बढती मंहगाई पर मीडिया और समाचार पत्र लगातार ख़बरें पर ख़बरें दिखा रहें हैं और छाप रहें हैं । महंगाई है सुरसा की मुख की तरह दिन दूनी और रात चोगुनी कहावत को चरितार्थ करते हुए गुणात्मक वृद्धि करती जा रही है , आवश्यक वस्तुओं के दाम आसमान छू रहें है चाहे अनाज की बात करें या फिर शक्कर की या फिर सब्जी की , सभी के दाम एक एक कर आम जनता की क्रय शक्ति से दूर होते जा रहें है । किन्तु सरकार है की उसके कानो मैं जूँ तक नहीं रेंग रही है । कृषि मंत्री की बात करें तो असम्वेदन हीनता का परिचय देते हुए महंगाई को रोकने मैं असमर्थता जताते हुए खुद को और सरकार को असहाय बता रहे हैं । कई महीनो से महंगाई अपना प्रभाव महामारी की तरह बढ़ा रही है और सरकार है की किम कर्तव्य विमूढ़ होकर हाथ पर हाथ धरे तमाशा देख रही है । पहले मन्दी की मार का रोना गया और अब कोई बहाना नहीं मिला तो खुद को ज्योत्षी न कहकर बढती हुई मंहगाई को रोकने मैं असमर्थता जाहिर करते हुए जनता को बढती हुई महंगाई से लड़ने हेतु असहाय छोड़ रहे हैं । जब जनता खुद की चुनी हुई सरकार और मंत्रियों को महंगाई के मामले मैं असहाय पा रही है तो अब जनता किसके पास इस बढती महंगाई से निजात पाने हेतु गुहार लगाने जाए । वन्ही विपक्ष मैं बैठे हुए चुने हुए जनप्रतिनिधि भी बढती हुई मंहगाई पर चुप्पी साधे हुए बैठे हुए हैं । उससे तो ऐसा प्रतीत होता है की इन्हें भी जनता की इस समस्या से कोई सरोकार नहीं है । और वे भी सरकार के साथ मौन सहमती देते हुए असर्मथता प्रकट कर रहें हैं ।
सरकार द्वारा अभी तक कोई ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठाया गया जिसकी की प्रभावस्वरूप मंहगाई मैं कोई कमी परिलक्षित हो , साथ ही देश के माननीय प्रधानमन्त्री की इस मामले पर चुप्पी अवं निष्क्रियता भी जनता के मन संशय और संदेह की स्थिती निर्मित कर रही है । और यह सभी गतिविधियाँ देश की लोकतान्त्रिक सरकार की लोकतंत्र की जनता के प्रति जनकल्याण अवं जनसेवा की भावना के प्रति प्रतिबधता और उत्तरदायित्व का दायित्व बोध से उपज रही विरक्ति को दर्शाती है । वन्ही विपक्ष द्वारा भी सरकार को बढती हुई महंगाई को रोकने हेतु आवश्यक कदम उठाने हेतु बाध्य न करने और सरकार के साथ मिलकर कोई रचनात्मक और सकारात्मक कदम न उठाने की अकर्मण्यता भी विपक्ष अथवा सरकार के बाहर बैठे निर्वाचित जन प्रतिनिधियों का देश हित और जनहित की भावना के प्रतिकूल व्यवहार और उत्तरदायित्व के प्रति विमुखता को दर्शाता है ।
देश मैं निर्मित हो रही ऐसी परिस्थितियां तो यही जाहिर कर रही है की न तो सरकार को और न ही विपक्ष बैठे जन प्रतिनिधियों को जनता के हितो से कोई सरोकार रह गया है बस सरोकार है तो सिर्फ व्यक्ति गत और राजनीतिक हितो से ।
अरे इन मत्रियो को क्या फ़र्क पडता है, जब बिना मेहनत जीत इन की झोली मै आ गई,अब वो लोग जो इन की जीत पर खुशियां मना रहे थे, यह सवाल उन से पुछॊ...वेसे अब लगता है भारत से गरीबी जल्द खत्म हो जायेगी( जब गरीब भूख से मर जायेगा)लेकिन हद है इस सरकार की बेशर्मी की
जवाब देंहटाएंजब जनता ही मंहगाई से निजात चाहती तो क्या किया जाये.
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