शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

#उलझ गये वो #कांटों से जनाब !



उलझ गये वो कांटों से जनाब ,
जब चुन रहे थे फूल ए गुलाब ।

कांटों से उलझी जब उनकी उंगली,
कुछ घाव बने , कुछ खिचाव बने ,
कुछ उंगली में रह गई कांटों की फांस ।

खींच खींच कर जब निकली चुनरी,
कुछ धागे उलझे , कुछ धागे सुलझे ,
कट फट गये चुनरी के कुछ भाग ।

कांटों ने यह कैसी बिछाई बिसात ,
उंगली चुनरी संग किया फसाद ,
चुनरी उलझी उंगली भी उलझी,
उलझी उलझी हो गई मन की आस ।

यूं फूलों का फूलों संग मिलना ,
चुभते कांटों को नहीं आता रास ,
आहत हो वो कांटो  से जनाब ,
तन्हा छोड़ गये वो फूल ए गुलाब ।
             *****"दी.कु.भानरे (दीप)******


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