#पुरानी सी एक #हवेली
कहता गांव #भूतों की सहेली
दिन में होती आम बात
पर हो जाती रात खौफनाक
जो अब तक है अबूझ पहेली
और बनी है अब तक एक राज ।
हवाओं के झोंको से
चरमराते और कराहते कपाट
अंदर अंधेरे कमरे में
बर्तन गंदे और टूटी एक खाट
बैठा जिस पर एक शख्स
बुरी शक्ल करता बकवास
छिपकली ,चमगादड़ और मकड़ी
जैसे है उसके अपने और खास ।
उल्लू और कुत्ते सियार
जिनकी डरावनी रोती आवाज
जानवरों की चमकती
घूरती अंधेरे में डरावनी आंख
सूखे पत्तों पर चलने की
खर खर करती पदचाप।
जाता जो भी वहां रंगबाज
आया न वापस वो उस रात
कुछ चीखें ओर कुछ छटपटाहट
और पक्षियों की मंडराती बारात
फिर एक सुई पटक सन्नाटा
और जरा भी न चि पटाक
बंद हो गया हवेली में
एक और रहस्यमय राज ।
***दीपक कुमार भानरे***
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