फ़ॉलोअर
सोमवार, 29 सितंबर 2008
महिलाओं की सुन्दरता और बाजारवाद का प्रभाव !
शनिवार, 27 सितंबर 2008
आतंकवाद की आग मैं घी डालने का काम कर रही है देश की राजनीति !
गुरुवार, 25 सितंबर 2008
ना कोई सीमा ना कोई बंधन - बस एक ब्लॉग और खुलकर कहो बात !
मंगलवार, 23 सितंबर 2008
उम्मीद करें की जांबाज सिपाही शर्मा जी का बलिदान जाया नही जायेगा !
गुरुवार, 18 सितंबर 2008
आतंकवाद से भी बडा आतंकवाद !
बुधवार, 17 सितंबर 2008
अजी ये कैसे चयन कर्ता है !
अजी हाँ मैं कोई क्रिकेट , हांकी या किसी खेल की टीम के चयन कर्ता या फिर किसी रोमांचक और साहसिक कार्य के लिए चुने वाले दलों के चयन कर्ताओं की बात नही कर रहा हूँ , जिन्हें की उनके क्षेत्रों के भरपूर ज्ञान और अनुभव रहता है , उनकी एक निर्धारित योग्यता रहती है । उन्हें चयन किए गए या चुने गए उम्मीदवारों को चयन करने के साथ बापस हटाने या बुलाने का अधिकार भी रहता है ।
किंतु यहाँ चयन कर्ता को न कोई योग्यता की जरूरत होती है और न कोई अनुभव की । और तो और उन्हें यह तक नही पता होता है की हम जिस उम्मीदवार का चयन करने जा रहे है उसकी योग्यता क्या है ? उसे हम किस दल और किस टीम और किस कार्य के लिए चुन रहे है यह भी पता नही रहता है । चयन कर्ता इतने कमजोर और इक्छा शक्ति मैं कमी वाले होते हैं की उन्हें साम , दाम और दंड भेद से किसी भी दिशा मैं बहकाया जा सकता है । और यदि वे किसी उम्मीदवार का चयन भी कर लेते हैं तो उसे हटाने या बापस बुलाने का अधिकार भी नही रहता है ।
जी हाँ हमारे लोकतंत्र के मुख्य आधार स्तम्भ है , अर्थात वोटर या मतदाता । न तो उन्हें कोई योग्यता की जरूरत होती है , और न कोई अनुभव की , और न कोई उनके पारिवारिक इतिहास की । बस उन्हें देश का नागरिक होने के साथ उनकी उम्र १८ वर्ष होनी चाहिए । फिर चाहे वह अनपढ़ हो , अपराधी हो या फिर कुछ और । और उनके कन्धों पर उन उम्मीदवारों को चुनने की जिम्मेदारी होती है जो उसके क्षेत्र , जिला , प्रदेश और देश की लाखों करोरों लोगों की भावनाओं और विचारों का प्रतिनिधितव करते है , लोगों की समस्याओं और क्षेत्र के विकास के लिए जिन्हें अथक प्रयास और मेहनत करना होता है ।
इन सब कमियों के चलते ही ताओ आज देश के राजनेता मनमानी करने पर तुले हुए हैं , क्योंकि एक बार चुनने के बाद ताओ कोई हटा नही सकता है . और दूसरी बात यह भी है की उनकी इन कारगुजारियों को आम अनपढ़ और नासमझ मतदाता कितना समाज पायेगा , उन्हें पता है की चुनाव के नजदीक समय पर साम दाम और दंड भेद से इन मतदाताओं को बरगलाया जा सकता है . इस लोकतान्त्रिक देश मैं इन राजनेताओ द्वारा देश का कैसा मजाक बनाया जा रहा है की पढ़ा लिखा और समझदार बुद्धिजीवी वर्ग अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है और मन मसोस कर रह जाता है .
अतः प्रदेश और देश को चलाने वाली टीम का चयन करने वाले चयन कर्ताओं हेतु कुछ तो योग्यता का निर्धारण होना चाहिए । ताकि वह स्व विवेक से अपने वोट के महत्व और चयन किए जाने वाले उम्मीदवार की साख , उसके सामाजिक कार्यों और उसकी योग्यता को देखते हुए फ़ैसला कर अपना अमूल्य वोट दे सकें , और उसे पाँच साल तक किम कर्तव्य बिमूढ़ होकर हाथ मलते रह जाना न पड़े ।
मंगलवार, 16 सितंबर 2008
आतंकी घटना पर गृह मंत्रालय की एक महत्वपूर्ण बैठक .
गुरुवार, 11 सितंबर 2008
Give and Take पर निर्भर है ब्लॉगर की दुनिया !
मंगलवार, 9 सितंबर 2008
परमाणु करार पर इतनी उदारता क्यों ?
शनिवार, 6 सितंबर 2008
कुर्सी प्रेम छोड़कर - कुछ ऐसे भी जन सेवा करके देखे !
