शुक्रवार, 29 जून 2018

खुलकर# बरसने# दो इस बारा# !

खुलकर# बरसने# दो इस बारा# !

चुभती गर्मी से पाने को छुटकारा , फिर सबने बारिश को है पुकारा ।
जब आया शीतल बारिश का फुहारा , नाच उठा खुशि से जग सारा ।
कुछ ही दिन था खुशियों का खुमारा ,बारिश लगने लगी अब नगवारा ।
चारो और जब फैला कीचड़ सारा , फिसलन ने जब तब खेल बिगाड़ा ।
बस भीग भीग कर इंसा हारा , हर बार सोचा कि अब न भीगूंगा दुबारा ।
खेलकूद और काम भी गया मारा, घर में रहने को मजबूर इंसा बेचारा ।
बारिश जल्द लगने लगी आवारा , कोस कोस हो रहा अब दिन गुजारा ।
न तृप्त धरती न तृप्त जग सारा ,इतने जल्दी बारिश से न करो किनारा ।
बारिश तो अमृत जीवन  धारा , यही तो सृष्टि के सब जीवों का सहारा ।
खुलकर बरसने दो इस बारा , तरबतर हो जाये हर कोना और किनारा ।

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