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बुधवार, 26 दिसंबर 2018
शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018
नजाने# किस बात# का नशा# है।
नजाने# किस बात# का नशा# है।
क्यों भटक रहे कुछ युवा, न जाने किस बात का नशा है।
अपने में ही खोये हुये है , दुनिया भी उसकी जुदा है।
बंधनों में नहीं चाहते बंधना ,न ही चाहते कोई कायदा।
जरुरत नहीं मशविरों की ,जिद पूरी करने पर अमादा है।
सब पाने की चाह लिये है ,कच्चे रास्तों सा इरादा है।
बिना हुनर चाहत उड़ान की , जैसे की उड़ता परिंदा है।
लेकर दुनिया में सपनों की , बस छूना चाहते आसमा है।
रेत सा वक्त फिसल रहा है ,मौके भी नहीं कुछ ज्यादा है।
छोड़ बेपरवाही बचपन सी , कुछ तो हो जायें संजीदा है।
हाथ फैलाये खड़ा है 'दीप ' ,रश्मियों भरा नया सबेरा है।
अपने में ही खोये हुये है , दुनिया भी उसकी जुदा है।
बंधनों में नहीं चाहते बंधना ,न ही चाहते कोई कायदा।
जरुरत नहीं मशविरों की ,जिद पूरी करने पर अमादा है।
सब पाने की चाह लिये है ,कच्चे रास्तों सा इरादा है।
बिना हुनर चाहत उड़ान की , जैसे की उड़ता परिंदा है।
लेकर दुनिया में सपनों की , बस छूना चाहते आसमा है।
रेत सा वक्त फिसल रहा है ,मौके भी नहीं कुछ ज्यादा है।
छोड़ बेपरवाही बचपन सी , कुछ तो हो जायें संजीदा है।
हाथ फैलाये खड़ा है 'दीप ' ,रश्मियों भरा नया सबेरा है।
गुरुवार, 13 दिसंबर 2018
काश# समेट# लेता उन पलों# को
काश# समेट# लेता उन पलों# को
काश समेट लेता उन पलों को ,
और बंद करके रख लेता संदूक में।
उत्साह और खुशियों से सरोबार ,
बिताये जो अपनों और दोस्तों संग।
वे पल जो गवाह है आज हकीकत के,
बन जायेंगे किस्से कहानी के अंग।
और बंद करके रख लेता संदूक में।
उत्साह और खुशियों से सरोबार ,
बिताये जो अपनों और दोस्तों संग।
वे पल जो गवाह है आज हकीकत के,
बन जायेंगे किस्से कहानी के अंग।
जब कभी फुरसत से बैठेंगे अकेले में ,
और न होगा दोस्त न अपनों का संग।
चुपके से लवों पर मुस्कराहट लिए ,
जब यादों में आयेंगे वे खूबसूरत प्रसंग।
तब खोलकर भरी संदूक से निकाल
जीवन में भर लूंगा खुशियों के वे सारे रंग।
और न होगा दोस्त न अपनों का संग।
चुपके से लवों पर मुस्कराहट लिए ,
जब यादों में आयेंगे वे खूबसूरत प्रसंग।
तब खोलकर भरी संदूक से निकाल
जीवन में भर लूंगा खुशियों के वे सारे रंग।
शनिवार, 17 नवंबर 2018
आओ संभाल लें रिश्तों को दरकने से पहले !
आओ संभाल लें रिश्तों को दरकने से पहले ,
करें एक पहल नजरों में खटकने से पहले।
माना कि कुछ अनबन हो गई हो कभी ,
कुछ अपने रुसवा हो गये हो तभी ,
करें एक पहल फासले मिटायें ,
आओ रूठे हुये अपनों को मनायें।
गर दोस्तों से बहुत दिनों से न हो मिले
जीवन की उलझनों में अब तक रहे उलझे ,
क्यों न एक सरप्राइज प्लान बनायें ,
दोस्तों के घर अचानक खुद ही पहुंच जायें ,
एक बार फिर बच्चों संग बच्चे बन जायें ,
अपना बड़ापन त्याग उनके दोस्त हो जायें ,
शांत घर में खूब धमाचोकड़ी मचायें ,
बड़े छोटे की हदें पार कर जायें ,
माना जीवन की आपाधापी में समय नहीं मिला ,
बड़े बुजुर्गों संग बैठने का रुका सिलसिला ,
आओ दूर कर दें अब उनकी ये गिला ,
उनके ही आशीर्वाद से जीवन "दीप" है फलाफूला।
आओ संभाल लें रिश्तों को दरकने से पहले ,
करें एक पहल नजरों में खटकने से पहले।
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सोमवार, 5 नवंबर 2018
दीपों# की जगमग# से है रोशन# सारा जहाँ !
दीपों की जगमग से है रोशन सारा जहाँ ,
सबके त्याग और सहयोग की है सुन्दर दास्ताँ ।
बिन बाती के तेल भी रौशनी दे कहाँ ,
बिन तेल के बाती में लौ जले कहाँ ,
तेल अपनी आप को समर्पित करता यहाँ ,
स्वयं को जला बाती भी रोशन करें जहाँ।
बिन तेल के बाती में लौ जले कहाँ ,
तेल अपनी आप को समर्पित करता यहाँ ,
स्वयं को जला बाती भी रोशन करें जहाँ।
दीपक के बलिदान का भी है अपना हिस्सा ,
लिये तेल और बाती को अपने अंदर समा ,
स्वयं तले अँधेरा रख रोशन करे जहाँ।
लिये तेल और बाती को अपने अंदर समा ,
स्वयं तले अँधेरा रख रोशन करे जहाँ।
शांत सौम्य लौ का भी है अपना किस्सा ,
अठखेलिया कर हवा संग इठलाती यहाँ वहाँ ,
रौद्र रूप हवा ले, लौ पर बन जाती काल समां।
अठखेलिया कर हवा संग इठलाती यहाँ वहाँ ,
रौद्र रूप हवा ले, लौ पर बन जाती काल समां।
सीधी सादी लौ का भी बढ़ जाता कभी नशा ,
अपने दोनों हाथों से लौ को जो देता सुरक्षा ,
बहक जाये जब हवा संग तो हाथ भी देती जला।
रौशनी के प्रेम में खिचे चले आते नादाँ ,
हो सके न एक दूजे के तो हो जाते क़ुरबाँ ।
किंतना उलझा हुआ है "दीप " सबका यह नाता ,
फिर भी मिलजुलकर सब बनाते खुशनुमा जहाँ।
शुभ और मंगलमय दीपावली ।
बुधवार, 24 अक्टूबर 2018
पिये# जा रहे इसे व्हिस्की# और रम# की तरह !
