उलझ गये वो कांटों से जनाब ,
जब चुन रहे थे फूल ए गुलाब ।
कांटों से उलझी जब उनकी उंगली,
कुछ घाव बने , कुछ खिचाव बने ,
कुछ उंगली में रह गई कांटों की फांस ।
खींच खींच कर जब निकली चुनरी,
कुछ धागे उलझे , कुछ धागे सुलझे ,
कट फट गये चुनरी के कुछ भाग ।
कांटों ने यह कैसी बिछाई बिसात ,
उंगली चुनरी संग किया फसाद ,
चुनरी उलझी उंगली भी उलझी,
उलझी उलझी हो गई मन की आस ।
यूं फूलों का फूलों संग मिलना ,
चुभते कांटों को नहीं आता रास ,
आहत हो वो कांटो से जनाब ,
तन्हा छोड़ गये वो फूल ए गुलाब ।
*****"दी.कु.भानरे (दीप)******