#आसमां सर पर क्यों उठाते हो ,
पैर #जमी पर नहीं रख पाते हो ,
जमी पैरों के नीचे
कि एक दिन ,
यूं ही जायेगी खिसक
,
आग पानी में क्यों
लगाते हो ।
माना कि जमाने में
मुश्किलों है बहुत ,
कुछ सुलझती है कुछ
जाती है उलझ ,
हर समस्या से मिलती
नहीं निजात है ,
समझौता कर रहना पड़ता
साथ है ,
औखली में सर अपना
क्यों पड़वाते हो ।........
जीवन थोड़ा है और काम
है बहुत ,
दुनिया बड़ी है और
ज्ञान है बहुत ,
एक जीवन भी पड़ जायेगा
कम ,
समेटने को दुनिया
लगेंगे कई जनम ,
जीवन को जी का जंजाल
क्यों बनाते हो ।.....
नाराजगियाँ अपनों की जाती है छलक ,
दरियाँ दिलों का बहने
लगता है अलग ,
रखकर शीतल मिजाज अपना
,
रोक लें दिलों का
सुलगना ,
अपनों की कश्ती क्यों
भवर में उलझाते हो ।......
आसमां सर पर क्यों
उठाते हो ,
पैर जमी पर नहीं रख
पाते हो ,
जमी पैरों के नीचे
कि एक दिन ,
यूं ही जायेगी खिसक
,
आग पानी में क्यों
लगाते हो ।