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प्रेरणा और चित्र
सीमा गुप्ता जी और रामपुरिया जी के ब्लॉग से
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कहते हैं की खाली दिमाग शैतान का घर होता है । अतः खाली बैठने और खाली दिमाग रखने की अपेक्षा इंसान को कुछ सकारात्मक कार्य करते रहना चाहिए , जिससे इंसान का स्वयं का तो हित तो जुडा हुआ है साथ ही समाज का भी हित जुडा है । इंसान के द्वारा किए गए रचनात्मक कार्य से एक तो इंसान का मन और ध्यान इधर उधर ग़लत कामों की और नही भटकता है जिससे समाज मैं शान्ति और उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है ।
किंतु आज के समय मैं समाज के कुछ लोगों के द्वारा क्रेअटिविटी अर्थात सृजनात्मकता के नाम पर जो प्रदर्शन और कार्य किए जा रहे हैं , क्रेअटिविटी और रचनात्मकता के नाम पर आज समाज के सामने जो परोसा जा रहा है , कला और प्रतिभा प्रदर्शन के नाम पर जो अभिव्यक्ति हो रही है उसे क्रेअटिविटी कहें या वल्गारिटी ।
कोई कला प्रदर्शन के नाम पर वल्गर , अश्लील और विवादस्पद चित्र बनाकर लोगों की भावना और आस्था से खिलवाड़ कर अपने को महान चित्रकार कहलवाने की कोशिश कर रहा है । कोई लोगों के मनोरंजन और प्रतिभा प्रदर्शन के नाम पर फूहड़ और भद्दा मजाक और कामेडी कर रहा है । कोई कला और नृत्य प्रदर्शन के नाम पर वल्गर , अश्लील और भद्दे नृत्यों का प्रदर्शन कर रहा है । यंहा तक की बच्चों से भी बडो जैसी बातें और उनके भद्दे प्रदर्शन की अपेक्षा और आशा की जा रही है और उसे बढ़ाव दिया जा रहा है । सभ्य और जेंटल मेन कहे जाने वाले लोग भी ऐसे प्रदर्शन मैं पीछे नही है । फिल्मों मैं मनोरंजन और कला प्रदर्शन के नाम पर तो वल्गारिटी और अश्लीलता का प्रदर्शन चरम पर है । अब इसी का प्रभाव यह हो रहा है की सामजिक आयोजनों मैं भी इस तरह से वल्गर और फूहड़ प्रदर्शन होने लगे हैं । स्कूल और कॉलेज के उत्सव समारोह मैं भी मूल और मौलिक कला अभिव्यक्ति के स्थान पर फिल्मो और टीवी से प्रेरित फूहड़ और वल्गर प्रदर्शन हो रहें है ।
अब यह तो कहना मुश्किल है की क्रेअटिविटी के नाम पर वल्गारिटी के प्रदर्शन का यह सिलसिला कान्हा आकर रुकेगा । किंतु यह अत्यन्त चिंता का विषय है । अतः ऐसे प्रदर्शन जिसमे क्रेअटिविटी के नाम पर वल्गारिटी और फूहड़ प्रदर्शन हो रहा है जिसमे की मौलिकता और स्वाभाविक अभिव्यक्ति का अभाव होता है और समाज के लोग खासकर नई पीढी का शान्ति और उन्नति का मार्ग प्रशस्त होने की बजाय भटकाव , अशांत मन और नकारात्मक सोच की और प्रेरित हो रही है को हतोस्साहित किया जाना चाहिए है ।
# फुर्सत मिली न मुझे अपने ही काम से लो बीत गया एक और # साल फिर मेरे # मकान से । सोचा था इस साल अरमानों की गलेगी दाल , जीवन...