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रविवार, 24 नवंबर 2019

पत्थर# की पुकार !

                                इमेज गूगल साभार
उठा लो मुझे इन आवारा राहों से ,
न उछाला जाऊं इधर उधर बेकार ,
न खाऊ ठोकरें पग पग की बार बार ,
न लगे मुझसे राहगीरों को चोटों की मार ,
न बनू में हिंसक प्रदर्शनों का हथियार ।

कोई मिला दे मुझे नेक पनाहों से ,
जिसकी नजर पारखी और मन कलाकार ,
जो दूर करें मेरे सारे विकृति और विकार ,
जो तराश कर दे दे मुझे कोई आकार ,
जो लगा दे मेरे स्वरूप में चांद चार ।

हो जाये मेरा जीवन कृतार्थ अभारों से ,
बन जाऊं मैं भवनों का मजबूत आधार ,
या बढ़ा शोभा घरों की बन जाऊं श्रृंगार ,
विराज मंदिरों में बन जाऊं ईश्वरीय अवतार ,
आस्था और श्रद्धा से दिलों का बनूं करार ।
                               *** दी.कु. भानरे (दीप)***
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10220798051010826&id=1524713766

शनिवार, 16 नवंबर 2019

चलो कुछ पत्थर# तो तबियत# से उछालें यारो# !

चलो कुछ पत्थर# तो तबियत# से उछालें यारो# !

चलो कुछ पत्थर तो तबियत से उछालें यारो ,
कोई तो जाकर सुराख करेगा यारो ।

पत्थर यूं ही वापस आये तो क्या ,
आसमां तक नहीं पहुंच पाये तो क्या,
सुराख नहीं भी कर पाये तो क्या ,
इस बात का ग़म तो नहीं होगा  कि ,
मैंने एक भी पत्थर आसमां में नहीं उछाले यारों ।

ये बात भी तो हो सकती है कि,
उस समय तबियत ही नहीं थी ,
वो पूरी ताकत से उछाला ही नहीं ,
तो आसमां में सुराग कैसे होता ,
तो भी आसमां में कुछ पत्थर तो उछाले यारों ।

ऐसा भी तो हो सकता है यारों ,
उछालने के लिये जो पत्थर चुने गए थे ,
वे सही आकार और वजन के नहीं थे ,
इसलिये आसमां में सुराख नहीं कर पाए ,
तो हमने गलत पत्थर आसमां में उछाले यारों ।

अगली बार सही पत्थर का चयन करेंगे,
जोश और होश को संभालते हुए  ,
पूरी ताकत और तबीयत से उछालेंगे,
जब तक कि आसमां में सुराख नहीं हो जाये,
और तब तक पत्थर आसमां में उछालेंगे यारों । 

मंगलवार, 12 नवंबर 2019

सहला# रहे है वो# अब पसीने# से तर बाल# !

इमेज गूगल साभार 

वो धूप का कर इस्तकबाल ,
छत पर सुखाते है अपने गीले बाल,
सुनहरी धूप के आगोश में ,
तन मन उनका सुकुं से हुआ निहाल ।

रवि भी शनै शनै चल रहे है चाल ,
बढ़ा रहे है तपन होकर कुछ लाल ।

बढ़ती तपन से है लाल उनके गाल ,
अब पोछते है पसीना तन का ,
लेकर एक मखमली रुमाल ,
अब परेशां है वो होकर बेहाल ।

दरखतों में रुक गई है रवि की चाल ,
उनके तले शीतल छांव है कमाल ।

बेचैन दिल में उनके आया इक ख्याल ,
काश मिले कहीं ठंडी छांव का जाल ,
जा ठहरी नजरें उनकी इक दरख़्त में ,
पाने ठंडी छांव बढ़ चले कदमताल ।

दरख्तो के साये उन्हें मिला जो सुकून ,
सहला रहे है वो अब पसीने से तर बाल ।
            ****,दी.कु.भानरे (दीप) ****https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10220683880356631&id=1524713766

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# फुर्सत मिली न मुझे अपने ही काम से लो बीत  गया एक और # साल फिर मेरे # मकान से ।   सोचा था इस साल अरमानों की गलेगी दाल , जीवन...