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रविवार, 15 अप्रैल 2018

कब तक ज्यादिती# की बेदी# पर बेटी# चढ़ती रहेगी रोज!

कब तक ज्यादिती# की बेदी# पर बेटी# चढ़ती रहेगी रोज।

जन्म से पहले ही तो सुरक्षित नहीं थी माँ की कोख ।
दुनिया में आने से पहले अपने ही लगा रहे थे रोक ।
जैसे तैसे इस दुनिया में बेटी ने जन्म लिया एक रोज ।
क्या पता पहले से ही ताक पर बैठे मिलेंगे दरिंदे लोग ।
किस से बचाये अपने को न जाने किसके मन में खोट ।
न जाने  कब  कौन सा साथी कब खो दे अपने होश  ।
गलती नहीं होने पर भी अपनी  हर बार सहती चोट ।
न जाने कब तक लेना होगा अपने सर माथे सारा दोष ।
रोक सका न शोषण अब तक कानून व् केंडल विरोध ।
इतने पर ही  इतिश्री कर क्यों सिल जाते सब के होंठ ।
कब तक उपभोग की वस्तु समझने की न बदलेगी सोच ।
कब तक ज्यादिती की बेदी पर बेटी चढ़ती रहेगी रोज ।
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