देश मैं हाल ही मैं घटी दो घटना तो यही बयां कराती है । एक घटना जिसमे सरकार के एक मंत्री अंतुले राजनीतिक महत्व्कांचा के चलते ऐ टी अस प्रमुख की शहादत पर विवादस्पद बयानबाजी कर रहें है और सरकार और ख़ुद की आतंकवाद के प्रति लड़ने की मंशा पर प्रश्नचिंह लगा कर इस लड़ाई को कमजोर कर रहें हैं । वन्ही दूसरी घटना जिसमे देश के व्ही आई पी खिलाडी जहीर चेन्नई मैं स्वयम सुरक्षा के लिए की गई सुरक्षा जाँच को धता बता कर जांच एजेन्सी और जवानों के मनोबल को गिरा रहें हैं । यह तो रही देश के व्ही आई पी और ख्यातनाम जिम्मेदार लोगों की बात । लगभग यही हाल देश के अधिकाँश लोगों का भी है । टीवी स्क्रीन पर , समाचार पत्रों और विभिन्न मंचो पर आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई की कसमे खाते नही अघाते हैं किंतु जब सहयोग और कुछ करने की बारी आती है तो बगल झाँकने लगते हैं और जरा असुबिधा और जांच अपमानजनक और परेशानी वाली लगती है । आमजन भी सड़कों पर मोमबत्ती जलाकर तो कही हस्ताक्षर अभियान चलाकर तो कंही मानव श्रृंख्ला बनाकर आतंकवाद के विरुद्ध लड़ने की प्रतिज्ञा करते हैं किंतु जिम्मेदारी निभाने का वक़्त आने पर अधिकाँश लोग बचने की कोशिश करते नजर आते हैं ।
ऐसे मैं आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई लड़ने की बात सिर्फ़ मुह्जवानी , प्रदर्शन और सरकार और प्रशासन की फाइलों तक सीमित और सिमट कर रह जाने से इनकार नही किया जा सकता है । फिर कौन लडेगा आतंकवाद की लड़ाई । क्या हम नही हमारे पड़ोस वाला , या फिर कोई और । क्या कोई मसीहा , या फिर कोई दिव्यशक्ति या फिर कोई अवतार । शायद सभी लोग इसी बात का इंतज़ार और आशा कर रहे हैं की काश कोई आता और देश को और हमें हमारी परेशानियों और मुसीबतों से निजात और छुटकारा दिलाता ।
क्या तू चल मैं आया वाली तर्ज़ पर आतंकवाद के विरुद्ध सही और सकारात्मक लड़ाई लड़ी जा सकती है । कहा जाता है की हिम्मते मर्दा मदद ऐ खुदा । अतः जरूरत है की इस आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई मैं सभी अपनी क्षमता और सामर्थ्य के अनुसार अपनी जिम्मेदारी निभाने का और व्यवस्थाओं मैं सहयोग करने का प्रयास करें । तभी हम आतंकवाद के विरुद्ध एक सही लड़ाई को अंजाम दे सकेंगे ।