फ़ॉलोअर

बुधवार, 24 अक्टूबर 2018

पिये# जा रहे इसे व्हिस्की# और रम# की तरह !

नशे सी हो गयी जिंदगी ,
पिये जा रहे इसे व्हिस्की और रम की तरह ,
कभी तो खुशगवार होगी जिंदगी ,
जिये जा रहे है इसे एक वहम की तरह।
मिल जाते लोग कदम कदम पर कई रिश्तों में ,
निभा लेंगे हर रिश्ता जिंदगी से एक रसम की तरह।
कभी अपनों की दुआओं तो कभी अपनों का सहारा ,
जिंदगी के तपते रेगिस्तान में हो जाते हैं मरहम की तरह।
बड़ी बेरहम है ये दुनिया न जाने किस बात पर बिगड़ जाये ,
पर खुशकिस्मती से मिला है सबका साथ रहम की तरह।
गम और ख़ुशी के न जाने कितने रंग है आजमाये,
करवटें लेती रही जिंदगी धुप और बारिश के मौसम के तरह।
माना कि बेवफा है जिंदगी न जाने कब साथ छोड़ जाये ,
चाहा है इस जिंदगी को एक खूबसूरत सनम की तरह।
है जब तक "दीप" ऐ जहान जिंदगी,
जी लेंगे एक कसम की तरह
हो कोई भी गमे ऐ जिंदगी ,
पी लेंगे इसे व्हिस्की और रम की तरह।

गुरुवार, 4 अक्टूबर 2018

सब कुछ छोड़ आया कुछ पाने की आस में !


सब कुछ छोड़ आया कुछ पाने की आस में ।

सब कुछ छोड़ आया कुछ पाने की आस में ।
मुझे खूब आगे बढ़ना है मुझे कुछ बनना है ,
शोहरतें और सब सुविधाएँ पाने की तमन्ना है ,
कितनी दूर निकल आये इन सबकी तलाश में ।

पहले चैन और सुकून छूटा फिर घर छूटा ,
परिवार छूटा फिर दोस्त और यारी छूटी ,
गली मोहल्ला और बस्तियां सारी छूटी ,
बस अकेले ही चल पड़े मुसाफिर के लिबास में ।

सोचा था कुछ बन जाऊँगा पैसा कमाऊँगा,
जो मन चाहे वैसा सबकुछ कर जाऊँगा ,
वो वक्त न आ सका कुछ ज्यादा पाने के प्रयास में।

ढल रही है उम्र मुट्ठी की रेत की तरह ,
पिघल रही है जवानी जलते मोम की तरह ,
घायल तन को घेर रहे है रोग चींटी की तरह ,
पैसा है वक्त है पर अच्छी तासीर नहीं है पास में। 

सारी उम्र यूँ ही गुजार दी  जीवन की तराश में ,
अब तो गुजरेगी जिंदगी अच्छे पलों की याद में ,
कुछ न हासिल आया "दीप" इस खाली हाथ में ,
सब कुछ छोड़ आया कुछ पाने की आस में ।

लो बीत गया एक और #साल !

# फुर्सत मिली न मुझे अपने ही काम से लो बीत  गया एक और # साल फिर मेरे # मकान से ।   सोचा था इस साल अरमानों की गलेगी दाल , जीवन...