गुरुवार, 19 जून 2008

माफ़ी मांगकर नुक्सान की भरपाई की जा सकती है ?

पिछले कई दिनों से गुर्जरों का आन्दोलन आरक्षण को लेकर चल रहा था । जिसे की आरक्षण की मांग पुरी होने के बाद समाप्त कर दिया गया । इस आन्दोलन के दौरान होने वाली असुबिधा के लिए गुर्जर आन्दोलन के नेता श्री बैसला की ओर से और राजस्थान प्रदेश सरकार की ओर माफ़ी मांगी गई है । किंतु क्या माफ़ी मांगकर इस प्रकार के आन्दोलन मैं होने वाली जन हानि ओर धनहानि की भरपाई की जा सकती है । उन बेचारों का क्या होगा जो स्वयम ओर उसके परिवार का कोई सदस्य इस आन्दोलन के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं से हताहत हुआ है । प्रशासनिक व्यवस्था को बनाने मैं लगे लोग भी इसमे हताहत हुए है । हाँ थोडी राहत सरकार की तरफ़ से आन्दोलन मैं प्रभावित लोगों को नौकरी ओर आर्थिक सहायता देने की घोषणा से जरूर मिली है । यह तो बात उन लोगों की हुई जो प्रत्यक्ष रूप से इस आन्दोलन से जुड़े थे ।
अब बात करते है उन लोगों की जिन्हें अप्रत्यक्ष रूप से मजबूरी मैं इस आन्दोलन से जुड़कर विभिन्न तरह के आर्थिक , मानसिक ओर शारीरिक नुक्सान उठाना पड़ा । उनकी कौन सुध लेगा । इस आन्दोलन की वजह से व्यापारी वर्ग के लोगों को नुक्सान हुआ है उसकी भरपाई कौन करेगा ? वही रेल रोककर ओर सड़क यातायात जाम कर लोगों को उनके गंतव्य स्थान तक जाने से रोका गया । इनमे कई लोग ऐसे रहे होंगे जिन्हें समय पर पहुचना जरूरी रहा होगा किंतु वे समय पर नही पहुच सके , न जाने इस देरी से उनका कितना किस तरह नुक्सान हुआ होगा ये तो वे ही जानते होंगे , किंतु इस प्रकार हुए नुक्सान की भरपाई कैसे होगी यह न तो आन्दोलन कारी बता सकते हैं ओर न ही सरकार ।
इस प्रकार के होने वाले आन्दोलन मैं आमजन को होने वाली असुबिधा के लिए आन्दोलन कारी तो जिम्मेदार होते ही है वही प्रशासनिक व्यवस्था भी उतनी ही जबाबदार होती है । क्योंकि सरकार ओर प्रशासन की यह जिम्मेदारी होती है की जनता सुरक्षित ओर निर्भय होकर शांतिपूर्ण जीवन यापन कर सके । अतः प्रायः देखने मैं यह आता है की ऐसे आन्दोलन मैं सरकार आन्दोलन कारियों के ऊपर लगाम कसने मैं असफल साबित होती है । वे बेधड़क होकर रेल रोकते है , रास्ता जाम करते है ओर राष्ट्रीय ओर सार्वजानिक संपत्ति को नुक्सान पहुचाते है । जिससे आम जनता को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है ।
अतः यह सुनाश्चित किया जाना आवश्यक है की आन्दोलन शान्ति पूर्वक हो ओर उसके आयोजन से आमजनता का कोई परेशानी न हो , न ही राष्ट्रीय ओर सार्वजनिक संपत्ति को कोई नुक्सान हो । यदि ऐसा होता है तो ऐसे लोगों से शक्ति से निपटा जाना चाहिए । ऐसे माफ़ी मांगकर तो न ही नुक्सान की भरपाई की जा सकती है ओर न ही अपनी जिम्मेदारी से बचा जा सकता है ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुना था कोलकत्ता में कोर्ट ने हड़ताल पर रोक लगायी थी पर ऐसा कुछ दिखायी नही दे रहा ...वैसे ही सबसे बढ़िया तरीका हिन्दुस्तान में यही है कि शादी है तो गली में टेंट बाँध दो कही जागरण है तो सड़क पर टेंट बाँध दो....कुछ पता नही अब उन लोगो को मुआव्यजा भी मिल जाए ..

    जवाब देंहटाएं
  2. माफ़ी मांगकर तो न ही नुक्सान की भरपाई की जा सकती है ओर न ही अपनी जिम्मेदारी से बचा जा सकता है ।

    -बिल्कुल सही कह रहे हैं.

    जवाब देंहटाएं

Clickhere to comment in hindi