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रविवार, 24 दिसंबर 2017

काश तेरे होने की होती कद्र !


जब तक थे तुम साथ तुम्हारे होने की न हुई कद्र।
तेरे न होने पर समझ आई तेरी अहमियत।
साथ चलते रहे कदम कभी न किया कोई फ़िक्र ।
तेरे जाने के बाद समझ आई तेरी काबिलियत।
यूँ ही मिलते रहे रोज, कभी न मनाया  शुक्र।
तेरी कमी से रिश्तों की समझ आई असलियत ।
सुनते रहे ख़ामोशी से हर बात कभी न किया जिद।
तेरी यही अदा में समझ आई तेरी हंसी शख्सियत।
उफ़ तक न किया हर वजह पर रखा किया सब्र ।
ऐसे सादगी भरे चेहरे में नजर आई तेरी मासूमियत।
जो है अपने पास 'दीप',साथ और सम्मान से करें कद्र।
इसमें ही खूबसूरत जिंदगी की समाई है सहूलियत ।



रविवार, 17 दिसंबर 2017

#कम न हो #नये की #चाहत ।।


#कम न हो #नये की #चाहत ।।
कुछ अलग और नये की चाहत , पुराने से ऊबने और उबरने की चाहत । 
तो कर गुजरते है कुछ अलग ,मिलती तसल्ली और होती है राहत ।
छूटते है अपने और  होते आहत , कुछ टुटता है बिखरती है सहूलियत । 
जब चल पड़ते करने को कुछ अलग ,होती है ख़ुशी हर लम्हा सुखद । 
उड़ती है नींदे होती कड़ी मेहनत ,बढ़ती दुस्बारियाँ बिगड़ती है सेहत ।
तन मन की लगती है लागत ,लगती राहें आसान हर पल खूबसूरत । 
चलते रहें  न हो कहीं थकावट , कुछ परेशानी कुछ तो होगी रूकावट ।
कम न हो नये 'दीप' की चाहत ,यही तो जीवन का फलसफा है शायद ।

रविवार, 10 दिसंबर 2017

#बारात के दो #दृश्य !


मस्तियाँ और खुमारियों का छाया है आलम ,
रंग बिरंगी रोशनियाँ से बरात ए जश्न है रोशन ,
अपनी पसंद की बाराती बजवा रहे है धुन ,
बच्चे, महिलाएं और बुजुर्गों के थिरके है कदम ।
बरातियों के नकारात्मक व्यवहार  से न होकर खिन्न  ,
हो पसीने से तरबतर बजा रहे है हर पसंदीदा धुन ,
बिजली के तारों से झूलते रोशनियों के सामान ,
रख  बच्चे,महिलाएं और बुजुर्ग बढ़ा रहे हैं कदम ।
यहाँ एक पल के मायने हर जिंदगी के  लिए है भिन्न ।
कोई  खुशियाँ मनाता है तो किसी के संघर्षों का है क्षण ।

बुधवार, 6 दिसंबर 2017

अलाव से गर्मी का पाया सुरूर .


दिन भर की कड़ी मेहनत से थक कर चूर ,
शाम ढलते ही सभी चिंताओं से दूर ,
कर रहें है सब मिलकर सामना भरपूर ,
ठण्ड जो कुछ ज्यादा ही हो रही क्रूर ।
तन पर गर्म कपड़े लिबास नही है प्रचुर ,
जो बेशक फुटपाथ पर रहने को है मजबूर ,
जलाकर अलाव से गर्मी का पाया सुरूर ,
आग की लौ से चेहरे पर सुकूँ का है नूर ।
कहते सुनते रात गुजर रही है बदस्तूर ,
बिना कुछ सोचे की किसका है ये कसूर ,
कभी तो दीप मेहरबाँ होगी किस्मत मगरूर ,
अगली सुबह खुशियों से भरी होगी जरूर ।

लो बीत गया एक और #साल !

# फुर्सत मिली न मुझे अपने ही काम से लो बीत  गया एक और # साल फिर मेरे # मकान से ।   सोचा था इस साल अरमानों की गलेगी दाल , जीवन...