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शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

मैं #रचनाओं को अपनी !

इमेज गूगल साभार


मैं #रचनाओं को अपनी,

एक #तमाशा बनाता हूं ।

मचलती हुई मीडिया की,

दरों दीवार पर चिपकाता हूं।


कभी लिखकर यूं ही ,

एक #ब्लॉग बनाता हूं ,

तो कभी गाकर इनको ,

#पॉडकास्ट में सुनाता हूं ।


शेयर कर देता हूं कई बार ,

दोस्तों के वाट्स अप ग्रुप में,

तो कभी फेसबुक को भी ,

प्रदर्शन का ठिकाना बनाता हूं 


डाल देता हूं बनाकर वीडियो

यूट्यूब के अपने चैनल में ,

तो ट्विटर, इंस्टा और कू भी ,

कई बार आजमाता हूं ।


वो तो भला हो सभी  ,

ब्लॉग चर्चा मंचों का ,

जिसमें रचनाओं के लिये अपनी ,

एक स्थान पाता हूं । 


मैं #रचनाओं को अपनी,

एक #तमाशा बनाता हूं ।

मचलती हुई #मीडिया की,

दरों दीवार पर चिपकाता हूं।

गुरुवार, 18 अगस्त 2022

#कान्हा ने अवतार लियो !

इमेज गूगल साभार


#कान्हा ने  अवतार लियो,

#वासुदेव देवकी ने जन्मदियो ,

नंद #यशोदा ने लालन कियो,

बाल लीलाओं से अपनी

#गोकुल का मन मोह लियो।


#कन्हैया ने माखन खाया ,

बाल सखा संग धूम मचाया ,

कालिया नाग का मर्दन कर ,

यमुना जी को मुक्त कराया ।


#मोहन ने जब बांसुरी बजाई ,

गोपियों संग रास रचाई ,

सुध बुध सबकी बिसराई ,

दौड़े दौड़े राधा जी आई ।


#श्रीकृष्ण जब पहुंचे रणक्षेत्र ,

अर्जुन को दिया गीता उपदेश ,

सत्य और धर्म के रक्षार्थ ,

अपना पराया कुछ न देख । 


#केशव ने शस्त्र उठाया ,

पापियों से धरती मुक्त कराया,

शिशुपाल, कंश का करके बध,

धर्म ध्वजा लोकहित में फहराया । 


हाथी घोड़ा पाल की जय कन्हैया लाल की ।

श्रीकृष्णा #जन्माष्टमी की बहुत बधाइयां एवम शुभकामनाएं ।

जय श्रीकृष्णा। 

शुक्रवार, 12 अगस्त 2022

लहराया तिरंगा घर घर पर ।

 

शान से निखर कर ,

दिल और जिगर पर,

वक्त के हर प्रहर पर ,

जैसे छत्र छाया मेरे सर पर ,

लहराया तिरंगा मेरे घर पर

 

हवाओं की हर गुजर पर ,

समंदर की हर लहर पर ,

पर्वतों के हर शिखर पर ,

जैसे चंद तारे आसमां के जिगर पर ,

तिरंगा लहराया देश के घर घर पर

 

देशप्रेम की अगन पर ,

न्यौछावर सब वतन पर ,

 भारतमाता को नमन कर ,

अमृतमहोत्सव के मनन पर ,

लहराया तिरंगा हर सदन पर

 

जय हिन्द , जय भारत ।

शनिवार, 6 अगस्त 2022

#उलझा उलझा सा हर आदमी है यहां !

#उलझा उलझा सा  हर आदमी है यहां ,

कभी जीता है जंग, तो खेल है बिगड़ा ।


गर कमजोर पड़े थोड़ा सा भी  जरा ,

पल में बदल जाता है खेल का कायदा ।

कब किसका पड़ जाये भारी पलड़ा ,

कब  निकल जाये कौन किससे है मिला ।


छुपे  है कितने जो गिराने को है अमादा ,

जो संभाले, उंगलियों में जा सकता है गिना।

होता है फूंक फूंककर कदमों का चलना,

पता नहीं कौन सी चाल पर बारूद है बिछा ।


यह समझ संभलकर चलने का सलीका है ,

या ऊपरवाला भी है कुछ तो ऊपर मेहरबां ।

जहां टला है जीवन से कोई न कोई हादसा   ,

और मुसीबतों को मिली है मात बकायदा ।


बस चल रही  है जीवन की यूं ही नौका ,

पार कर  मुसीबतों को आहिस्ता आहिस्ता,

उलझा उलझा सा तो ही हर आदमी यहां ,

कभी जीता है जंग तो खेल है बिगड़ा ।

लो बीत गया एक और #साल !

# फुर्सत मिली न मुझे अपने ही काम से लो बीत  गया एक और # साल फिर मेरे # मकान से ।   सोचा था इस साल अरमानों की गलेगी दाल , जीवन...