नशे सी हो गयी जिंदगी ,
पिये जा रहे इसे व्हिस्की और रम की तरह ,
कभी तो खुशगवार होगी जिंदगी ,
जिये जा रहे है इसे एक वहम की तरह।
कभी तो खुशगवार होगी जिंदगी ,
जिये जा रहे है इसे एक वहम की तरह।
मिल जाते लोग कदम कदम पर कई रिश्तों में ,
निभा लेंगे हर रिश्ता जिंदगी से एक रसम की तरह।
निभा लेंगे हर रिश्ता जिंदगी से एक रसम की तरह।
कभी अपनों की दुआओं तो कभी अपनों का सहारा ,
जिंदगी के तपते रेगिस्तान में हो जाते हैं मरहम की तरह।
जिंदगी के तपते रेगिस्तान में हो जाते हैं मरहम की तरह।
बड़ी बेरहम है ये दुनिया न जाने किस बात पर बिगड़ जाये ,
पर खुशकिस्मती से मिला है सबका साथ रहम की तरह।
पर खुशकिस्मती से मिला है सबका साथ रहम की तरह।
गम और ख़ुशी के न जाने कितने रंग है आजमाये,
करवटें लेती रही जिंदगी धुप और बारिश के मौसम के तरह।
करवटें लेती रही जिंदगी धुप और बारिश के मौसम के तरह।
माना कि बेवफा है जिंदगी न जाने कब साथ छोड़ जाये ,
चाहा है इस जिंदगी को एक खूबसूरत सनम की तरह।
चाहा है इस जिंदगी को एक खूबसूरत सनम की तरह।
है जब तक "दीप" ऐ जहान जिंदगी,
जी लेंगे एक कसम की तरह
हो कोई भी गमे ऐ जिंदगी ,
पी लेंगे इसे व्हिस्की और रम की तरह।
जी लेंगे एक कसम की तरह
हो कोई भी गमे ऐ जिंदगी ,
पी लेंगे इसे व्हिस्की और रम की तरह।
गुरुवार, 4 अक्टूबर 2018
सब कुछ छोड़ आया कुछ पाने की आस में !
सब कुछ छोड़ आया कुछ पाने की आस में ।
सब कुछ छोड़ आया कुछ पाने की आस में ।
मुझे खूब आगे बढ़ना है मुझे कुछ बनना है ,
शोहरतें और सब सुविधाएँ पाने की तमन्ना है ,
कितनी दूर निकल आये इन सबकी तलाश में ।
पहले चैन और सुकून छूटा फिर घर छूटा ,
परिवार छूटा फिर दोस्त और यारी छूटी ,
गली मोहल्ला और बस्तियां सारी छूटी ,
बस अकेले ही चल पड़े मुसाफिर के लिबास में ।
सोचा था कुछ बन जाऊँगा पैसा कमाऊँगा,
जो मन चाहे वैसा सबकुछ कर जाऊँगा ,
वो वक्त न आ सका कुछ ज्यादा पाने के प्रयास में।
ढल रही है उम्र मुट्ठी की रेत की तरह ,
पिघल रही है जवानी जलते मोम की तरह ,
घायल तन को घेर रहे है रोग चींटी की तरह ,
पैसा है वक्त है पर अच्छी तासीर नहीं है पास में।
सारी उम्र यूँ ही गुजार दी जीवन की तराश में ,
अब तो गुजरेगी जिंदगी अच्छे पलों की याद में ,
कुछ न हासिल आया "दीप" इस खाली हाथ में ,
सब कुछ छोड़ आया कुछ पाने की आस में ।
रविवार, 9 सितंबर 2018
जाती हुई बारिश# से बातें# कर लें दो चार .
चलो वक्त से थोड़ा बचपन लें उधार .
जाती हुई बारिश से बातें कर लें दो चार .
फिर न मिलेगी वो बारिश की फुहार .
और न ही होगा बड़ी बूंदों का प्रहार .
पानी भरे गड्डों में थोड़ा उछल लें यार .
मस्ती से भीगकर हो जायें सरोबार .
कीचड लगने की चिंता करना है बेकार .
चलो पानी में कागज़ की नाव दें उतार .
जाने दो जहाँ तक ले जाए पाने की धार .
डूब भी जाए तो क्या इसमें नहीं जीत हार .
उड़ जाने दो छतरी चिंता काहे की यार .
चलो भीगते हुये ही घूम आएं बाजार .
घर में डांट तो होगी पर न होगी मार .
अदरक वाली चाय की होगी दरकार .
अब वापस कर दें यह बचपन उधार .
फिर से लौट आयें "दीप" घर द्वार .
जाती हुई बारिश से बातें कर लें दो चार .
फिर न मिलेगी वो बारिश की फुहार .
और न ही होगा बड़ी बूंदों का प्रहार .
पानी भरे गड्डों में थोड़ा उछल लें यार .
मस्ती से भीगकर हो जायें सरोबार .
कीचड लगने की चिंता करना है बेकार .
चलो पानी में कागज़ की नाव दें उतार .
जाने दो जहाँ तक ले जाए पाने की धार .
डूब भी जाए तो क्या इसमें नहीं जीत हार .
उड़ जाने दो छतरी चिंता काहे की यार .
चलो भीगते हुये ही घूम आएं बाजार .
घर में डांट तो होगी पर न होगी मार .
अदरक वाली चाय की होगी दरकार .
अब वापस कर दें यह बचपन उधार .
फिर से लौट आयें "दीप" घर द्वार .
