दिन भर की कड़ी मेहनत से थक कर चूर ,
शाम ढलते ही सभी चिंताओं से दूर ,
कर रहें है सब मिलकर सामना भरपूर ,
ठण्ड जो कुछ ज्यादा ही हो रही क्रूर ।
तन पर गर्म कपड़े लिबास नही है प्रचुर ,
जो बेशक फुटपाथ पर रहने को है मजबूर ,
जलाकर अलाव से गर्मी का पाया सुरूर ,
आग की लौ से चेहरे पर सुकूँ का है नूर ।
कहते सुनते रात गुजर रही है बदस्तूर ,
बिना कुछ सोचे की किसका है ये कसूर ,
कभी तो दीप मेहरबाँ होगी किस्मत मगरूर ,
अगली सुबह खुशियों से भरी होगी जरूर ।
ठण्ड का बस सबसे ज्यादा इन्हीं गरीबों पर चलता है
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी रचना
जी धन्यबाद । आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु ।
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