गुरुवार, 29 मार्च 2018

अब तो #इंतज़ार में ही #नफा है !

अब तो #इंतज़ार में ही #नफा है !

गुजर जाते हैं हर बार सामने से नजर मिला न सका है ।
वो भी तो कभी कुछ कहते नहीं न जाने क्या रजा है ।
कह  सकूँ दो बातें उनसे  कोशिश भी की कई दफा  है ।
मेरी  नादानियां कहीं ऐसे ही उन्हें  कर न दे खफा है ।
नाराजगियां उनकी कहीं  यूँ  ही न बन जाये सजा है ।
वापिस खीच लेता  हूँ कदम कहीं हो न जाये खता है ।
समझ न सके हाले  वफ़ा वो  इतनी तो नहीं नादां है ।
हो नजरें इनायत उनकी अब तो इंतज़ार में ही नफा है ।
सुकूँ अहसासों के लिए 'दीप' करते ख़ुदा का सजदा है ।
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