रविवार, 24 दिसंबर 2017

काश तेरे होने की होती कद्र !


जब तक थे तुम साथ तुम्हारे होने की न हुई कद्र।
तेरे न होने पर समझ आई तेरी अहमियत।
साथ चलते रहे कदम कभी न किया कोई फ़िक्र ।
तेरे जाने के बाद समझ आई तेरी काबिलियत।
यूँ ही मिलते रहे रोज, कभी न मनाया  शुक्र।
तेरी कमी से रिश्तों की समझ आई असलियत ।
सुनते रहे ख़ामोशी से हर बात कभी न किया जिद।
तेरी यही अदा में समझ आई तेरी हंसी शख्सियत।
उफ़ तक न किया हर वजह पर रखा किया सब्र ।
ऐसे सादगी भरे चेहरे में नजर आई तेरी मासूमियत।
जो है अपने पास 'दीप',साथ और सम्मान से करें कद्र।
इसमें ही खूबसूरत जिंदगी की समाई है सहूलियत ।



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