Image गूगल साभार |
इन दो #आंखों से ,
बस इतना ही किया करते हैं ,
जितना दिल किया,
उनका #दीदार किया करते हैं ।
वो रोक तो सकते नहीं हैं ,
चाहे देखा करें उनके ही सपने हैं,
या दीदार करें उनके ही कितने हैं,
जितना है बस में देख उतना,
दिल को तसल्ली से भरा करते हैं ।
वो हमें भले ही देखा न करें ,
हो हम अभी उनके मन से परे,
हो सकता है हम नजरों में उनकी खलते हैं ,
पर जब भी वो सामने आते हैं,
उनकी नजरों से हम तो उलझा किया करते हैं ।
आयेगा एक दिन ऐसा काश ,
जब वो होंगे सदा मेरे पास ,
ऐसे खयाल अब दिल में मचलते हैं ,
दीप इन ख्वाहिशों के जला,
अब तो दिन रात लिये फिरते हैं ।
इन दो आंखों से ,
बस इतना ही किया करते हैं ,
जितना दिल किया,
उनका दीदार किया करते हैं ।
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (1-5-22) को "अब राम को बनवास अयोध्या न दे कभी"(चर्चा अंक-4417) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
आदरणीय कामिनी मेम,
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (1-5-22) को "अब राम को बनवास अयोध्या न दे कभी"(चर्चा अंक-4417) पर शामिल करने हेतु बहुत धन्यवाद एवं आभार ।
सादर ।
वाह!बहुत सुंदर सर।
जवाब देंहटाएंसादर
आदरणीय अनीता मेम,
जवाब देंहटाएंआपकी सुंदर और सकारात्मक प्रतिकृया हेतु बहुत धन्यवाद एवं आभार ।
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवि सर ,
जवाब देंहटाएंआपकी सुंदर और सकारात्मक प्रतिकृया हेतु बहुत धन्यवाद एवं आभार ।