाओं की स्थापना की जाती है । इन्ही संस्थाओं के माध्यम से देश का कोई भी नागरिक सेवा और शासकीय सुबिधाओं को पा सकता है । जैसे की यदि देश के नागरिक अर्थात जनता के स्वास्थ्य सुबिधाओं , शिक्षा , आवागमन के साधन की सुबिधा , खाद्यान वितरण की सुबिधा एवं अन्य शासकीय सुबिधाओं हेतु शासकीय संस्थाओं की स्थापना की जाती है ।
आज इन स्थापित संस्थाओं जिनके ऊपर जनता के कल्याण और हितों की जिम्मेदारी है उनकी सेवाओ की गुणवत्ता दिनों दिन गिरती जा रही है और उन संस्थाओं मैं दिनों दिन अव्यवस्थाओं का आलम बढ़ता जा रहा है । पात्र और जरूरत मंद लोगों तक सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और सेवाओ का लाभ पहुच नही पा रहा है । इन सेवाओ को जनता तक पहुचाना का जिम्मा लाल फीताशाही धारी अफसरों और कर्मचारियों के जिम्मे छोड़ दिया जाता है । और जनता के नुमाइंदे और जनप्रतिनिधि जो हर चुनाव मैं ख़ुद को जनता के सेवक कहते नही थकते और उनके हर सुख सुबिधाओं का ख़याल करने का वादा करते हैं वे ही इन संस्थाओं की अव्यवस्थाओं से आँख मूंदे रहते हैं ।
क्या कभी ये जनता के नुमाइंदे और जनप्रतिनिधि स्वयम और स्वयम के परिवार के सदस्यों को इन शासकीय संस्थाओं मैं सेवा लेने हेतु भेजते हैं । क्या वे कभी शासकीय चिकित्सालयों अपना इलाज़ करने हेतु जाते हैं ? क्या अपने बच्चों को शासकीय विद्यालयों मैं शिक्षा ग्रहण करने हेतु भेजते हैं ? क्या वे स्वयं शासकीय खाद्यान वितरण संस्थाओं से खाद्यान प्राप्त करते हैं या फिर कभी जनता के लिए उपलब्ध आवागमन के साधन मैं यात्रा करने की कोशिस करते हैं ? क्या और भी अन्य सुबिधायें अपनी पात्रता अनुसार शासकीय संस्थाओं से प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं । बमुश्किल ही इसका जवाव हाँ मैं होगा । और तो और मातहत अधिकारी भी इन बातों बमुश्किल ही का अनुसरण करते होंगे । ये व्ही व्ही आई पी कहलाने वाले लोग जो ख़ुद को तो जनता का सेवक कहते है स्वयम और परिवार को आम जनता से दूर रखकर ख़ुद को श्रेष्ट साबित करने की चेष्टा करते हैं ।
इन सबकी इतर इन शासकीय संस्थाओं से अपने प्रभाव का प्रयोग कर नाजायज लाभ प्राप्त करने का प्रयास करते अवश्य ही नजर आयेंगे । स्वयं के बच्चों को बड़े और महेंगे निजी संस्थाओं मैं शिक्षा दिलाएंगे । निजी चिकित्षा संस्थाओं से स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करेंगे । अधिक से अधिक सुबिधाओं को वे महेंगे और निजी संस्थाओं से लेने का प्रयत्न करते हैं ।
जनता के नुमाइंदे और जनप्रतिनिधि एवं सरकारी अधिकारी के इस प्रकार उपेक्षा पूर्ण व्यवहार के कारण ही शासकीय संस्थाओं की सेवाओ का गुणवत्ता का स्तर गिरते जा रहा है और दिनों दिन अव्यवस्था का आलम बढ़ते जा रहा है । उनके द्वारा खानापूर्ति के नाम पर कभी कभार ही इन संस्थाओं का औचक निरिक्षण किया जाता है ।
अतः यदि जनता के नुमाइंदे और जनप्रतिनिधि एवं सरकारी अधिकारी शासकीय संस्थाओं के प्रति इस प्रकार उपेक्षा पूर्ण व्यवहार को त्याग कर उन्हें अपनाने का प्रयास करेंगे तो जरूर ही इन संस्थाओं की सेवाओ की गुणवत्ता और अव्यवस्थाओं के आलम मैं सुधार आएगा और जनता को उनके हितों और हको का बाजिब लाभ मिल सकेगा ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. सही कह रहे हैं. बढ़िया आलेख.

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  2. होगा नहीं असरकारी, जो सरकारी काम.
    काम से ज्यादा पसन्द है, उनको बस आराम.
    उनको तो आराम,रास आया है ऐसा.
    हराम बन कर खा लेते हैं रुपैया-पैसा.
    कह साधक कवि,नाम अशुभ होता सरकारी.
    फ़िर सरकारी काम, कैसे हो अ-सरकारी.

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  3. बहुत खुब लिखा आप ने, बिलकुल सच बात है, धन्यवाद

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