शुक्रवार, 5 सितंबर 2008
त्राश्दियों मैं हताहतों की मदद का विकृत रूप ?
विश्व या देश के किसी भी कोने मैं प्राक्रत्रिक आपदाओं जैसे बाढ़ , भूकंप , तूफ़ान अथवा सूखा अथवा मानव चूक से पैदा होने वाली कृत्रिम आपदाएं हो , इस प्रकार की घटित होने वाली भयंकर आपदाओं मैं देश विदेश से मदद के लिए कई हाथ आगे आते हैं । व्यक्तिगत अथवा सामूहिक रूप से लोग मदद के लिए सामने आते हैं । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज मैं सामूहिक रूप मैं साथ रहकर , एक दूसरे के सुख दुःख मैं काम आकर अपने जीवन का निर्वहन करता है । इसी स्वाभाविक वृत्ति के कारण मनुष्य अपने आसपास के लोगों की अपने सामर्थ्य के अनुसार दुखित और किसी घटना मैं पीड़ित लोगों की मदद करता है । सामान्तया दवाएं , भोजन , कपड़े एवं जीवन हेतु आवश्यक वस्तुओं अथवा आर्थिक सहायता के रूप मैं हताहतों की मदद की जाती है ।
कई बार ऐसी मदद तो निःस्वार्थ भाव से अंतरात्मा की आवाज पर स्वतः स्फूर्त होकर की जाती है । किंतु कई बार ये मदद दिखावा अथवा सामाजिक प्रतिष्ठा के मद्देनजर मजबूरी बस की जाती है , जिसमे इसका खूब प्रचार प्रसार किया जाता है । इसी प्रकार कई बार यह देखने मैं आता है की मदद स्वरुप पहुचाई जाने वाली आवश्यक सामग्री अथवा आर्थिक राशि पीडितों तक पहुच ही नही पाती है । सरकार अथवा प्रशासन द्वारा प्रदान की जाने वाली लाखों करोरों रूपये की मदद प्रशासन मैं बैठे बीच के लोगों द्वारा ही पचा ली जाती है जिससे हताहतों और पीडितों को इन मददों के आभाव मैं भारी दुःख एवं कठिनाई झेलनी पड़ती है । यह देखने मैं भी आता है कई लोग मदद के नाम पर हताहतों और पीडितों के बीच कीमती सामानों के लालच मैं जाते हैं । लोग शहर और बस्तियों मैं निकलकर हताहतों के नाम पर चंदा एवं आर्थिक सहायता मांगते हैं , जिसका कोई हिसाब नही रहता है की वे कितना पैसा पीडितों तक पंहुचा रही हैं , अथवा पंहुचा भी रहे हैं या नही । एक चीज और गौर करने वाली है की मदद के नाम पर कई परिवार , घर के मैले कुचेले और फटे कपड़े एवं घर के अनावश्यक समान रुपी कूड़ा करकट को देते हैं , जो की मजबूरी बस दी गई मदद को दर्शाता है और मजबूर और हालात के मारे हुए लोगों के माखोल उडाने के सामान है।
इन सबके बीच ऐसे लोग अथवा संस्था है जो खामोशी के साथ निःस्वार्थ भावना से मदद हेतु आगे आते हैं । ऐसे लोगों की कमी नही है जो जान जोखिम मैं डालकर लोगों की मदद करते हैं । अतः मददों के इन अच्छे पहलु के इतर मददों के विकृत स्वरुप मैं सुधार होना जरूरी है । मदद ऐसी की जाए जो आडम्बर रहित हो , जिसमे कोई मजबूरी न हो । सामर्थ्य के अनुसार ऐसी मदद की जाए की सम्मान के साथ एवं आवश्यकता के अनुरूप , मदद पाने वाले लोगों तक यह मदद पहुचे । उनको भी लगे की इस दुःख और परेशानी की घड़ी मैं हमारे अपने साथ हैं ।
#खता किस किस की मैं याद रखूं !
#खता किस किस की मैं कब तक याद रखूं पता #खुशियों का मैं कब तक #नजरअंदाज रखूं । दिल में रश्क की मैं कब तक #आग रखूं खुशियों को अपने से मैं कब...

-
रोज सुबह आते दैनिक या साप्ताहिक अखबार हो , टीवी मैं चलने वाले नियमित कार्यक्रम हो या फिर रेडियो मैं चलने वाले प्रोग्राम हो या मोबाइल मैं आ...
-
Image Google saabhar. एक दूजे के लिये #चांद से यह दुआ है ता उम्र , हो पल पल सुकून का और हर पल शुभ #शगुन । हो न कोई गलतफहमी न कोई उलझन, शांत ...
-
#वक्त का नया #घर राह तक रहा है इधर ले #उम्मीदों का #असर #पधारो हे #मित्रवर । #संभावनाओं से भरी #आलमारियां #अवसरों की नई #क्यारियां मिलने को ...