गर पा गए उड़ने का हुनर ,
और पा गए उड़ने का माद्दा ,
न समझ खुद को सितारा ,
न बसा अपना एक अलग जहां ,
लौट इक दिन वापस आना है ,
क्योंकि वो तो उधार का है आसमां ।
उड़ते उड़ते जब थक जाओगे ,
किसी उलझन में उलझ जाओगे ,
मुसीबतों में तब हमदर्द बनकर ,
अपने ही बनेंगे इक आसरा ,
काम न आएगा सितारों का वो जहां,
क्योंकि वो तो उधार का है आसमां ।
ख्वाहिशों को अपनी दफनाकर ,
मुसीबतों का पहाड़ उठाकर ,
जो सहूलियतें के पंख देते है लगवा ,
उन अपनों का सितारा बनकर,
बना अपना ही आसमां ,
क्योंकि वो तो उधार का है आसमां ।