सोमवार, 2 मार्च 2009

क्या अगली सरकार/संसद मैं महिलाओं की आबादी के हिसाब से समान भागीदारी सुनिश्चित हो सकेगी .

किसी भी राज्य अथवा देश के सत्ता शासन मैं सभी की समान भागीदारी सुनिश्चित की जाती है ताकि सभी वर्ग को समान प्रतिनिधित्व मिल सके और सभी अपनी बात को देश के पटल पर रख सके और जब सरकार का गठन हो तो सभी वर्गों की भागीदारी से जन हित और देश हित के लिए एक सर्वमान्य नीति बन सके , जिस पर की सरकार सभी हितों को ध्यान मैं रखकर कार्य कर सके । इसी बात के लिए तो संसद के चुनाव मैं सांसद की सीट को उसके क्षेत्र मैं उपस्थित बहुसंख्यक वर्ग वाले समाज के आधार पर आरक्षित किया जाता है इसी तरह विधानसभाओं मैं भी विधायक की सीट को भी आरक्षित किया जाता है ।

किंतु वर्षों से एक बहुत बड़ी बात की अनदेखी की जाती रही है वर्ग विशेष के हिसाब से तो प्रतिनिधि की सीट को आरक्षित किया जाता है किंतु देश की आधी आबादी वाला बहुत बड़ा वर्ग जो की महिलाओं का है उसके हिसाब से न तो उन्हें सरकार मैं पर्याप्त स्थान दिया जा रहा है और न ही उनके लिए संसद मैं उनके अनुपात के हिसाब से सीट आरक्षित की जा रही है । हर क्षेत्र मैं महिलाओं के बराबरी की भागीदारी की बात की जाती है किंतु देश की संवेधानिक संस्था मैं ही इसकी उपेक्षा की जा रही है । न तो सरकार मैं उनकी आधी आबादी के हिसाब से उनकी हिस्सेदारी तय की जा सकी है और न ही संसद मैं उनका प्रतिनिधित्व दिया जा रहा है । तो एक बड़ी आबादी के समुचित भागीदारी की बिना यह कैसे माना जा सकता है की देश की सरकार समस्त जनता की भावनाओं की प्रतिनिधित्व करती है । क्या सरकार मैं उनकी वाजिब भागीदारी के बिना उनके विकास और हितों के समर्थन मैं सरकार की नीतियों मैं पर्याप्त स्थान मिल सकेगा । महिला ही महिला की समस्याओं और हितों को अच्छी तरह से समझ सकती है और समुचित अभिव्यक्ति दे सकती है । किंतु उनकी जनसँख्या के अनुपात मैं समान भागीदारी के सम्भव नही होगा । यदि हम राजनीतिक पार्टी की बात करें तो उनमे एक भी ऐसी नही निकलेगी जिसने इस बात को तरजीह दी होगी , उनकी अपनी पार्टी मैं ही महिलाओं समान आबादी की हिसाब से समान भागीदारी की अवधारणा को ध्यान रखा गया होगा । शायद इसी का ही परिणाम है की महिला आरक्षण बिल हर बार सरकार बदलने की बाद भी जस की तस् की स्थिती मैं पड़ा है । और निहित स्वार्थों के चलते उसे अमली जामा नही पहनाया जा रहा है ।

अब देखते है देश मैं अगले माह से संसद के लिए चुनाव होने जा रहें है कितनी पार्टी कितनी महिला उम्मीदवार को चुनाव मैं स्थान देती है और आने वाली सरकार मैं महिलाओं को उनकी आबादी के हिसाब से कितना स्थान मिलता है । यह तो भविष्य की गर्त मैं है । फिर भी आशा की जानी चाहिए की देश और देश का राजनैतिक नेत्रत्व इस बात पर गंभीरता से सोचेगा और हर राजनैतिक पार्टी मैं मोजूद हर महिला नेत्री इस बात का प्रयास करेंगी की उनको उनकी आधी आबादी की हिसाब से पर्याप्त स्थान मिले ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. दीपक भाई, उम्मीद कम ही दिखती है।

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  2. हुजूर मुसलमानों के लिये तो कुछ भी हो सकता है लेकिन महिलाओं के लिये कुछ नहीं, वैसे भी महिलायें वोट बैंक नहीं हैं यदि वे भी मुसलमानों की तरह एकतरफा वोटिंग करने लगें तो हो जायेगा.

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