सूर्य किरण तेज
लिये है जल सहेज
धर लालिमा भेष
सुंदर सूर्य अस्त समावेश ।
शीतलता का है प्रवेश
अवनी अंबर करते भेंट
सूर्य अस्त बेला विशेष ।
लिये है जल सहेज
धर लालिमा भेष
सुंदर सूर्य अस्त समावेश ।
शीतलता का है प्रवेश
अवनी अंबर करते भेंट
सूर्य अस्त बेला विशेष ।
हमारे न होने का
#अहसास वो करते हैं
किसी #महफिल का
जब वो #आगाज करते हैं ।
छोड़ देते है एक जगह
मेरे नाम के पैमाने की
पूछते हैं बार बार वजह
यूं महफिल में मेरे न आने की
फिर मिलकर मेहमानों से
मुस्कराने का यूं ही रिवाज करते हैं ।
ढूंढती हैं नजरें उनकी हर पता
हमारे होने के उस ठिकाने की
मांगते हैं मन्नतें बार बार रब से
उस जगह महफिलें सजाने की
सोचकर ऐसे ही वो हर बार
फिर एक महफिल का आगाज करते हैं ।
हमारे न होने का
अहसास वो करते हैं
किसी महफिल का
जब वो आगाज करते हैं ।
** दीपक कुमार भानरे **
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