चल रही जरूरतें हर रोज,
एक नया दांव ए #जिंदगी ।
निकलने लगे हैं #चादरों से,
अब ये #पांव ए जिंदगी ।
देखकर जिंदगी औरों की ,
हसरतें अपनी किया खड़ा ,
कभी झांसें में आकार बाजारों के ,
कुछ और खरीदा बेवजह ,
यूं बढ़कर हो गई हसरतें,
बेपनाह ए जिंदगी ।....
पसंद अपनी है अपना नजरिया है ,
मुताबिक उसके ही सब इकट्ठा किया है ,
फिर भी कमी सी दिल में खलती है ,
अभी और मिले ऐसी तमन्ना मचलती है,
थम नहीं रही चाहतों की ,
ये नाव ए जिंदगी ।....
काश भर जाये दिल उस पर
अब तक जो मिला ,
जरूरत से ज्यादा हसरतों को
न मिले दाखिला ,
फिर आयेगा क्यों न दायरों में
ये पांव ए जिंदगी ।....
चल रही जरूरतें हर रोज,
एक नया दांव ए जिंदगी ।
निकलने लगे हैं चादरों से,
अब ये पांव ए जिंदगी ।
आदरणीय जोशी सर , आपकी प्रशंसायुक्त बहुमूल्य अभिव्यक्ति हेतु बहुत धन्यवाद और आभार ।
जवाब देंहटाएंसादर ।
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जवाब देंहटाएंआदरणीय अनीता मेम ,
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(११-०७ -२०२२ ) को 'ख़ुशक़िस्मत औरतें'(चर्चा अंक -४४८७) पर शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद और आभार ।
सादर ।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज सोमवार(११-०७ -२०२२ ) को 'ख़ुशक़िस्मत औरतें'(चर्चा अंक -४४८७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जवाब देंहटाएंकाश भर जाये दिल उस पर
अब तक जो मिला ,
जरूरत से ज्यादा हसरतों को
न मिले दाखिला ,
फिर आयेगा क्यों न दायरों में
ये पांव ए जिंदगी ।....
जिंदगी का फलसफा बयां करती शानदार रचना।
बढ़िया 👌👌
जवाब देंहटाएंआदरणीय विभा मेम , आपकी प्रशंसायुक्त बहुमूल्य अभिव्यक्ति हेतु बहुत धन्यवाद और आभार ।
जवाब देंहटाएंसादर ।