जिस देश मैं राष्ट्रपति के पद पर एक महिला आसीन है , सत्ता मैं काबिज़ गठबंधन की सर्बोच्चा एवं सर्वमान्य नेता एक महिला है , जन्हा आज महिला सभी क्षेत्रों मैं पुरुषों के साथ बराबरी से कंधे से कंधे मिलकर कार्य कर रही है क्या उस देश की महिलाओं की नेत्रत्व क्षमता मैं अभी भी शक और सुबह की गुंजाइश बचती है । चाहे केन्द्र सरकार की बात करें या फिर राज्य सरकार की पंचायत और स्थानीय निकायों के चुनाव मैं ५० फीसदी आरक्षण का लाली पाप देकर महिला समानता और हितों के हिमायती होने दंभ भरते हैं । क्यों नही अभी तक संसद मैं महिला आरक्षण का बिल पास हो पाया है , ३३ फीसदी ही क्यों ५० फीसदी यानि बराबरी के हक़ की बात क्यों नही की जाती है ।
जन्हा आधी आबादी महिलाओं की हो किंतु सत्ता मैं भागीदारी उनकी आबादी के अनुपात मैं न हो तो कैसे कहेंगे देश की सरकार पूर्णतः लोकतान्त्रिक है जो देश की सभी आबादी का प्रतिनिधितव करती है । उनकी समान भागीदारी के अभाव मैं क्या उनके हितों और हकों के अनुरूप नीतियां और योजनायें बन पाती होगी - अभी तक महिला आरक्षण का बिल का संसद मैं पास न होना इस बात का घोतक है संसद मैं महिलायें संख्या के मामले मैं पुरुषों से कमजोर पड़ रही है । जब महिला आरक्षण बिल का वर्षों से यह हाल है तो महिला के कल्याण और हितों के अनुरूप बनने वाले कानून अथवा योजनाये पूर्वाग्रहों से कितने मुक्त होते होंगे इस बात अंदाज़ लगाना मुश्किल नही होगा । आजादी के ६२ वर्षों बाद भी महिलायें अपनी आबादी के अनुपात मैं संसद मैं अपनी हिस्सेदारी नही बना पायी ।
यदि सरकार और संसद वास्तव मैं महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु कृत संकल्प है तो उसे कुछ ऐसे कदम उठाने चाहिए । जैसे हो सके तो महिलाओं को पंचायत से लेकर संसद तक के चुनाव मैं प्रत्याशी के रूप मैं खड़े होने हेतु प्रेरित करने के उद्देश्य से नामांकन फार्म भरने से लेकर चुनाव लड़ने तक का आर्थिक खर्च का वहां सरकार द्वारा किया जाना चाहिए । दूसरा यह की सत्ता खिसकने एवं संसदीय सीट छीन जाने के डर से कोई न कोई अड़ंगा लगाकर महिला बिल को पास होने से रोका जाता है । अतः इसे अब नेताओं के हाथ से निकलकर सीधे जनता के बीच ले जाकर जनता द्वारा वोटिंग के माध्यम से इस पर फ़ैसला कराया जाना चाहिए । फ़िर देखें कैसे न पास होगा महिला आरक्षण का बिल । क्योंकि आधी आबादी और उससे अधिक का समर्थन मिलना तो निश्चित ही है ।
आशा है की इस तरह के गंभीर प्रयास यदि किए जायेंगे तो महिलाओं की सभी क्षेत्रों मैं उनकी आबादी की हिसाब से समान भागीदारी और हिस्सेदारी निश्चित रूप से सुनिश्चित हो पाएगी ।