बुधवार, 5 सितंबर 2018
जब भिन्न रूपों में गुरुओं का हो वरद हाथ ।
जब भिन्न रूपों में गुरुओं का हो वरद हाथ ।
जीवन में लक्ष्यों का है अनंत आकाश ।
जिन्हें बाँहों में समेटने का अथक प्रयास ।
जब भिन्न रूपों में गुरुओं का हो वरद हाथ ।
प्रथम गुरु माता पिता का हो आशीर्वाद ।
दूजा गुरुओं के ज्ञान का हो चिर प्रकाश ।
भाई बहिन व् अपनों की सबक और डांट।
जीवन संगिनी का हर पल साथ व विश्वास ।
दोस्तों व सहकर्मियों का सहयोग भरा साथ ।
हर पल प्रेरणा देती यह प्रकृति अनायास ।
मेरे प्रिय छात्रों की प्रश्न जिज्ञासा का अर्थात ।
सभी के मार्गदर्शन ने जीवन दिया है तराश ।
जीवन को मिला खुशियों का अनंत आकाश ।
सभी गुरुओं को शत शत 'दीप' नमन है आज ।
शिक्षक दिवस की शुभकामनायें एवं बधाइयाँ ।
जीवन में लक्ष्यों का है अनंत आकाश ।
जिन्हें बाँहों में समेटने का अथक प्रयास ।
जब भिन्न रूपों में गुरुओं का हो वरद हाथ ।
प्रथम गुरु माता पिता का हो आशीर्वाद ।
दूजा गुरुओं के ज्ञान का हो चिर प्रकाश ।
भाई बहिन व् अपनों की सबक और डांट।
जीवन संगिनी का हर पल साथ व विश्वास ।
दोस्तों व सहकर्मियों का सहयोग भरा साथ ।
हर पल प्रेरणा देती यह प्रकृति अनायास ।
मेरे प्रिय छात्रों की प्रश्न जिज्ञासा का अर्थात ।
सभी के मार्गदर्शन ने जीवन दिया है तराश ।
जीवन को मिला खुशियों का अनंत आकाश ।
सभी गुरुओं को शत शत 'दीप' नमन है आज ।
शिक्षक दिवस की शुभकामनायें एवं बधाइयाँ ।
सोमवार, 3 सितंबर 2018
हे ! कान्हा तेरे आने से आस जगी है अपार ।
हे ! कान्हा तेरे आने से आस जगी है अपार ।
रोग द्वेष सब दूर होंगे खुशियों से सजेंगे हर द्वार ।
आशा और उम्मीद की किरणें लेने लगी आकार ।
हर जायेंगे सब दुःख संताप होगा सबका उद्धार ।
निःस्वार्थ प्रेम की निश्चल धारा फिर बहेगी इस बार ।
जब बालसखा और गोपियों संग छायेगी रास बहार ।
नरकासुर और कंश जैसे पापियों का होगा संहार ।
अब अन्याय और अत्याचार पर होगा कड़ा प्रहार ।
द्रोपदी चीर हरण सी पीड़ा न सहनी होगी बार बार ।
नारी सम्मान की रक्षा के लिए अब हाथ उठेंगे हजार ।
दूध दही माखन और धन धान्य की होगी भरमार ।
पौष्टिक सात्विक आहार पर सबका होगा अधिकार ।
सहयोग और प्रेम के रिश्ते अब और होंगे प्रगाढ़ ।
सुख समृद्धि और खुशियों से जीवन होगा सरोबार ।
श्री कृष्ण जन्मोत्सव की कोटिश मंगलकामनायें ।
जय श्री राधेकृष्णा ।
शुक्रवार, 27 जुलाई 2018
तब जरुरी# है गुरु# का मार्गदर्शन# !
तब जरुरी# है गुरु# का मार्गदर्शन# ।
कुछ भी कर गुजरने का है दम ।
पर इंतजार का नही है संयम ।
जैसे ही उठाया कोई कदम ।
चाहा झट मिल जाये प्रतिफल ।
जब हक में नही रहता करम ।
असफलता हो जाती असहन ।
टूटने लगता है सपनों का भ्रम ।
मायूसी का छा जाता है तम ।
तब जरुरी है गुरु का मार्गदर्शन ।
जो दूर करे मन का सारा वहम ।
अँधेरे जीवन को कर दे रोशन ।
समस्त पूज्यनीय गुरुओं को समर्पित ।।
जय गुरुदेव ।।।
कुछ भी कर गुजरने का है दम ।
पर इंतजार का नही है संयम ।
जैसे ही उठाया कोई कदम ।
चाहा झट मिल जाये प्रतिफल ।
जब हक में नही रहता करम ।
असफलता हो जाती असहन ।
टूटने लगता है सपनों का भ्रम ।
मायूसी का छा जाता है तम ।
तब जरुरी है गुरु का मार्गदर्शन ।
जो दूर करे मन का सारा वहम ।
अँधेरे जीवन को कर दे रोशन ।
समस्त पूज्यनीय गुरुओं को समर्पित ।।
जय गुरुदेव ।।।
शुक्रवार, 29 जून 2018
खुलकर# बरसने# दो इस बारा# !
खुलकर# बरसने# दो इस बारा# !
