शनिवार, 9 जुलाई 2022

निकलने लगे हैं #चादरों से पांव ए जिंदगी ।

चल रही जरूरतें हर रोज,

एक नया दांव ए #जिंदगी ।

निकलने लगे हैं #चादरों से,

अब ये #पांव ए जिंदगी ।


देखकर जिंदगी औरों की ,

हसरतें अपनी किया खड़ा ,

कभी झांसें में आकार बाजारों के ,

कुछ और खरीदा बेवजह ,

यूं बढ़कर हो गई हसरतें,

बेपनाह ए जिंदगी ।....


पसंद अपनी है अपना नजरिया है ,

मुताबिक उसके ही सब इकट्ठा किया है ,

फिर भी कमी सी दिल में खलती है ,

अभी और मिले ऐसी तमन्ना मचलती है,

थम नहीं रही चाहतों की ,

ये नाव ए जिंदगी ।....


काश भर जाये दिल उस पर

अब तक जो मिला ,

जरूरत से ज्यादा हसरतों को

न मिले दाखिला ,

फिर आयेगा क्यों न दायरों में 

ये पांव ए जिंदगी ।....


चल रही जरूरतें हर रोज,

एक नया दांव ए जिंदगी ।

निकलने लगे हैं चादरों से,

अब ये पांव ए जिंदगी ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय जोशी सर , आपकी प्रशंसायुक्त बहुमूल्य अभिव्यक्ति हेतु बहुत धन्यवाद और आभार ।
    सादर ।

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. आदरणीय अनीता मेम ,
    जी नमस्ते ,
    इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(११-०७ -२०२२ ) को 'ख़ुशक़िस्मत औरतें'(चर्चा अंक -४४८७) पर शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद और आभार ।
    सादर ।

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज सोमवार(११-०७ -२०२२ ) को 'ख़ुशक़िस्मत औरतें'(चर्चा अंक -४४८७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  5. काश भर जाये दिल उस पर
    अब तक जो मिला ,

    जरूरत से ज्यादा हसरतों को
    न मिले दाखिला ,

    फिर आयेगा क्यों न दायरों में
    ये पांव ए जिंदगी ।....

    जिंदगी का फलसफा बयां करती शानदार रचना।

    जवाब देंहटाएं
  6. आदरणीय विभा मेम , आपकी प्रशंसायुक्त बहुमूल्य अभिव्यक्ति हेतु बहुत धन्यवाद और आभार ।
    सादर ।

    जवाब देंहटाएं

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