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रविवार, 31 मार्च 2024

बहती नदी मध्य एक #पत्थर !


ढूंढते हैं #पेड़ों की छांव ,

पंछी , #नदियां और तालाब

ठंडी ठंडी हवा का बहाव ,

आसमां का जहां #धरती पर झुकाव ।


बहती नदी मध्य एक #पत्थर ,

बैठ गया थक कर उस पर ,

सुकून हुआ और बेहतर 

जब मछलियां गुजरी पैरों को छूकर ।


ऊपर नीला सा आसमां ,

चित्र उकेरे जिस पर घटा,

बाल मन सा अंदाज लगा ,

देख रहे आकृति फला फला ।


फूलों पर रंगों का पहरा,

खुशबू भी लुभा रही भंवरा,

बैठा था मैं कुछ ऐसी  जगह

जहां  मिलने आती थी शीतल  हवा ।

शनिवार, 23 मार्च 2024

नील लगे न पिचकरी, #रंग चोखा आये ,

 


नील लगे न #पिचकरी, #रंग चोखा आये ,

कीचड का गड्डा देखकर , उसमें दियो डुबाये .

 

ऊंट पर टांग धरन की , फितरत में श्रीमान ,

मुंह के बल गिर गये , कटा बैठे नाक और जुबान .

 

अच्छी रील के  फेर  में , रियल  बनाये मजाक ,

बनाबटी  काम सब कर  रहे , छोड़ कर असली काज .    

 

बुरा न मानो बोल के , होली की हुडदंगी जात ,

तोड़फोड़ और गालियाँ  से , मन की निकाले भड़ास .

 

लोढ़त पोढ़त  दिन गयो , गयो न मदहोशी का फेर .

मधु मुन्नका मिठाई संग , ज्यों  सेवन किये रहे ढेर .


होली मनाये की खुशी में, नशा इतना लिया चढ़ा ,

रंग में भंग पड़ाये के , खुशियां की होली लिया जला .


होली की ढेरों ढेर शुभकामनायें एवं बधाइयाँ . 

शुक्रवार, 8 मार्च 2024

#नारी शक्ति अनंत अथाह ।


मन के अंदर कितने हो घाव,

फिर भी रखे कोमल स्वभाव,

मुश्किल में हो कितनी जीवन नाव,

फिर भी डिगे न इन के  पांव ।


#ममता के #आंचल की छांव ,

सुरक्षा और #आश्रय का भाव ,

चाहे कितना हो आभाव ,

#अन्नपूर्णा बन करती पुराव ।


चलाती उंगली पकड़ पांव पांव,

जुबां को देती शब्द और सुझाव,

शिशु को देती रुचि और चाव,

ताकि उचित हो पोषण और बढ़ाव।


बल व शक्ति रूपेण #दुर्गा ,

समझ व ज्ञान रूपी #शारदा ,

स्नेह का अविरल निश्चल प्रवाह ,

प्रज्ञा, प्रीति , प्रथा, प्रतिभा ,

#नारी शक्ति अनंत अथाह ।


#महिला दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं । 

रविवार, 3 मार्च 2024

जुदा है वो हर #अदा से !


जुदा है उसकी #आंखें ,

नीली नीली सी आंखें ,

गीली गीली सी आंखें ,

निकली जैसे समंदर में नहाके ।


जुदा है उसकी #बातें ,

कहती सब अंदाजे बयां से,

फूलों से लफ्ज़ जुबापे,

निकले जैसे शहद में भिगाके ।


जुदा है उसकी #सांसें ,

जब कभी वो पास आते ,

एक तूफान सा उठाके ,

रह जाते सांसों में समाके ।


जुदा है वो हर #अदा से ,

मुस्कान चेहरे पर सदा से,

चुके न कोई कायदा से ,

रहती वो बस रस्मों वफा से ।

लो बीत गया एक और #साल !

# फुर्सत मिली न मुझे अपने ही काम से लो बीत  गया एक और # साल फिर मेरे # मकान से ।   सोचा था इस साल अरमानों की गलेगी दाल , जीवन...