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मंगलवार, 23 अप्रैल 2024

#आंगन की छत है !

 


#आंगन की छत है ,

#रस्सी की एक डोर,

बांध रखी है उसे ,

किसी कौने की ओर।


#नारियल की #नट्टी बंधी

और एक पात्र #चौकोर ,

एक में भरा पानी ,

एक में #दाना दिया छोड़ ।


कभी भरी #दोपहरी,

तो कभी सांझ या भोर,

चलता है नन्हे मेहमानों का,

#अठखेलियों का दौर ।


कभी मुंह में पानी ,

तो कभी अनाज का कोर,

#चहचहाते हुये सब ,

मचाते है शोर ।


कोमल सा मन है ,

तन भी न कठोर ,

#फुर्र से उड़ जाते हैं,

जब कोई आता उनकी ओर।


आते रहे ऐसे ही ,

नन्हे #मेहमान बतौर,

आओ बांध ले संग,

एक #रिश्ते की डोर ।

लो बीत गया एक और #साल !

# फुर्सत मिली न मुझे अपने ही काम से लो बीत  गया एक और # साल फिर मेरे # मकान से ।   सोचा था इस साल अरमानों की गलेगी दाल , जीवन...