चुभती गर्मी से पाने को छुटकारा , फिर सबने बारिश को है पुकारा ।
जब आया शीतल बारिश का फुहारा , नाच उठा खुशि से जग सारा ।
कुछ ही दिन था खुशियों का खुमारा ,बारिश लगने लगी अब नगवारा ।
चारो और जब फैला कीचड़ सारा , फिसलन ने जब तब खेल बिगाड़ा ।
बस भीग भीग कर इंसा हारा , हर बार सोचा कि अब न भीगूंगा दुबारा ।
खेलकूद और काम भी गया मारा, घर में रहने को मजबूर इंसा बेचारा ।
बारिश जल्द लगने लगी आवारा , कोस कोस हो रहा अब दिन गुजारा ।
न तृप्त धरती न तृप्त जग सारा ,इतने जल्दी बारिश से न करो किनारा ।
बारिश तो अमृत जीवन धारा , यही तो सृष्टि के सब जीवों का सहारा ।
खुलकर बरसने दो इस बारा , तरबतर हो जाये हर कोना और किनारा ।
चुभती गर्मी से पाने को छुटकारा , फिर सबने बारिश को है पुकारा ।
जब आया शीतल बारिश का फुहारा , नाच उठा खुशि से जग सारा ।
कुछ ही दिन था खुशियों का खुमारा ,बारिश लगने लगी अब नगवारा ।
चारो और जब फैला कीचड़ सारा , फिसलन ने जब तब खेल बिगाड़ा ।
बस भीग भीग कर इंसा हारा , हर बार सोचा कि अब न भीगूंगा दुबारा ।
खेलकूद और काम भी गया मारा, घर में रहने को मजबूर इंसा बेचारा ।
बारिश जल्द लगने लगी आवारा , कोस कोस हो रहा अब दिन गुजारा ।
न तृप्त धरती न तृप्त जग सारा ,इतने जल्दी बारिश से न करो किनारा ।
बारिश तो अमृत जीवन धारा , यही तो सृष्टि के सब जीवों का सहारा ।
खुलकर बरसने दो इस बारा , तरबतर हो जाये हर कोना और किनारा ।
शनिवार, 16 जून 2018
कहता# नहीं मुंह# पर ........!
कहता# नहीं मुंह# पर ........!
कितने फरेब पाल रखे है इंसा ,
पर कोशिश होती है सच की तरह दिखाने की ।
कोई समझ न पायेगा सोचता है इंसा ,
खुश होता है सोचकर नादानियां जमाने की ।
खुद तो जिम्मेदारी से दूर भागता है इंसा ,
दूसरों को तालीम देता है उसूलों को आजमाने की।
खुदा भी रखता हिसाब भूल जाता है इंसा ,
झोंकता रहता है ताउम्र धूल आँखों में जमाने की ।
छोड़ भी दे ऐसी नाकाम कोशिशें ऐ इंसा ,
भागकर अपनी जिम्मेदारी से खुद को भरमाने की ।
क्योंकि इतना नादान नासमझ नही है इंसा ,
कहता नहीं मुंह पर समझता सब चालाकियां जमाने की ।
कितने फरेब पाल रखे है इंसा ,
पर कोशिश होती है सच की तरह दिखाने की ।
कोई समझ न पायेगा सोचता है इंसा ,
खुश होता है सोचकर नादानियां जमाने की ।
खुद तो जिम्मेदारी से दूर भागता है इंसा ,
दूसरों को तालीम देता है उसूलों को आजमाने की।
खुदा भी रखता हिसाब भूल जाता है इंसा ,
झोंकता रहता है ताउम्र धूल आँखों में जमाने की ।
छोड़ भी दे ऐसी नाकाम कोशिशें ऐ इंसा ,
भागकर अपनी जिम्मेदारी से खुद को भरमाने की ।
क्योंकि इतना नादान नासमझ नही है इंसा ,
कहता नहीं मुंह पर समझता सब चालाकियां जमाने की ।
बुधवार, 30 मई 2018
तुम आये पर दीदार# न हुआ तेरा# !
तुम आये पर दीदार# न हुआ तेरा# !
तप्ती धूप की जलन इस पर पसीने की चुभन ,
तुझसे मिलने का है मन , तेरे इंतज़ार में खड़े है हम ,
तुम आये पर दीदार न हुआ तेरा ,
क्योंकि चेहरे पर नकाब जो चढ़ा रखा था ।
सोचा था होगा मिलन कुछ तो कम होगी जलन,
तेरे झील से है जो लोचन डूबकर राहत पा लेंगे हम ,
पर नजरों पर नजरों का न हुआ बसेरा ,
क्योंकि आँखों पर काला चश्मा चढ़ा रखा था ।
राहों में दरख्त है कम ठंडी छाँव के लिये तरसे हम ,
सोचा जुल्फों के छाँव में सनम राहत पा लेंगे हम,
पर जुल्फों का साया न मिल सका तेरा ,
क्योंकि सर पर दुपट्टा जो बाँध रखा था ।
उजड़ रहा प्यार का चमन गर्मी जो ढा रही सितम,
कर लें वो सारे जतन बचाएं पानी और लगाएं वन ,
हर मौसम में हो सके 'दीप' दीदार तेरा ,
क्योंकि कायनात खफा होकर न बने व्यथा ।
तप्ती धूप की जलन इस पर पसीने की चुभन ,
तुझसे मिलने का है मन , तेरे इंतज़ार में खड़े है हम ,
तुम आये पर दीदार न हुआ तेरा ,
क्योंकि चेहरे पर नकाब जो चढ़ा रखा था ।
सोचा था होगा मिलन कुछ तो कम होगी जलन,
तेरे झील से है जो लोचन डूबकर राहत पा लेंगे हम ,
पर नजरों पर नजरों का न हुआ बसेरा ,
क्योंकि आँखों पर काला चश्मा चढ़ा रखा था ।
राहों में दरख्त है कम ठंडी छाँव के लिये तरसे हम ,
सोचा जुल्फों के छाँव में सनम राहत पा लेंगे हम,
पर जुल्फों का साया न मिल सका तेरा ,
क्योंकि सर पर दुपट्टा जो बाँध रखा था ।
उजड़ रहा प्यार का चमन गर्मी जो ढा रही सितम,
कर लें वो सारे जतन बचाएं पानी और लगाएं वन ,
हर मौसम में हो सके 'दीप' दीदार तेरा ,
क्योंकि कायनात खफा होकर न बने व्यथा ।
गुरुवार, 24 मई 2018
चाँद# तारे# तोड़ लाने का वादा# न कर सही !
