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रविवार, 30 अप्रैल 2023

दुविधा में आम जन आज !



कहते रहे उन लोगों को बुरे,

जो सत्ता पर आसीन रहे,

जब मिले खुद को मौके ,

तो हाथ साफ करने से न चुके ।


जब मिले रंगे हाथ ,

तो बताने खुद को पाकसाफ,

तुलना में दूसरों के ,

गिनाते रहे कामकाज ।


जहां है जैसा राज ,

अपराधी का वहां वैसा इलाज,

कहीं बाहर हो रहे सजाबाज,

तो कहीं मिट्टी में माफियाराज।


दुविधा में आम जन आज ,

कालनेमी के भेष में कौन है दगाबाज,

दिलाकर स्वर्णमृग सा अहसास ,

हर रहे हैं छल से विश्वास ।

बुधवार, 12 अप्रैल 2023

#हैसियतों के हिसाब से यहाँ #कायदा .

 

हैसियत

#हैसियतों के हिसाब से

बदलता है यहाँ #कायदा ,

मिलती ही उतनी ही #रियायतें ,

होता है #आदमी जितना बड़ा ।

 

सड़ता है जैल में वह तबका ,

खर्चा कानून का जो न दे सका ,

रसूख वालों के लिये तो ,

आधी रात भी दरवाजा  है खुला ।

 

उसे मिला एक छोटा रास्ता ,

जिसने दिया पैसा ज्यादा ,

वरना एक आम आदमी तो ,

बस लाइन में रहता लगा ।

 

गर गरीब का कपड़ा है फटा ,

तो उस पर जमाना है हंसा ,

पर अमीर ने कुछ ऐसा किया ,

तो वह फ़ैशन नया बना ।

 

अयोग्य भी पाता है  बड़ा ओहदा ,

गर पास है ज्यादा रोकड़ा ।

वरना छोटी सी नौकरी  के लिये ,

सामान्य जन जीवन देता है खपा ।

 

#हैसियतों के हिसाब से

बदलता है यहाँ #कायदा ,

मिलती ही उतनी ही #रियायतें ,

होता है #आदमी जितना बड़ा ।

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2023

चाहता है #उलझना कौन यहां आज .

#उलझना


देख लो जी भर के #महफिल में मुझे ,

छुपकर मेरे चाहने वालों में ,

आयेगा न कोई #इल्जाम तुम पर,

कि शामिल हो मेरे #दीवानों में ।


गर गरज उठे बिजली संग बादल ,

तो आ जाऊं मैं पास तुम्हारे ,

डर के इन्हीं बहानों में ,

तब कह देना दिल की बातें ,

चुपके से मेरे कानों में ।


आकर दो बातें करना मुझसे ,

होकर शामिल मेहमानों में ,

हाथ थामकर नजर मिलाना,

दिल रख देना नजरानों में ।


चाहता है #उलझना कौन यहां आज,

बेरहम दुनिया के सवालों में ,

ढूंढते है ऐसी चाहत की दुनिया ,

जो पले किसी  महफूज ठिकानों  में ।

                 ****दीपक कुमार भानरे****

रविवार, 2 अप्रैल 2023

#कह दो तो जरा ।



किस बात से है #गिला ,

#कह दो तो जरा ।


तकलीफ सीने में ,

यूं दबाकर बैठे हो ,

कहते कुछ नहीं ,

बस रूठे और ऐंठे हो ,

किस बात का मसला है ,

कह दो तो जरा ,

मिलेगा सुकून मन को ,

ढहेगा उदासी का किला ।


मचलती है चाहतें ,

करने को पार हदें ,

पर किसी बात पर ,

खिंची है सरहदें ,

वो कौन सा है कायदा ,

कह दो तो जरा ,

तोड़कर बांध सब्र का ,

बह उठेगा दरिया ।


अब यूं रहना खफा ,

नहीं ज्यादा अच्छा ,

मानकर गलतियां ,

निकाले सुलह का रास्ता ,

गर मसला है सुलझा ,

कह दो तो जरा ,

क्योंकि ढूंढती है #खुशियां  ,

अपने घर का पता ।


किस बात से है #गिला ,

#कह दो तो जरा ।

           ****दीपक कुमार भानरे****

लो बीत गया एक और #साल !

# फुर्सत मिली न मुझे अपने ही काम से लो बीत  गया एक और # साल फिर मेरे # मकान से ।   सोचा था इस साल अरमानों की गलेगी दाल , जीवन...