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बुधवार, 30 मई 2018

तुम आये पर दीदार# न हुआ तेरा# !

तुम आये पर दीदार# न हुआ तेरा# !

तप्ती धूप की जलन इस पर पसीने की चुभन ,
तुझसे मिलने का है मन , तेरे इंतज़ार में खड़े है हम ,
तुम आये पर दीदार न हुआ तेरा ,
क्योंकि चेहरे पर नकाब जो चढ़ा रखा था ।

सोचा था होगा मिलन कुछ तो कम होगी जलन,
तेरे झील से है जो लोचन डूबकर राहत पा लेंगे हम ,
पर नजरों पर नजरों का न हुआ बसेरा ,
क्योंकि आँखों पर काला चश्मा चढ़ा रखा था ।

राहों में दरख्त है कम ठंडी छाँव के लिये तरसे हम ,
सोचा जुल्फों के छाँव में सनम राहत पा लेंगे हम,
पर जुल्फों का साया न मिल सका तेरा ,
क्योंकि सर पर दुपट्टा जो बाँध रखा था ।

उजड़ रहा प्यार का चमन गर्मी जो ढा रही सितम,
कर लें वो सारे जतन बचाएं पानी और लगाएं वन ,
हर मौसम में हो सके 'दीप' दीदार तेरा ,
क्योंकि कायनात खफा होकर न बने व्यथा ।

1 टिप्पणी:

  1. सुन्दर प्रस्तुति .....कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
    संजय भास्‍कर
    शब्दों की मुस्कुराहट
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं

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