चाँद# तारे# तोड़ लाने का वादा# न कर सही ।
चाँद तारे तोड़ लाने का वादा न कर सही ।
हर पल साथ चलने का इरादा तो कर सही ।
मिले खुशियों के चार पल ग़ुम न हो कहीं ।
इसमें ही तो छिपी है अपनी दुनिया कहीं ।
भले राहों में खुशियों के फूल बिछे हो नहीं ।
काँटों भरी राहों से जरा एतराज भी तो नहीं ।
बातों ही बातों में अब न हो कोई कहाकही ।
बात पर बात बनेगी न रहेगी कुछ अनकही।
इकरार की वो हंसी शाम पल पल गुजर रही ।
कबूले नजरें तमाम अब तुझ पर ही ठहर रही ।
अब दूरियां न रहें दरमियाँ हमसफर हमराही ।
खूबसूरत सफ़र के बन जायें हमतुम इक राही ।
चाँद तारे तोड़ लाने का वादा न कर सही ।
जीवनसाथी बन जाने का तकाजा तो कर सही ।
चाँद तारे तोड़ लाने का वादा न कर सही ।
हर पल साथ चलने का इरादा तो कर सही ।
मिले खुशियों के चार पल ग़ुम न हो कहीं ।
इसमें ही तो छिपी है अपनी दुनिया कहीं ।
भले राहों में खुशियों के फूल बिछे हो नहीं ।
काँटों भरी राहों से जरा एतराज भी तो नहीं ।
बातों ही बातों में अब न हो कोई कहाकही ।
बात पर बात बनेगी न रहेगी कुछ अनकही।
इकरार की वो हंसी शाम पल पल गुजर रही ।
कबूले नजरें तमाम अब तुझ पर ही ठहर रही ।
अब दूरियां न रहें दरमियाँ हमसफर हमराही ।
खूबसूरत सफ़र के बन जायें हमतुम इक राही ।
चाँद तारे तोड़ लाने का वादा न कर सही ।
जीवनसाथी बन जाने का तकाजा तो कर सही ।
शनिवार, 19 मई 2018
हे सूर्य# देवता# ..............!!!
हे सूर्य# देवता# ..............!!!
हे सूर्य देवता! आपका इतना तपन भरा रोद्र रूप जायज है।
क्योंकि हम इंसानों ने भी प्रकृति के साथ खूब किया छल है ,
काट दिये जंगल है,नदी नाले तालाब के सुखा दिये जल है,
बूंद बूंद पानी पर मची दंगल है ,चारों तरफ बस अमंगल है,
अपनी अपनी जिंदगी बचाने की हो रही रस्में रवायत है ।।
हे सूर्य देवता!हम इंसान भीषण गर्मी की सजा के ही लायक है।
सीमेंट कांक्रीट के फैले जंगल है,कहाँ रुके बारिश का जल है ,
खूब हो रहा पानी का दोहन है,कुएं-बोर का नीचे गया जल है ,
इस धरा के सरंक्षण से मुंह मोड़ने की हो रही कवायद है ।।
हे सूर्य देवता! हमने ही प्रकृति विनाश की लिखी इबारत है।
क्योंकि न तो उपायों पर कोई अमल है,न ही सहेज रहे जल है,
न ही सुरक्षित रहे वन है,पशु पक्षी भी घरों से हो रहे बेदखल है,
प्रकृति बर्बादी में सब शामिल है,मुश्किल में आने वाला कल है,
सब अपनी जिंदगी में मस्त है अब तो ईश्वर की ही इनायत है ।।
हे सूर्य देवता! आपका इतना तपन भरा रोद्र रूप जायज है।
क्योंकि हम इंसानों ने भी प्रकृति के साथ खूब किया छल है ,
काट दिये जंगल है,नदी नाले तालाब के सुखा दिये जल है,
बूंद बूंद पानी पर मची दंगल है ,चारों तरफ बस अमंगल है,
अपनी अपनी जिंदगी बचाने की हो रही रस्में रवायत है ।।
हे सूर्य देवता!हम इंसान भीषण गर्मी की सजा के ही लायक है।
सीमेंट कांक्रीट के फैले जंगल है,कहाँ रुके बारिश का जल है ,
खूब हो रहा पानी का दोहन है,कुएं-बोर का नीचे गया जल है ,
इस धरा के सरंक्षण से मुंह मोड़ने की हो रही कवायद है ।।
हे सूर्य देवता! हमने ही प्रकृति विनाश की लिखी इबारत है।
क्योंकि न तो उपायों पर कोई अमल है,न ही सहेज रहे जल है,
न ही सुरक्षित रहे वन है,पशु पक्षी भी घरों से हो रहे बेदखल है,
प्रकृति बर्बादी में सब शामिल है,मुश्किल में आने वाला कल है,
सब अपनी जिंदगी में मस्त है अब तो ईश्वर की ही इनायत है ।।
शनिवार, 12 मई 2018
सुख,समृद्धि व शान है माँ की संजिदिगियां ।
भरी गर्मी में भी सेकती है रोटियां ,
गर्म भाप और चूल्हे की लौ से उँगलियाँ जलाते हुये ।
सुबह चाय की प्याली से मिटाती है उबासियां ,
सर्द सुबहों में भी सबसे जल्दी उठकर ठिठुरते हुये ।
बच्चों को रोज रात सुनाती है लोरियाँ ,
अपनी दिनभर की थकान और नींद को भुलाते हुये।
घर आते ही परोसती है नास्ते की तश्तरियां,
ऑफिस या बाहर के बोझ व तनाव को परे रखते हुये ।
मुसीबत में साथ चलती है बन परछाइयाँ ,
हौसला और आत्मविश्वास से सबका संबल बढ़ाते हुये ।
हर वक्त अपनी खुशियों की देती कुर्बानियां ,
बिना किसी शोर शराबे और न नुकर कर मुस्कुराते हुये ।
उनसे ही तो बढ़ती है घर की खुशनसीबियां ,
सुख,समृद्धि व 'दीप' की शान है माँ की संजिदिगियां ।
विश्व मातृ दिवस के शुभ अवसर पर सभी मातृशक्ति को समर्पित ।
शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018
क्या मिलेगा #बेटियों को #खिलखिलाता और #सुरक्षित #जहान !
