एक बार फिर बारिस का मौसम आ गया है । भीषण गर्मी और पानी की समस्या से छुटकारा अब मिल सकेगा । जब पानी की समस्या थी तो देश मैं हर जगह पानी के लिए हाय तौबा मची हुई थी और इस पर पानी सरक्षण और संवर्धन पर काफ़ी जोर शोर से बातें कही जा रही थी । अब क्या उसी जोर शोर से वारिस पानी को सहेजने के प्रयास किया जा रहे है । वैसे देखा जाए तो अभी भी बारिस पर्याप्त मात्रा मैं होती है , बस आवश्यकता होती है उसकी एक एक बूँद सहेजने की ।
अब देखिये न हरे भरे पेड़ पौधे और वनस्पतियों के जंगल को उजाड़कर हमने अपने शहर , कसबे और ग्राम को सीमेंट कंक्रीट के जंगल से पाट दिया है । अब बारिस का पानी जाए तो कंहा जाए ? जब बारिस का जल किसी स्थान की भूमि मैं रूककर बूँद बूँद समायेगा नही तो भूगर्भ जल स्तर उस स्थान का बढेगा कैसे ? न तो जल सोखने के लिए जमीन है और न ही बारिस का जल रोकने के लिए पेड़ पौधे और वनस्पतियों हैं । परिणामस्वरूप दूसरे दुष्परिणाम अलग सामने आते है , शहर , कसबे और ग्राम के निचले स्तर मैं पानी का बढ़ जाना और बाढ़ जैसे स्थिती पैदा होना । मेघ द्वारा बरसाया गया समस्त जल सीधे सीमेंट कंक्रीट की नालियों के माध्यम से नालों और नदियों मैं इकट्ठा हो बह आता है नतीजा खतरनाक बाढ़ की स्थिती बनती है जो जान माल के नुक्सान का कारण बनती है । और यह जल व्यर्थ बहते हुए समुद्र मैं चला जाता है , जो की आम जीवन मैं उपयोग हेतु नही रह जाता है ।
तो क्यों न इस व्यर्थ बहते बारिस के कीमती जल को बारिस के मौसम मैं भी सहेजने का प्रयास किया जाए । जन्हा तक हो सके जन्हा जरूरत न हो वंहा भूमि को सीमेंट कंक्रीट से न पाटे , घर के आसपास और खाली पड़ी जमीन पर पेड़ पौधे लगाने का प्रयास किया जाए , नदी नालों मैं बाँध बनाकर और तालाबों का जीर्णोधार कर एवं वाटर हार्वेस्टिंग जैसे अन्य जल सरक्षण उपायों को अपनाया जाए । इस प्रकार दिनों दिन विकराल होती पानी की समस्या से निजात पाया जा सकता है , साथ ही प्राकृतिक रूप से पैदा होते बाढ़ जैसे समस्या पर भी काफ़ी हद तक नियंत्रण पाया जा सके ।