आज एक मासूम का सुरक्षित नहीं है मान सम्मान और जहान।
आखिर बेटियों को क्यों शिकार बना रहा है हर उम्र का इंसान।
क्या हमारी सामाजिक व्यवस्था का धवस्त हो रहा है तान बान।
या आज के माता पिता नहीं बना पा रहें बच्चों को संस्कारवान|
क्या नंबरों की होड़ वाली शिक्षा व्यवस्था का भी है कुछ योगदान।
या जिम्मेदार है परोसे जा रहे फूहड़ता और अश्लीलता के सामान।
या जिम्मेदार है कमजोर कानून ,देर से मिलता न्याय व दंड विधान।
या इन सब से उपजी विकृत सोच और मानसिकता का है परिणाम।
क्या मिलेगा इस भयावह और घृणित समस्या का समाधान।
क्या मिलेगा बेटियों को खिलखिलाता, सुरक्षित 'दीप' जहान।
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रविवार, 15 अप्रैल 2018
कब तक ज्यादिती# की बेदी# पर बेटी# चढ़ती रहेगी रोज!
कब तक ज्यादिती# की बेदी# पर बेटी# चढ़ती रहेगी रोज।
जन्म से पहले ही तो सुरक्षित नहीं थी माँ की कोख ।
दुनिया में आने से पहले अपने ही लगा रहे थे रोक ।
जैसे तैसे इस दुनिया में बेटी ने जन्म लिया एक रोज ।
क्या पता पहले से ही ताक पर बैठे मिलेंगे दरिंदे लोग ।
किस से बचाये अपने को न जाने किसके मन में खोट ।
न जाने कब कौन सा साथी कब खो दे अपने होश ।
गलती नहीं होने पर भी अपनी हर बार सहती चोट ।
न जाने कब तक लेना होगा अपने सर माथे सारा दोष ।
रोक सका न शोषण अब तक कानून व् केंडल विरोध ।
इतने पर ही इतिश्री कर क्यों सिल जाते सब के होंठ ।
कब तक उपभोग की वस्तु समझने की न बदलेगी सोच ।
कब तक ज्यादिती की बेदी पर बेटी चढ़ती रहेगी रोज ।
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जन्म से पहले ही तो सुरक्षित नहीं थी माँ की कोख ।
दुनिया में आने से पहले अपने ही लगा रहे थे रोक ।
जैसे तैसे इस दुनिया में बेटी ने जन्म लिया एक रोज ।
क्या पता पहले से ही ताक पर बैठे मिलेंगे दरिंदे लोग ।
किस से बचाये अपने को न जाने किसके मन में खोट ।
न जाने कब कौन सा साथी कब खो दे अपने होश ।
गलती नहीं होने पर भी अपनी हर बार सहती चोट ।
न जाने कब तक लेना होगा अपने सर माथे सारा दोष ।
रोक सका न शोषण अब तक कानून व् केंडल विरोध ।
इतने पर ही इतिश्री कर क्यों सिल जाते सब के होंठ ।
कब तक उपभोग की वस्तु समझने की न बदलेगी सोच ।
कब तक ज्यादिती की बेदी पर बेटी चढ़ती रहेगी रोज ।
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बुधवार, 4 अप्रैल 2018
तय# होते रहें सफ़र# ए जिंदगी# !
तय# होते रहें सफ़र# ए जिंदगी# !
कुछ की गोद में है खेले ,कुछ की ऊँगली पकड़ चलना सीखे ।
तो कुछ सीख देकर चले गए,तय होते रहें सफ़र ए जिंदगी ।
कोई कम उम्र में ही छूटे,तो किसी के जीवन बहुत लंबे बीते ।
एक एक कर साथ छुटे , तय होते रहें सफ़र ए जिंदगी ।
किसी से अपने थे रूठे, तो किसी को अपनों ने दिये धोखे ।
रूठ कर दुनिया से चले गए,तय होते रहें सफ़र ए जिंदगी ।
किसी का अभाव में जीवन बीते,किसी का बीमारी से चैन लुटे।
संघर्ष करते जीवन है छूटे ,तय होते रहे सफ़र ए जिंदगी ।
किसी को कुछ पता है न जाना है ,जीवन के नहीं है भरोसे ।
जब तक है जान हो बेफिक्र , जलते रहें 'दीप' ए जिंदगी ।
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कुछ की गोद में है खेले ,कुछ की ऊँगली पकड़ चलना सीखे ।
तो कुछ सीख देकर चले गए,तय होते रहें सफ़र ए जिंदगी ।
कोई कम उम्र में ही छूटे,तो किसी के जीवन बहुत लंबे बीते ।
एक एक कर साथ छुटे , तय होते रहें सफ़र ए जिंदगी ।
किसी से अपने थे रूठे, तो किसी को अपनों ने दिये धोखे ।
रूठ कर दुनिया से चले गए,तय होते रहें सफ़र ए जिंदगी ।
किसी का अभाव में जीवन बीते,किसी का बीमारी से चैन लुटे।
संघर्ष करते जीवन है छूटे ,तय होते रहे सफ़र ए जिंदगी ।
किसी को कुछ पता है न जाना है ,जीवन के नहीं है भरोसे ।
जब तक है जान हो बेफिक्र , जलते रहें 'दीप' ए जिंदगी ।
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गुरुवार, 29 मार्च 2018
अब तो #इंतज़ार में ही #नफा है !
अब तो #इंतज़ार में ही #नफा है !
गुजर जाते हैं हर बार सामने से नजर मिला न सका है ।
वो भी तो कभी कुछ कहते नहीं न जाने क्या रजा है ।
कह सकूँ दो बातें उनसे कोशिश भी की कई दफा है ।
मेरी नादानियां कहीं ऐसे ही उन्हें कर न दे खफा है ।
नाराजगियां उनकी कहीं यूँ ही न बन जाये सजा है ।
वापिस खीच लेता हूँ कदम कहीं हो न जाये खता है ।
समझ न सके हाले वफ़ा वो इतनी तो नहीं नादां है ।
हो नजरें इनायत उनकी अब तो इंतज़ार में ही नफा है ।
सुकूँ अहसासों के लिए 'दीप' करते ख़ुदा का सजदा है ।
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गुजर जाते हैं हर बार सामने से नजर मिला न सका है ।
वो भी तो कभी कुछ कहते नहीं न जाने क्या रजा है ।
कह सकूँ दो बातें उनसे कोशिश भी की कई दफा है ।
मेरी नादानियां कहीं ऐसे ही उन्हें कर न दे खफा है ।
नाराजगियां उनकी कहीं यूँ ही न बन जाये सजा है ।
वापिस खीच लेता हूँ कदम कहीं हो न जाये खता है ।
समझ न सके हाले वफ़ा वो इतनी तो नहीं नादां है ।
हो नजरें इनायत उनकी अब तो इंतज़ार में ही नफा है ।
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गुरुवार, 22 मार्च 2018
दिल# में न जाने कितने गम# छुपाये रखे सीने# में !
दिल# में न जाने कितने गम# छुपाये रखे सीने# में ।
यहाँ मिलता है हर शख्स मुस्कराहट के साथ,
दिल में न जाने कितने गम छुपाये रखे सीने में ।
लड़ता है वक्त बेवक्त आती परेशानियों के साथ ,
मशरूफ हो जाता कुछ इस तरह जिंदगी जीने में ।
मिलता है मौका तो खुश हो लेता हैं अपनों के साथ ,
हौसले यूं ही कम न हुये परेशानियों के पसीने में ।
ढ़ूढ़ते रहते हैं हल मुसीबतों का समाधानो के साथ ,
कभी मंदिर मस्जिद तो कभी मयखानों के पीने में ।
संघर्ष करते 'दीप' हैं अच्छे दिनों की उम्मीदों के साथ,
बमुश्किल होती है चार दिन की चांदनी साल महीने में ।
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यहाँ मिलता है हर शख्स मुस्कराहट के साथ,
दिल में न जाने कितने गम छुपाये रखे सीने में ।
लड़ता है वक्त बेवक्त आती परेशानियों के साथ ,
मशरूफ हो जाता कुछ इस तरह जिंदगी जीने में ।
मिलता है मौका तो खुश हो लेता हैं अपनों के साथ ,
हौसले यूं ही कम न हुये परेशानियों के पसीने में ।
ढ़ूढ़ते रहते हैं हल मुसीबतों का समाधानो के साथ ,
कभी मंदिर मस्जिद तो कभी मयखानों के पीने में ।
संघर्ष करते 'दीप' हैं अच्छे दिनों की उम्मीदों के साथ,
बमुश्किल होती है चार दिन की चांदनी साल महीने में ।
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शुक्रवार, 16 मार्च 2018
और न ही हमारा आँगन परिंदों का ठिकाना ही रहा !
न फूलों की रंगीनी रही न ही खुशबु रही ,
न ही वो ठंडक लिए खुशनुमा मौसम सुहाना ही रहा ।
न तो फूल और न ही क्यारियां रही ,
और न ही हमारा आँगन परिंदों का ठिकाना ही रहा ।
न तो वक्त है और न ही वो जगह रही,
कहाँ वो पंछियों के दानापानी देने का जमाना ही रहा ।
जो बची थी आसपास थोड़ी जगह ,
वो आजकल कबाड़ और वाहनों का आशियाना ही रहा ।
काश बचा लेते इनके लिए जगह और समय ,
वर्ना बाद पछताने का 'दीप' यही एक बहाना ही रहा ।
शनिवार, 10 मार्च 2018
खिचे# चले आते हैं तेरीओर# ,जरूर तुझमे ऐसी हंसी# अदा# है!
खिचे# चले आते हैं तेरीओर# ,जरूर तुझमे ऐसी हंसी# अदा# है!
मिल ही जाते हो यूँ ही जब तब,क्या तेरा मेरा कोई वास्ता है ।
बढ़ने लगी है गुफ्तगू रोज,फिर भी कहने को और बचा है ।
खिचे चले आते हैं तेरी ओर ,जरूर तुझमे ऐसी हंसी अदा है ।
एक सुकून देता है तेरा साथ,लगता है तू कोई इक फरिश्ता है ।
मुलाकातों से भरता नहीं दिल,यादों का ही रहता आसरा है ।
तेरी ही फ़िक्र में रहते है अब तो,बन गया है ये कोई रिश्ता है ।
तमन्ना है रब से अब 'दीप' यही,हो जाये एक तेरी मेरी सदा है ।
मिल ही जाते हो यूँ ही जब तब,क्या तेरा मेरा कोई वास्ता है ।
बढ़ने लगी है गुफ्तगू रोज,फिर भी कहने को और बचा है ।
खिचे चले आते हैं तेरी ओर ,जरूर तुझमे ऐसी हंसी अदा है ।
एक सुकून देता है तेरा साथ,लगता है तू कोई इक फरिश्ता है ।
मुलाकातों से भरता नहीं दिल,यादों का ही रहता आसरा है ।
तेरी ही फ़िक्र में रहते है अब तो,बन गया है ये कोई रिश्ता है ।
तमन्ना है रब से अब 'दीप' यही,हो जाये एक तेरी मेरी सदा है ।
मंगलवार, 6 मार्च 2018
कोशिश# हो लक्ष्य# को छोटा करने या बदलने# की !
कोशिश# हो लक्ष्य# को छोटा करने या बदलने# की !
जब लड़खड़ा जाते हैं लक्ष्य का पीछा करते करते,
एक कोशिश होती है फिर संभलकर चल पड़ने की,
कमियों और कारणों के निराकरण और सुधार से ।
जब नही मिलती सफलता बार बार के प्रयासों से ,
कभी सोचना पड़ता है की कमी है मेरे प्रयासों की,
या फिर नहीं है समर्पण पूरी लगन और क्षमता से ।
हो सकता की हो गया लक्ष्य बड़ा मेरी क्षमताओं से,
ऐसे हाल में कोशिश हो लक्ष्य को जरा छोटा करने की,
या करें एक और नई शुरुआत लक्ष्य को बदलने से ।
जब लड़खड़ा जाते हैं लक्ष्य का पीछा करते करते,
एक कोशिश होती है फिर संभलकर चल पड़ने की,
कमियों और कारणों के निराकरण और सुधार से ।
जब नही मिलती सफलता बार बार के प्रयासों से ,
कभी सोचना पड़ता है की कमी है मेरे प्रयासों की,
या फिर नहीं है समर्पण पूरी लगन और क्षमता से ।
हो सकता की हो गया लक्ष्य बड़ा मेरी क्षमताओं से,
ऐसे हाल में कोशिश हो लक्ष्य को जरा छोटा करने की,
या करें एक और नई शुरुआत लक्ष्य को बदलने से ।
शुक्रवार, 2 मार्च 2018
रविवार, 25 फ़रवरी 2018
आसमान के परदे में जा मिली एक और चांदनी !
रियल लाइफ के अभिनय की ख़त्म कर कहानी ।
आसमान के परदे में जा मिली एक और चांदनी ।
बेशक हर लम्हे हमें उनकी कमी पड़ेगी सहनी ।
कला जगत के लिए यह तो क्षति है अपूरणीय ।
अब तो अभिनय के लिये पर्दा होगा आसमानी ।
जहां संग होंगे बॉलिवुड के कलाकार रूहानी ।
खुदा गवाह है की वे अदाकारा थी बड़ी सयानी।
उनको हम सभी की अर्पित है श्रद्धांजलि भाव भीनी ।
बुधवार, 21 फ़रवरी 2018
कभी कभी एक 'न' भी .......!
जरुरी है अपनों की खुशियों का ध्यान रखना सदा ।
पर हर बात पर नही मिलायी जा सकती हाँ में हाँ ।
कभी यही आदत बन जाती है परेशानी भरा जहां।
ये सोचकर कि इंकार न कर जाये अपनों को खफा ।
और ढोते रहते हैं बोझ उस हाँ का बुझे मन से हमेशा ।
बातें जो करे असहज लम्हा , उन्हें करना सीखें मना ।
कभी कभी एक 'न' भी , आसान कर देगी जीना ।
शनिवार, 17 फ़रवरी 2018
यह #जरुरत का #तकाजा है या #जीवन की #मज़बूरी !
चल पड़ता हूँ सफ़र पर एक अजनबी के साथ ,
अपनी मंजिल पर पहुचने के लिए ।
ठहर जाता हूँ एक रात अनजान सराय पर ,
दिन भर की थकान मिटाने के लिए ।
खरीद लाता हूँ सामान नुक्कड़ की दुकान से ,
तुरंत की भूख और प्यास मिटाने के लिए।
पहुच जाता हूँ एक अनजान वैध के पास ,
बीमार और बिगड़ी सेहत सुधरवाने के लिए ।
सौप देता हूँ बच्चों को कुछ अनजान हाथों में ,
पढ़ा लिखाकर भविष्य सवारने के लिए ।
यह जरुरत का तकाजा है या जीवन की मज़बूरी,
अनजान शख्स पर विश्वास करना हो गया जरुरी ।
जो भी हो 'दीप' जीवन के लिए सबका साथ जरुरी ।
इन सबके बिना यह खूबसूरत जिंदगी है अधूरी।
शनिवार, 10 फ़रवरी 2018
#साहिल पर तो आये #रिश्तों की #कश्तियाँ ।
#साहिल पर तो आये #रिश्तों की #कश्तियाँ ।
यूँ ही अनजाने में जो कर बैठे हैं गुस्ताखियाँ ।
अब तो बढ़ चले हैं फासले और रूसवाइयां ।
कुछ तो कम हो ये पल पल सताती दुशवारियाँ।
आओ तोड़े अब ये चुप्पी और खामोशियाँ ।
दूर करें ग़लतफ़हमी जो है तेरे मेरे दरमियान ।
न हो सकें सुलह ऐसी तो न होगी मजबूरियां ।
कुछ तुम तो कुछ हम बढ़ें छोड़कर गुमानियां ।
साहिल पर तो आये 'दीप ' ये रिश्तों की कश्तियाँ ।
यूँ ही अनजाने में जो कर बैठे हैं गुस्ताखियाँ ।
अब तो बढ़ चले हैं फासले और रूसवाइयां ।
कुछ तो कम हो ये पल पल सताती दुशवारियाँ।
आओ तोड़े अब ये चुप्पी और खामोशियाँ ।
दूर करें ग़लतफ़हमी जो है तेरे मेरे दरमियान ।
न हो सकें सुलह ऐसी तो न होगी मजबूरियां ।
कुछ तुम तो कुछ हम बढ़ें छोड़कर गुमानियां ।
साहिल पर तो आये 'दीप ' ये रिश्तों की कश्तियाँ ।
शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018
आपसे #अकेले में #बात करनी है !
सपनों के पीछे भागती भीड़ से परे ,
जहां कोई व्याकुल कोलाहल न करे ,
जहाँ कोई सफलता का अभिमान न धरे ,
जहाँ निश्चल मन की मासूमियत न मरे ,
अनुकूल वातावरण में फैले क्षितिज के तले ,
आपसे अकेले में बातें करनी है !
कभी रोज की दौड़धूप से फांका तो करो ,
सपनों की दुनिया से बाहर झाँका तो करो ,
मैं क्या चाहती हूँ कभी आँका तो करो ,
कुछ पल साथ बिताने का वादा तो करो ,
अपना सुख दुःख 'दीप' साथ साझा तो करो ,
आपसे अकेले में बात करनी है !
मंगलवार, 9 जनवरी 2018
तेरी फ़िक्र इस कदर किये जाते है !
तेरी फ़िक्र इस कदर किये जाते है ,
जहां भी जायें तेरा जिक्र किये जाते हैं ।
महफ़िलों का दौर है सजा , जाम पर जाम है छलका ।
इस हंसी दौर में तेरे होने की ख्वाइश किये जाते है ।
तेरी फ़िक्र इस कदर किये जाते है ,..............|
कुछ तो है तेरे नाम का नशा , हर जगह है तेरी ही सदा ।
तेरा नाम आते ही दिल अरमानो की बारिश किये जाते हैं ।
तेरी फ़िक्र इस कदर किये जाते है ,..............|
जब तक साथ न हो तेरा , रहता है मायुसी का बसेरा ।
हर पल तेरे होने की 'दीप' दिल ये साजिश किये जाते है ।
तेरी फ़िक्र इस कदर किये जाते है ,..............|
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